यहां साल वृक्षों में रोज छोड़ी जा रही 400 तितलियां, जानिए क्यों

जगदलपुर । बस्तरवासी कोसा को रुपए का दूसरा रूप मानते हैं इसलिए इन दिनों कुरंदी और चितापदर के साल जंगल में दो प्रगुणन केन्द्र बना कर यहां टांगे गए एक लाख कोसा से निकलने वाली तितलियों को साल वृक्षों में छोड़ रहे हैं।


इन तितलियों से ग्रामीणों को लगभग पांच लाख कोसा प्राप्त होगा। जिसे बेच कर वे मोटी रकम एकत्र करेंगे। इधर अत्यधिक कोसा दोहन से विश्व प्रसिध्द रैली कोसा पर विलुप्त होने का खतरा भी मंडरा रहा है, इसलिए वन और रेशम विभाग भी आगे बढ़कर ग्रामीणों की मदद कर रहा है।


पूरे एशिया महाद्वीप में बस्तर के साल वनों में ही रैली कोसा होता है। एक कोसा से करीब 1050 मीटर लंबा धागा निकलता है, जो दूसरे कोकून के धागा से ज्यादा मजबूत होता है। बस्तर जिला में ही हर साल करीब चार करोड़ 50 लाख रैली कोसा का संग्रहण होता है। जिसे बेच कर ग्रामीण लगभग 20 करोड़ रुपए एकत्र कर लेते हैं।


इन दिनों कुरंदी जंगल में वन विभाग द्वारा दो स्थानों पर माण्डो (कोसा प्रगुणन केन्द्र) बनाया गया है। प्रत्येक केन्द्र में 50- 50 हजार कोसा टांगा गया है। इसकी सुरक्षा और साल वनों में कोसा तितली छोड़ने के लिए चौकीदार नियुक्त किए गए हैं।


कुरंदी जंगल में प्रगुणन केन्द्र की सुरक्षा में तैनात रामलाल और बुटीराम ने बताया कि प्रतिदिन करीब 400 तितलियां कोसा से बाहर आती हैं। इन्हे एकत्र कर साल वृक्षों में छोड़ा जा रहा है। वहां तितलियां अण्डे देती हैं फिर इनसे इल्लियां निकलती है। कोसा इल्ली को खाने बड़ी संख्या में कौए भी आते हैं। इन्हे भगाने के लिए वे गुलेल का उपयोग करते हैं।


लगातार दोहन से जंगलों में रैली कोसा की संख्या कम हो गई है, इसलिए वन और रेशम विभाग हर वर्ष स्थानीय हाट- बाजारों से कोसा खरीदती है और इन्हे धरमपुरा के स्थापित कोकून बैंक में सुरक्षित रखती हैं तथा हर साल चैत्र और भादो मास में साल वनों में कोसा प्रगुणन केन्द्र बनाकर रैली कोसा को बचाने का प्रयास करती आ रही है। वहीं ग्रामीणों को भी समझाया जा रहा है कि वे भी शत प्रतिशत कोसा संग्रहण न करें, संवर्धन के लिए कुछ कोसा जंगलों में छोड़ दें।


रेशम विभाग के उप संचालक एके श्रीवास्तव ने बताया कि बस्तर जिला में ही 12 हजार हितग्राही कोसा संग्रहण करते हैं। जो साल में दो बार चैती और भादवी कोसा एकत्र करते हैं। प्रत्येक हितग्राही हर सीजन में औसतन चार हजार कोसा एकत्र कर लेता है, इसलिए ग्रामीण रैली कोसा को रुपए का प्रतिरूप मानते हैं।


बस्तर के हितग्राहियों द्वारा सालाना साढ़े चार करोड़ कोसा एकत्र किया जाता है। कोसा बेचने से इन्हे करीब 20 करोड़ रुपए मिल जाते हैं। ग्रामीणें का कोसा इन दिनों पांच रुपए प्रति नग की दर से खरीदा जा रहा है। बस्तर में उत्पादित रैला कोसा प्रदेश में बस्तर, चांपा, रायगढ़ और जांजगीर के अलावा बिहार, उप्र, झारखंड जा रहा है। वहां तैयार किया गया कोसा वस्त्र अमेरिका, रसिया, फ्रांस के अलावा अरब देशों में खप रहा है।

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