गोरखपुर त्रासदी: अगर उसका नाम कफील है तो वो हीरो कैसे?– संदीपन शर्मा

कफील अहमद खान ने गोरखपुर के बाबा राघवदास अस्पताल में बच्चों की जिंदगी बचाने की कोशिश की और मीडिया की नजरों के चहेते बन गए. लेकिन अब उनके ऊपर लगातार निशाना साधा जा रहा है.

 

इससे एक बार फिर जाहिर हुआ है कि भारत का जन-मानस धर्मान्धता की आंच में सुलग रहा है. कफील खान को निशाने पर लेना इस बात का संकेत है कि मनगढ़ंत शिकायतों और सांप्रदायिक विद्वेष की भावना ने महसूस करने की हमारी ताकत को कुंद कर दिया है. हम आज उस मुकाम पर आ पहुंचे हैं कि कुछ लोगों के कान में किसी भारतीय मुस्लिम को लेकर प्रशंसा के दो बोल भी पड़ें तो उसे यह तनिक भी बर्दाश्त नहीं होता और वह प्रशंसा के इस बोल को बड़ी तेज आवाज में ‘विश्वासघाती, चोर और अपराधी’ का मंत्रजाप करते हुए ढक देना चाहता है.

क्यों लग रहे हैं आरोप?
हम इस लेख में आगे कफील खान पर लगे बेबुनियाद और मनगढ़ंत आरोप की पड़ताल करेंगे, सबूतों की रोशनी में उन्हें जांच-परखकर देखेंगे. लेकिन इससे पहले यह जानना जरूरी है कि कफील खान पर तोहमत क्यों लगाई जा रही है, उन्हें लोगों की नजरों में गिराने की कोशिशें क्यों की जा रही हैं? यह और कुछ नहीं बीमार लोगों का मनोन्माद है, वे साबित करना चाहते हैं कि भारत का धार्मिक अल्पसंख्यक इस देश का तो क्या दुनिया में कहीं का भी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक नहीं हो सकता.

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