सामाजिक सुरक्षा की दिशा में कदम– अनूप भटनागर

छद्म विवाह, बाल विवाह, बहु विवाह और पति द्वारा पत्नी का परित्याग करने जैसी प्रवृत्तियों की रोकथाम के साथ ही वैवाहिक विवादों और बच्चों की कस्टडी से संबंधित मामलों में महिलाओं को अनावश्यक परेशानियों से बचाने के इरादे से एक बार फिर सभी नागरिकों के लिये 30 दिन के भीतर विवाह का पंजीकरण कराना अनिवार्य करने का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है।

वैसे तो देश में सिख समुदाय और जैन समुदाय में होने वाले विवाहों का पंजीकरण हिन्दू विवाह पंजीकरण कानून के अंतर्गत होता है। वहीं मुस्लिम, पारसी, ईसाई और यहूदी समाज में अलग-अलग कानून हैं। बड़ी संख्या में नवविवाहित दंपति विशेष विवाह कानून के तहत भी अपनी शादी का पंजीकरण कराते हैं।

दुनिया के अधिकांश देशों में विवाह का पंजीकरण कराना अनिवार्य है। अपना देश बहुत बड़ा है और इसमें तमाम विविधताएं और रस्में हैं। लेकिन अभी भी विवाह के अनिवार्य पंजीकरण के बारे में कोई एकीकृत कानूनी व्यवस्था नहीं है। इसी कानूनी व्यवस्था के अभाव में अकसर महिलाएं ही छल का शिकार हो जाती हैं।

विधि आयोग ने विवाह का पंजीकरण अनिवार्य करने के जन्म एवं मृत्यु कानून 1969 में उचित संशोधन करने की सिफारिश की है। आयोग का मत है कि विवाह के नाम पर महिलाओं को छले जाने से बचाने के लिये बेहतर होगा यदि विवाह के अनिवार्य पंजीकरण को आधार से जोड़ दिया जाये। विधि आयोग पंजाब के विवाह अनिवार्य पंजीकरण कानून 2012 के उस प्रावधान से काफी प्रभावित हुआ है, जिसमें रजिस्ट्रार को अपने अधिकार क्षेत्र में कोई विवाह होने की जानकारी मिलने पर स्वत: ही इसका पंजीकरण करने का अधिकार है। आयोग महसूस करता है कि केन्द्रीय कानून में इस तरह का प्रावधान किया जा सकता है।

आयोग यह भी चाहता है कि यदि उचित कारणों के बगैर विवाह का पंजीकरण नहीं कराया जाता है तो ऐसे मामले में पांच रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना लगाने का प्रावधान है। इसके साथ ही नाम और रिहायशी पता आदि के बारे में गलत जानकारी मुहैया कराने वाले पर एक सौ रुपये प्रतिदिन की दर से जुर्माना लगाने के प्रावधान को जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण संशोधन विधेयक, 2015 में बरकरार रखा जाये।
आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह किसी भी पर्सनल कानून में हस्तक्षेप नहीं करता है। आयोग की इस रिपोर्ट का मकसद विवाहित महिलाओं को सामाजिक मान्यता और कानूनी सुरक्षा प्रदान करना ही है। अकसर यह देखा गया है कि विवाह के अनिवार्य पंजीकरण के अभाव में आप्रवासी भारतीयों के साथ विवाह करने वाली महिलाएं धोखाधड़ी और छल की शिकार हो जाती हैं। कई बार तो महिलाएं संपत्ति में अधिकार से भी वंचित हो जाती हैं। महिलाओं को इस तरह की परेशानियों से बचाने में विवाह का अनिवार्य पंजीकरण बहुत ही उपायोगी हथियार साबित हो सकता है।

आयोग ने जागरूकता के मकसद से इस कार्य में ग्राम पंचायत, स्थानीय निकायों और नगर पालिकाओं का सहयोग लेने और नागरिकों में जागरूकता पैदा करने का भी सुझाव दिया है। मौजूदा राजनीतिक माहौल में विवाह का पंजीकरण अनिवार्य करने संबंधी सिफारिशों को स्वीकार करने और इसके लिये उचित विधेयक संसद में लाये जाने के संबंध में अभी सरकारके अगले कदम का इंतजार है।
उच्चतम न्यायालय ने फरवरी, 2006 में देश के सभी नागरिकों के लिये विवाह का पंजीकरण अनिवार्य बनाने के लिये उचित कानून बनाने का केन्द्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया था। लेकिन स्थिति यह है कि इन निर्देशों के 11 साल बाद भी सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह विषय 34 बार सूचीबद्ध हो चुका है परंतु अभी तक सभी राज्यों ने इस पर अमल के बारे में न्यायालय में हलफनामे दाखिल नहीं किये हैं।
विवाह पंजीकरण अनिवार्य बनाने संबंधी कानून में प्रावधान करने के बारे में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने फरवरी, 2012 में एक निर्णय लिया था और लोकसभा में एक विधेयक भी पेश किया था। परंतु 2014 में 15वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाने की वजह से इसे पारित नहीं कराया जा सका।

उम्मीद की जानी चाहिए कि विधि आयोग की इस नयी रिपोर्ट और इसमें की गयी सिफारिशों के अनुरूप केन्द्र सरकार यथाशीघ्र जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण कानून, 1969 में आवश्यक संशोधन कर विवाह का पंजीकरण अनिवार्य बनाने संबंधी विधेयक संसद में पेश करेगी।

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