तो आखिर फैसला हो गया ! 1 जुलाई 2017 से आधार को परमानेंट अकाउंट नंबर (पैन) से जोड़ने के शासनादेश को लागू करने की राह साफ हो गई. आधार और पैन को जोड़ने की कवायद फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत हुई है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगा दी है.
फाइनेंस एक्ट की इस कवायद के पीछे वित्तमंत्री का तर्क था कि अगर आधार-नंबर को पैन से नहीं जोड़ा जाता है तो कालेधन पर लगाम लगाने में मुश्किल आएगी. एक से ज्यादा फर्जी पैन बनवाकर इनकम टैक्स अधिकारियों को धोखा देंगे और पेनाल्टी से बच जाएंगे.
आधार बायोमीट्रिक खूबियों से लैस है, लिहाजा ऐसे लोगों के लिए गड़बड़ी करना मुश्किल हो जाएगा. मुमकिन है कि कोई अपनी अंगुलियों की छाप में हेर-फेर कर ले, लेकिन आंखों की पुतलियों को बदला नहीं जा सकता. मेडिकल साइंस शरीर के रंग-रूप में बदलाव कर सकता है लेकिन आंख की पुतली की बनावट को बदलना नामुमकिन है. ठीक है, चलो मान लिया !
सरकार की रणनीति कितनी कारगर?
लेकिन टैक्स से बचने की जुगत भिड़ाने वाले बहुत पहले से जानते हैं कि टैक्स वसूली करने वाले अधिकारियों से उलझना ठीक नहीं है. जीएसटी काउंसिल ने छोटे व्यापारी को ललचाने के लिए एक लंबा फंदा फेंका है.
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