बीआरडी मेडिकल कालेज गोरखपुर में आक्सीजन संकट के दौरान चार दिन में 53 बच्चों की मौत पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। बच्चों की मौत को लेकर जहां आम लोगों में शोक और आक्रोश से भरी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं वहीं इसके लिए जिम्मेदार लोग इन मौतों को ‘ सामान्य ‘ बताने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं और इसके लिए आंकड़ों का खेल खेल रहे हैं। बच्चों की मौत ने पूरे सिस्टम को बेपर्दा कर दिया है। वो सभी चेहरे जो कल तक संवेदनशीलता का लेप लगाए हुए थे, उघड़ गए हैं और उन्हें इसे छिपाने के लिए नाटकीयता का सहारा लेना पड़ रहा है।
पूर्वांचल पिछले चार दशक से इंसेफेलाइटिस से बच्चों की मौत हो रही है। सिर्फ बीआरडी मेडिकल कालेज में वर्ष 1978 से इस वर्ष तक 9733 बच्चों की मौत हो चुकी है। इस आंकड़े में जिला अस्पतालों, सीएचसी-पीएचसी और प्राइवेट अस्पतालों में हुई मौतें शामिल नहीं हैं। इंसेफेलाइटिस से मौतों के आंकड़े ‘टिप ऑफ़ द आईसबर्ग’ की तरह हैं।यानी जितनी मौतों का हमें पता है, उससे कहीं ज्यादा हमें नहीं पता क्योंकि यूपी के दूसरे हिस्सों में इंसेफेलाइटिस की रिपोर्टिंग निर्धारित गाइडलाइन के मुताबिक नहीं हो रही है।
अब तो इसे सिर्फ पूर्वांचल की बीमारी कहना भी ठीक नहीं होगा क्योकि इसका प्रसार देश के 21 राज्यों के 171 जिलों में हो चुका है। नेशनल वेक्टर बार्न डिजीज कन्ट्रोल प्रोग्राम के मुताबिक वर्ष 2010 से 2016 तक एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिन्ड्रोम से पूरे देश में 61957 लोग बीमार पड़े जिसमें से 8598 लोगों की मौत हो गई। इन्हीं वर्षों में जापानी इंसेफेलाइटिस से 8669 लोग बीमार हुए जिसमें से 1482 की मौत हो गई। इस वर्ष अगस्त माह तक पूरे देश में एईएस के 5413 केस और 369 मौत रिपोर्ट की गई है। जापानी इंसेफेलाइटिस के इस अवधि में 838 केस और 86 मौत के मामले सामने आए हैं। जेई और एईएस से सर्वाधिक प्रभावित वाले राज्य आसोम, महाराष्ट्र, ओडिसा, तमिलनाडू, यूपी और पश्चिम बंगाल हैं। पिछले एक दशक से अधिक समय से सरकारों द्वारा इस बीमारी के खात्मे के तमाम घोषणाएं व दावे नाकाम साबित हुए हैं और जेई एईएस के केस भयावह रूप से पूरे देश में बढ़ते जा रहे हैं।
इंसेफेलाइटिस को समझने के लिए हमें जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिन्ड्रोम को समझना पड़ेगा।
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