कल आधी रात को संसद के ‘सेंट्रल हॉल’ में आयोजित एक जगमगाते कार्यक्रम में लंबे वक्त से प्रतीक्षित ‘गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स’ यानी जीएसटी कानून आखिरकार वजूद में आ गया। प्रतिष्ठित ब्रिटिश अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बड़ा (टैक्स गैंबल) दांव करार दिया है। जीएसटी के फायदे के बारे में सब जानते हैं। यह आसानी से कारोबार कर सकने की राह में खड़ी तमाम तरह की टैक्स संबंधी रुकावटों को खत्म करके न सिर्फ उसकी संभावनाएं बढ़ाएगा, बल्कि कर अनुकूलता व पारदर्शिता की संस्कृति को भी बढ़ावा देगा। इसके कारण जीडीपी में डेढ़ से दो प्रतिशत की बढ़ोतरी की संभावना है, हालांकि यह वृद्धि इस बात पर निर्भर करेगी कि नया टैक्स ढांचा किस तेजी से अपना काम करता है। सबसे बढ़कर, यह साझा बाजार के सपने को सच करेगा।
सन 1947 की आजादी ने भारत को राजनीतिक एकता तो दिला दी, मगर राज्यों को अपने तईं तरह-तरह के टैक्स लगाने की इजाजत देकर इसकी अर्थव्यवस्था को उसने टुकड़े-टुकड़े में बंटा हुआ ही रहने दिया। आर्थिक नजरिये से कहें, तो हम एक भारत नहीं, बल्कि 29 भारत थे। इसलिए जीएसटी एक सुविचारित और दीर्घकालिक सुधार है, जो टुकड़ों में बंटी भारतीय कर व्यवस्था को दुरुस्त करता है। यह एक कायांतरण करने वाला बदलाव है, और हर तरह से एक सकारात्मक सुधार है, न कि कोई मृग-मरीचिका। संक्षेप में कहें, तो जीएसटी गंतव्य आधारित (डेस्टिनेशन बेस्ड) कर है, जो कुल मिलाकर कारोबार व निवेश, दोनों के लिए फायदेमंद है।
जीएसटी विभिन्न स्तरों पर लगने वाले अप्रत्यक्ष करों की जटिल व्यवस्था को केंद्रीय व राज्य करों के रूप में समाहित कर रहा है। अब तक भारतीय आपूर्ति प्रणाली में विभिन्न स्तरों पर अलग-अलग कर लगते रहे हैं। जैसे, किसी वस्तु के निर्माण पर उत्पाद शुल्क; बिक्री कर पर वैट या फिर केंद्रीय बिक्री कर (सेल्स ट्रांजेक्शन से निर्धारित) लगता था, जबकि सेवाओं पर सेवा कर लगता था। अब जीएसटी के तहत पूरे देश में वस्तुओं की आपूर्ति और सेवाओं पर दो ही प्रकार के कर लगेंगे- सेंट्रल गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (सीजीएसटी) और स्टेट गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (एसजीएसटी)। इसी तरह, समस्त अंतरराज्यीय वस्तुओं व सेवाओं पर इंटीग्रेटेड गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (आईजीएसटी) लगेगा। जीएसटी सही तरीके से काम करे, इसके लिए कई कानून पहले ही लागू हो चुके हैं। जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश के तमाम सूबे जीएसटी को लागू करने संबंधी कानून पारित कर चुके हैं। तो फिर ‘गैंबल’ क्या है?
पहला, जीएसटी में कर की विभिन्न दरों की जटिलता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। दलील यह दी जा रही है कि टैक्स की कई तरह की दरें दरअसल कर ढांचे की सरलता के लक्ष्य को भटका देती हैं। हालांकि यह एक वाजिब आलोचना है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अभी कुछ वक्त पहले तक उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क और आयकर की कई जटिल दरों से हमारा साबका पड़ता था। 1997 में जब मैं बतौर राजस्व सचिव कार्यरत था, इन जटिल व परस्पर-व्यापी करों को निपटाने के लिए मिले विशेषाधिकार के दुरुपयोग से जुड़े कई मामलों से मेरा सामना हुआ था। तब सेअब तक कई सुधार हुए और आज काफी कम कर हैं, और वे आसानी से जाने-समझे जा सकते हैं। मुझे यकीन है कि आने वाले समय में सही वक्त पर जीएसटी काउंसिल इसे और सरल बनाने के लिए कदम उठाएगी। इसी तरह, राज्यों की चिंताओं को दूर करने के मुतल्लिक जो कदम उठाए गए हैं, उनकी भी आलोचना हो रही है। केंद्र ने यह फैसला किया है कि कुछ खास मालों पर ऊंचे टैक्स लगाकर वह अगले पांच साल तक राज्यों के राजस्व नुकसान की भरपायी करेगा। यह व्यवस्था राज्यों की आशंकाओं को मिटाने के लिए जरूरी थी, क्योंकि संविधान संशोधन के लिए राज्यों की सहमति और विधानसभाओं द्वारा कानून का पारित किया जाना जरूरी था। फिर राज्यों की इस क्षतिपूर्ति से केंद्र के ऊपर कोई
अतिरिक्त राजकोषीय भार भी नहीं पड़ने वाला। वास्तव में, जीएसटी एक आत्म-निर्भर मॉडल है, जो सहकारी संघवाद की अवधारणा को मजबूती देता है।
दूसरा, रियायतों का कायम रहना; अनेक अर्थशा्त्रिरयों का कहना है कि जीएसटी के दायरे के बाहर रखी गई वस्तुओं व सेवाओं की संख्या काफी ज्यादा है। इनमें शराब भी शामिल है, जिस पर अब भी राज्य आबकारी व वैट कानून से कर दरें तय होंगी। खास पेट्रोलियम उत्पादों, जैसे विमान ईंधन, पेट्रोल आदि पर भी राज्य टैक्स तय करेंगे। बिजली भी जीएसटी के तहत नहीं है। रियल एस्टेट भी इससे बाहर है। अचल संपत्ति की खरीद-बिक्री के लिए स्टांप शुल्क वसूला जाता रहेगा। निस्संदेह, लोग चाहेंगे कि रियल एस्टेट व बिजली को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाए, क्योंकि इन दोनों क्षेत्रों में टैक्स चोरी की भारी आशंका रहती है। पर चूंकि रियल एस्टेट पर जीएसटी काउंसिल में आम राय नहीं थी, ऐसे में इनको बाहर रखना ही उचित था।
तीसरा, ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ एक और मसला है। जीएसटी ट्रांजेक्शन के आधार पर देय टैक्स है और एमआरपी यानी अधिकतम खुदरा मूल्य की अवधारणा अब खत्म हो जाएगी। ऐसे में, मूल्य-निर्धारण प्रक्रिया की सतर्क निगरानी की जरूरत है। जीएसटी कानून के अनुसार, कर्ज की उपलब्धता व फंजिबिलिटी (यानी समान गुणवत्ता आधारित लेन-देन) मौजूदा हालत से काफी बेहतर है और एक कराधीन व्यक्ति अब बड़ी आसानी से इनपुट टैक्स के्रडिट का दावा कर सकेगा। ‘इनपुट’ व ‘इनपुट सेवाओं’ की परिभाषा इतनी व्यापक है कि उनमें ज्यादातर कारोबार आ जाएंगे। जाहिर है, इनपुट के्रडिट्स को हासिल करने में तेजी और पारदर्शिता से जीएसटी को मजबूती मिलेगी। इसके अलावा, इसका मुनाफाखोरी-विरोधी प्रावधान कारोबारियों को बाध्य करता है कि वे करों में कमी का लाभ उपभोक्ताओं को दें। हालांकि, इस संदर्भ में कारोबार जगत की भी कुछ आशंकाएं हैं, जिन्हें दूर करने की जरूरत है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि जीएसटी एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह भारत को एक आकर्षक निवेश क्षेत्र बनाएगा। लंदन के फाइनेंशियल टाइम्स का कहना है कि मोदी इस बात को लेकर बेहद सचेत हैं कि अगर जीएसटी विफल हुआ, तो उनकी छवि को धक्का लगेगा। जीएसटी के क्रियान्वयन में विफलता की स्थिति में नौकरियों के जाने और आर्थिक मंदी की आशंकाएं बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जा रही हैं। लेकिन आखिरी विश्लेषण यही होगा कि हलवे का स्वादतोउसको खाने पर ही पता चलेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)