जिला मुख्यालय से सटे पल्हरी गांव का मजरा किलेदार का पुरवा स्वच्छता की मिसाल पेश कर रहा है। यहां न तो नाली हैं और न ही शौचालय, फिर भी गांव की गलियों में गंदा पानी नहीं बहता। इसके लिए ग्रामीणों ने खास व्यवस्था कर रखी है।
देश भर में स्वच्छता अभियान की धूम है। पर बांदा के इस गांव पर किसी की नजर नहीं पड़ी। ऐसे में गांव वालों ने खुद ही व्यवस्था कर ली है। कोई भी परिवार सड़क पर पानी नहीं बहाता। सबने घर के सामने दो से ढाई फुट का गड्ढा बना रखा है। गंदा पानी उसी में इकट्ठा करते हैं। गड्ढा भर जाने पर पानी बाल्टी में भरकर दूसरे स्थान पर फेंक आते हैं। बच्चों को इन गड्ढों से बचाने के लिए महिलाएं काम करते वक्त बच्चों को बेड पर रस्सी के सहारे बांध देती हैं ताकि वे इन गड्ढों में न गिरें। गांव की आरती का कहना है कि आम रास्ते पर घरों का पानी न बहे इस वजह से गड्ढे में पानी इकट्ठा किया जाता है। यह परंपरा कई दशक से चली आ रही है। अजय का कहना है कि महिलाएं स्नान के पहले इन गड्ढों से गंदा पानी निकालकर फेंक देती हैं।
विकास से अछूता है किलेदार का पुरवा
किलेदार का पुरवा में पक्की सड़क तो है लेकिन सड़क के किनारे नाली नहीं है। बारिश के दिनों में घरों से निकलना दूभर हो जाता है। ओडीएफ के नाम पर यहां एक भी नए शौचालय नहीं बनवाए गए। गिने-चुने परिवारों के पास ही शौचालय है। ग्राम पंचायत पल्हरी की विकास योजनाएं यहां के लोगों को चिढ़ा रही हैं।
एसडीएम ने की सराहना, गांव में कराएंगे विकास
एसडीएम प्रहलाद सिंह का कहना है कि गांवों में शौचालय बनवाए जा रहे हैं। कुछ स्थानों पर दिक्कत है। किलेदार के पुरवा में सड़क निर्माणाधीन है। सड़क बनने के साथ ही किनारे नाली का भी निर्माण कराया जाएगा। गांव के लोगों ने एक अच्छी पहल की है कि उन लोगों ने अपने घर के सामने छोटा गड्ढा पानी एकत्र करने के लिए बना लिया है। ऐसे में पानी की बर्बादी नहीं होती और गंदगी भी नहीं फैलती।
तो इसलिए बच्चों को बांधकर जाती हैं महिलाएं
इस गांव में बच्चों को इन गड्ढों से बचाने के लिए महिलाओं ने नायाब तरीका खोज निकाला है। किलेदार के पुरवा गांव में पुरुष काम पर चले जाते हैं तो महिलाएं और बच्चे ही बचते हैं। ऐसे में काम करते वक्त बच्चों को बेड पर रस्सी के सहारे बांध दिया जाता है। गांव की पूनम के बच्चे वंश (3 साल) और आरती (2 साल) की हैं। दोनों का पैर एक पतली रस्सी से बंधा मिला। पूनम कहती हैं कि बच्चों को साथ लेकर घर का काम तो नहीं कर सकती। इसलिए ऐसा करना पड़ता है। रामरती, आरती, सियादुलारी, माया ने बताया कि बच्चे खेलते-खेलते कहीं भटक न जाएं इसलिए ऐसा करती हैं। बुन्देलखण्ड के तमाम गांवों में ऐसा ही होता है।