निजता भारतीय नागरिक के मूल अधिकारों में से एक है या नहीं, यह तय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत की संविधान सभा को बताया कि निजता मानव जीवन की सभी क्रियाओं और स्वतंत्रता में निहित है। सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय बेंच इस मामले पर गुरुवार को सुनवाई जारी रखेगी। 55 साल पहले, सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था कि निजता, नागरिकों का मूल अधिकार नहीं है।
इस बार, 9 जजों की बेंच निजता के अधिकार पर फैसला सुनाएगी। न्यायमूर्ति खेहर के अलावा नौ सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति आर.के. अग्रवाल, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे, न्यायमूर्ति डी.वाय. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर हैं। चीफ जस्टिस जेएस खेहर समेत 5 जजों की बेंच ने मंगलवार को कहा था, "यह तय करना जरूरी है कि भारतीय संविधान के तहत निजता का अधिकार है या नहीं। हम यह चाहते हैं कि नौ-सदस्यीय जजों की बेंच यह तय करे।" केन्द्र सरकार ने अदालत में कहा कि संविधान में निजता के अधिकार का प्रावधान नहीं है और न ही यह जीवन के अधिकार कर हिस्सा है। हालांकि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि निजता का अधिकार संविधान में सन्निहित है।