नई दिल्ली। बैंकों में लेनदेन के दौरान नकली नोट पकड़े जाने के मामले बेहद तेजी से बढ़े हैं। सरकार की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार इन मामलों की संख्या पिछले आठ साल में बढ़कर 3.53 लाख तक पहुंच गई।
सभी बैंकों के लिए नकली नोट पकड़े जाने संबंधी घटना की जानकारी मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून के प्रावधानों के तहत वित्तीय खुफिया इकाई यानी एफआइयू को देना अनिवार्य है।
इसके चलते सरकारी, निजी बैंकों और देश में काम कर रहे विदेशी बैंकों को इन मामलों की सूचना रिपोर्ट (सीसीआर) के रूप में वित्त मंत्रालय की एजेंसी एफआइयू को देनी पड़ती है।
ताजा सरकारी रिपोर्ट के अनुसार सीसीआर (नकली नोट रिपोर्ट) की संख्या वर्ष 2007-2008 में सिर्फ 8,580 थी। वर्ष 2008-2009 में यह बढ़कर 35,730 और वर्ष 2014-15 में 3,53,837 हो गई।
हालांकि, नकली नोटों के रूप में कितनी राशि पकड़ी गई, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है। सीसीआर का अर्थ नकली करेंसी का इस्तेमाल असली नोट की तरह करना है।
अगर बैंक में नकदी के लेनदेन के दौरान किसी कीमती प्रतिभूति या दस्तावेज से जुड़ी जालसाजी की गई है, तो वह भी सीसीआर के तहत आती है।
सरकार ने 2007-08 में पहली बार अनिवार्य किया था कि एफआइयू मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून के तहत ऐसी रिपोर्टें प्राप्त करेगा। वर्ष 2012-13 में उसके पास 3,62,371 सीसीआर दर्ज हुईं।
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सीसीआर का मकसद नकली नोटों को बैंकिंग प्रणाली में घुसने और प्रसारित होने से रोकना है।
ऐसे मामलों की रिपोर्ट दर्ज कराने की शुरुआत होने के बाद आठ साल के आंकड़ों में वृद्धि का रुझान देखने को मिला है।
यह अच्छा संकेत है कि नकली नोट की पहचान कर पाने और एफआइयू को इसकी रिपोर्ट देने संबंधी बैंकों की क्षमता बढ़ रही है।
उनकी ओर से यह नहीं बताया गया कि जब इन रिपोर्टों को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआइ) और अन्य जांच एजेंसियों को सौंपा गया, तो उनका क्या परिणाम निकला।