इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) द्वारा डॉक्टरों को जेनेरिक (सामान्य) दवा लिखने के आदेश के बाद से खलबली मची हुई है। डॉक्टरों के प्रतिनिधि संगठन आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) ने सरकार से कहा है कि पहले जेनेरिक दवा की सूची दी जाए, इसके बाद जेनेरिक या ब्रांडेड (महंगी) दवा लिखने पर बात होगी। निर्धारित दवा लिखने के लिए डॉक्टरों को बाध्य नहीं किया जा सकता। इधर, दवा विक्रेता अपना मुनाफा खत्म होने के कारण इसके विरोध में खड़े हो गए हैं।
पिछले दिनों एमसीआई ने महंगी दवाओं से मरीजों को राहत दिलाने के लिए सामान्य दवाओं को बढ़ावा देने का आदेश जारी किया था। इसमें कहा गया है कि मरीजों को भारी-भरकम कीमतों वाली ब्रांडेड दवा न खरीदना पड़े, इसके लिए सभी प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टर भी जेनेरिक दवा ही लिखेंगे। सरकार के औषधि केंद्र द्वारा विक्रय की जा रही दवा ही केमिस्ट बेच सकेंगे। डॉक्टरों को भी वही दवा लिखना होगी। आदेश के बाद अब तक इस संबंध में गाइडलाइन जारी नहीं हुई है।
इससे डॉक्टर और केमिस्ट में सबसे ज्यादा नाराजगी है। डॉक्टरों का कहना है कि सरकार मरीजों का हित चाह रही है तो पहले जेनेरिक दवा की उपलब्धता पर्याप्त करें। वहीं व्यापारियों का मानना है कि सरकार ड्रग कंट्रोल एक्ट से दवाइयों की कीमत पर नियंत्रण कर सकती है। इसके लिए दवाइयों को जेनेरिक और ब्रांडेड में बदलने की जरूरत नहीं है।
पहले फार्मासिस्ट पर कसें शिकंजा
आईएमए अध्यक्ष डॉ. संजय लोंढ़े ने बताया डॉक्टरों को कोई भी दवा लिखने में हर्ज नहीं है, क्योंकि हम सिर्फ दवा लिखते हैं, ब्रांड नाम नहीं। सरकार चाहती है कि जेनेरिक दवा लिखें तो तीन हजार दवा की सूची उपलब्ध करवा दे लेकिन वह पहले फार्मासिस्ट पर भी शिकंजा कसे, क्योंकि वे ही एक ही ब्रांड की अलग-अलग नाम से दवा बनाते हैं। जरूरत पड़ने पर दूसरी ब्रांड की दवा भी लिखी जा सकती है।
इधर, केमिस्ट एसोसिएशन के जितेंद्र पारवानी का कहना है कि जेनेरिक दवा बेचना व्यावहारिक रूप से मुश्किल है। अगर डॉक्टर लिख भी देंगे तो इसकी पर्याप्त उपलब्धता नहीं हो सकेगी। करोड़ों-अरबों की दवा कंपनियां जमीन पर आ जाएंगी। लोगों का रोजगार छिन जाएगा। औषधि भंडार में 20 प्रतिशत मार्जिन पर व्यापार होगा। अगर सरकार मरीजों को सस्ती दवा उपलब्ध करवाना चाहती है तो ब्रांडेड दवा की कीमत नियंत्रित करे।