रुमनी घोष, इंदौर। ‘बांध बनाना जितना मुश्किल था, उससे ज्यादा मुश्किल काम हमारा था। इंजीनियर्स के पास फॉर्मूला था, लेकिन लोगों से उनका ही घर खाली करवाने के लिए हम कौन सा फॉॅर्मूला लगाते। आलम यह था कि 16-17 किमी पैदल, कई जगह नाव से नर्मदा पार कर गांव पहुंचते। दो-तीन दिन रुकते और विस्थापन की बात किए बगैर ही लौट आते। यह सिलसिला ढाई से तीन साल तक चलता रहा।’
यह कहना है सरदार सरोवर बांध की वजह से डूब में आए चार जिलों में सबसे दुर्गम आलीराजपुर के 26 गांव में सर्वे करने वाले नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी के सर्वेयरों का। इनके जिम्मे डूब प्रभावित गांवों में विस्थापन करवाने का काम था।
बस रोटी लेकर निकलते, सब्जी गांववालों से लेते
लगभग 25 साल पहले आलीराजपुर में जब नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी का दफ्तर खुला, उस समय लगभग 45 अधिकारी-कर्मचारी थे। अब 15 ही बचे हैं। इनमें भी फील्ड स्टाफ (सर्वेयर) पांच ही बचे हैं। शुरू से ही जुड़े पूसासिंह चौहान कहते हैं कि अन्य जिलों की तुलना में आलीराजपुर में भले ही कम (सिर्फ 26) गांव हैं, लेकिन बिजली-सड़क से अछूते पहाड़ों और जंगलों में बसे आकड़िया, चिखल्दा, ककराना जैसे अधिकांश गांव तक पहुंचना ही दुर्गम था।
तीन-चार के समूह में दो-तीन दिन के लिए रोटी साथ बांधकर निकलते थे। जहां रात रुकते उससे सब्जी मांगकर खा लेते थे। विस्थापन की बातचीत छोड़कर गांव वालों को सबकुछ मंजूर था। ऐसे में उन्हें सरकारी योजनाएं समझाना सबसे कठिन काम हो गया था। पटवारी मखना डामोर और राजस्व निरीक्षक महेंद्र बड़ोले का कहना है इस प्रोजेक्ट के पूरा होने साथ-साथ हम भी अपने-अपने घर लौट पाएंगे।
नहाने गया तो आंखों के सामने मगरमच्छ बच्चे को ले गया
पूसा सिंह बताते हैं- सात साल पहले मैं डूबखड्डा में सर्वे के लिए रुका। दोपहर में नर्मदा में नहाने गया तो मेरी आंखों के सामने ही भैंस को नहला रहे 10 साल के बच्चे को मगरमच्छ खींचकर पानी में ले गया।
एक हाथ में नोटिस, एक में माचिस और सामने जानवर
सर्वेयर अभयसिंह नायक कहते हैं सरकारी नोटिस आता तो गांव पहुंचाने के लिए छकतला में उतरकर घने जंगलों से जाना पड़ता था। जंगली जानवरों को भगाने के लिए हम माचिस लेकर चलते थे। कभी ऐसा भी होता कि सामने जानवर होता और हमारे एक हाथ में नोटिस तो दूसरे में जलती माचिस।
सिंचाई के लिए बिछा दिया विश्व का सबसे बड़ा कैनाल नेटवर्क
गुजरात में बांध निर्माण में पहले दिन से जुड़े सरदार सरोवर नर्मदा निगम के जनरल मैनेजर (टेक्निकल) डॉ. एम.बी. जोशी कहते हैं- सिंचाई के लिए विश्व का सबसे बड़ा कैनाल नेटवर्क बनकर तैयार हो गया। इसमें 40 हजार क्यूबिक फीट पानी प्रति सेकंड डिस्चार्ज होगा। 458 किमी लंबे मुख्य कैनाल सहित कुल 71 हजार 748 किमी का कैनाल नेटवर्क बिछाकर पूरे गुजरात तक पानी पहुंचाना है।
इसमें से 49, 400 किमी कैनाल बिछ चुकी है। बांध से लेकर कैनाल बिछाने तक के काम में लगभग 10 हजार इंजीनियर्स लगे हैं। उन्होंने कहा- हमने गुजरात के लिए प्याऊ बना दिया है। नर्मदा की परिक्रमा कर पुस्तक लिखने वाले अमृतलाल वेगड़ ने सरदार सरोवर बांध को ‘गुजरात का प्याऊ" की उपमा दी थी।