बिहार : उपभोक्ताओं को न्याय पाने में करना पड़ रहा वर्षों इंतजार

पटना : उपभोक्ताओं को हक के लिए कानून तो बनाये गये हैं, लेकिन न्याय मिलने की पहुंच अब भी दूर है. उपभोक्ताओं को न्याय के लिए सालों इंतजार करना पड़ता है. उपभोक्ताओं द्वारा दर्ज शिकायत के मामले में 90 दिनों में न्याय मिलने का प्रावधान है, पर निर्धारित अवधि में कोरम भी पूरा नहीं हो पाता है.


शायद ही कोई ऐसा केस है जिसकी निर्धारित अवधि में सुनवाई हो जाती है. अमूमन चार से पांच साल न्याय मिलने में लग जाते हैं. जबकि, अपील की सुनवाई में दस साल से अधिक समय लगता है. राज्य उपभोक्ता फोरम में 2015 में विभिन्न प्रकार के 503 मामले आये. इसमें इस साल के मात्र 55 मामले का निष्पादन हुआ. जबकि, प्रत्येक साल 1500 से दो हजार मामले का निष्पादन होता है. इसमें पिछले कई साल के मामले भी शामिल होते हैं.


वर्ष 2002 की अपील संख्या 131, 2003 की अपील संख्या 514, 2004 की अपील संख्या 548 का निष्पादन 2015 में हुआ. 2016 में 503 मामले में उस साल के 81 मामले का निष्पादन हुआ. 2017 के पांच अक्तूबर तक 393 मामले दायर हुए. इसमें उक्त तिथि तक इस साल के 48 मामले का निष्पादन हुआ.


2016 में 2002 का केस संख्या 14, 2017 में 2002 का केस संख्या 367 , 166 सहित अन्य मामले का निष्पादन हुआ. ऐसे मामले अधिकांश अपील से संबंधित थे.न्याय मिलने में देरी की बात को लेकर उपभोक्ता फोरम की चक्कर लगाने से उपभोक्ता घबड़ाते हैं. इस वजह से आर्थिक कष्ट सहना मंजूर कर लेते हैं, लेकिन उपभोक्ता फोरम जाने को नजरअंदाज करते हैं. इससे उपभोक्ता फोरम का लाभ लेने से उपभोक्ता वंचित रह जाते हैं.


बिहारशरीफ के धर्मेंद्र कुमार ने अपने ट्रक की चोरी के बाद इंश्योरेंस की राशि संबंधित कंपनी द्वारा नहीं दिये जाने पर राज्य उपभोक्ता फोरम में 2013 में शिकायत दर्ज की. मामले की सुनवाई के दौरान इंश्योरेंस कंपनी ने तरह-तरह से अपने पक्ष की बात रखी.
लेकिन, अधिवक्ता अनिल पांडेय द्वारा उपभोक्ता के पक्ष में कानूनी पहलुओं को रखे जाने पर राज्य उपभोक्ता फोरम से न्याय मिला. इस लड़ाई को लड़ने में पांच साल लगे. उपभोक्ता धर्मेंद्र कुमार को 22 लाख की राशि पर छह फीसदी सूद के साथ 27 लाख रुपये संबंधित इंश्योरेंस कंपनी को भुगतान करने का आदेश राज्य उपभोक्ता फोरम ने दिया.


पालीगंज के अजय कुमार पाठक ने अपने बोलेरो की इंश्योरेंस राशि के लिए पहले पटना जिला उपभोक्ता फोरम में 2011 में शिकायत दर्ज की. इंश्योरेंस कंपनी को राशि देने संबंध में आदेश पारित हुआ. जिला उपभोक्ता फोरम के खिलाफ इंश्योरेंस कंपनी राज्य उपभोक्ता फोरम में अपील की. वहां भी उसे राहत नहीं मिली. राज्य उपभोक्ता फोरम ने उपभोक्ता के पक्ष में सूद सहित राशि देने के संबंध में फैसला सुनाया. 2016 में राहत मिली.

केस निष्पादन में देरी की वजह

उपभोक्ता फोरम गठित होने से उपभोक्ताओं में जागरूकता बढ़ी है. लेकिन, न्याय पाने में लंबा समय लगता है. उपभोक्ता फोरम में मामले के अधिक आने व उस सही से निष्पादन नहीं होने की वजह से समय लगता है. इसका कारण है कि राज्य उपभोक्ताफोरम में फिलहाल एक बेंच कार्यरत है. जिसमें फोरम के अध्यक्ष सहित दो सदस्य हैं. कर्मचारियों की कमी से भी काम का निष्पादन तेजी से नहीं होता है.

मामले का निष्पादन तेजी से हो इसके लिए बेंच बढ़ाने सहित कर्मियों की नियुक्ति आवश्यक है.

फीस निर्धारित: उपभोक्ता के मामले की सुनवाई के लिए उपभोक्ता फोरम में प्रत्येक मामले के लिए अलग-अलग फीस निर्धारित है. एक रुपये से एक लाख तक सौ रुपये, दो लाख से पांच लाख तक दो सौ रुपये, पांच से दस लाख तक चार सौ रुपये, 10 से 20 लाख तक पांच सौ रुपये, 20 से 50 लाख तक दो हजार रुपये व 50 से एक करोड़ तक चार हजार रुपये फीस उपभोक्ता को आवेदन करने के समय देने का प्रावधान है.
क्या है प्रावधान

उपभोक्ताओं को राहत दिलाने के लिए सरकार ने उपभोक्ता फोरम गठित किया है. जहां उपभोक्ता बीमा, मेडिकल क्लेम कंपन्सेशन, बिल्डर, निर्माण करनेवाली कंपनी पर प्रोडक्ट में गड़बड़ी होने पर उसे बदलने या गड़बड़ी को दुरुस्त करने में आनाकानी किये जाने पर उपभोक्ता फोरम में शिकायत की जा सकती है. 20 लाख रुपये तक जिला उपभोक्ता फोरम, 20 लाख से एक करोड़ तक राज्य उपभोक्ता फोरम व एक करोड़ से अधिक के मामले राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम दर्ज किये जाते हैं.

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