तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश से लेकर बिहार तक हमारा पेट भरने वाले किसान आंदोलित हैं। पिछले तीन सालों से पड़े सूखे ने किसानों और खेतीहर मजदूरों ने कमर तोड़ दी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार 2009 से 2015 के दौरान 97847 किसानों और खेतीहर मजदूरों ने आत्महत्या की है। किसानों द्वारा आत्महत्या का मुख्य कारण कर्ज रहा है जबकि खेतिहर मजदूरों के लिए ‘पारिवारिक समस्याएं’ एक बड़ी वजह है। आपको बता दें कि साल 1995 के बाद से 300,000 से अधिक भारतीय किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
साल 2015 में बढ़ें किसानों के आत्महत्या के मामले
साल 2015 में किसानों और खेतिहर मजदूरों द्वारा की गई आत्महत्याओं में संयुक्त रुप से 2 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 2014 में आत्महत्या की संख्या 12,360 थी जो कि 2015 में बढ़ कर 12,602 हुआ है। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2014 से 2015 के बीच देश में किसानों की आत्महत्या के मामले 42 फीसदी बढ़े हैं। 2014 में देश में 5,650 किसानों ने आत्महत्या की थी जो 2015 में बढ़कर 8007 हो गई।
महाराष्ट्र किसानों की हालत ज्यादा खराब
रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र में जहां 2014 में 4,004 किसानों ने आत्महत्या की, वहीं वर्ष 2015 में 4,291 किसानों ने। इनमें से 1293 मामले तो ऋणग्रस्तता के हैं। किसी भी अन्य राज्य की तुलना में महाराष्ट्र में किसानों ने सबसे ज्यादा आत्महत्या की है। महाराष्ट्र के बाद तेलंगाना (1,358) दूसरे, कर्नाटक (1,197) तीसरे और छत्तीसगढ़ 854 मौतों के साथ चौथे पायदान पर है। महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 94.1 फीसदी आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए।
सात साल में 97 हजार मौतें
इंडियास्पेंड द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक 2009 में 17368, 2010 में 15964, 2011 में 14027, 2012 में 13754, 2013 में 11772, 2014 में 12360 और 2015 में 12602 किसानों और खेतीहर मजदूरों ने आत्महत्या की है। वर्ष 2009 से 2013 के बीच किसानों की आत्महत्या में 32 फीसदी की गिरावट हुई है। यह अवधि ‘अच्छे मानसून’ का साल था। लेकिन इसके बाद हर साल आंकड़ों में वृद्धि हुई है।
किसानों के खुदकुशी का कारण
किसानों की सबसे ज्यादा आत्महत्याएं, कर्ज में डूबने की वजह से होती हैं। कर्ज चुकाने का उनके ऊपर इस कदर दबाव होता है कि वे परेशानी में आत्महत्या कर लेते हैं। फसल की बर्बादी की वजह से भी किसान आत्महत्या कर लेते हैं। दिवालियापन के कारण होने वाले आत्महत्या के मामले दोगुने से ज्यादा हुए हैं। वर्ष 2014 में दिवालियपन के कारण होने वाले आत्महत्या के 1,163 मामले दर्ज हुए हैं जबकि वर्ष 2015 में ये आंकड़े बढ़ कर 3,097 हो गए।
नोट -(2016 का डाटा अभी जारी नहीं हुआ है)