नई दिल्ली। दुनियाभर में ऑटोमेशन की वजह से रोजगार पर संकट खड़ा होने की बात उठ रही है, मगर भारत के शीर्ष अर्थशास्त्री अरविंद पानगड़िया इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में बोलते हुए कहा कि संरक्षणवाद की नीति से वैश्विक अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान नहीं है।
निर्यात बाजार करीब 22 लाख करोड़ डॉलर (करीब 1,441 लाख करोड़ रुपये) का है। यह इतना विशाल बाजार है कि संरक्षणवाद से इस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की बात निरर्थक है। अरविंद पनगड़िया ने ऑटोमेशन से रोजगार घटने की बात से भी इन्कार किया।
भारत में नीति आयोग के उपाध्यक्ष पद से हाल में ही इस्तीफा देने वाले 65 वर्षीय पानगड़िया अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में दोबारा जुड़े हैं।
उन्होंने कहा, ‘ऑटोमेशन को लेकर मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि हम अक्सर बढ़ा-चढ़ाकर चीजों को रखते हैं। हम यह तो देखते हैं कि ऑटोमेशन से कौन सी नौकरियां खत्म हुईं, लेकिन हम यह नहीं देखते कि वास्तव में ऑटोमेशन से किस प्रकार की नौकरियां सृजित होंगी।’
उन्होंने जोर देकर कहा कि अतीत में कभी यह नहीं देखा गया कि प्रौद्योगिकी की प्रगति से रोजगार में कमी आई हो। पानगड़िया ने कहा, ‘प्रौद्योगिकी में प्रगति हम सभी को व्यस्त बनाती है। जितने औद्योगिक रूप से अग्रणी देश हैं, वहां लोग ज्यादा व्यस्त हैं।
अतीत में कभी नहीं देखा गया कि प्रौद्योगिकी ने लोगों को कम व्यस्त किया हो या श्रम बाजार में गिरावट आई हो।’
पानगड़िया ने संरक्षणवाद के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों को भी नकारा। उन्होंने कहा कि वस्तु निर्यात बाजार 17 लाख करोड़ डॉलर (1,114 लाख करोड़ रुपये) का है। वहीं, सेवा निर्यात पांच से छह लाख करोड़ डॉलर है। इस तरह कुल 22 लाख करोड़ डॉलर का निर्यात बाजार है।
यह इतना बड़ा है कि शायद ही संरक्षणवाद का इस पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। पानगड़िया ने कहा, ‘मेरे विचार से प्रौद्योगिकी के बजाय अंतत: नेतृत्व, उनकी नीतियों और बेहतर प्रशासनिक क्रियान्वयन से ही देशों का भविष्य निर्धारित होगा।’