बढ़ती तपिश के सुलगते सवाल– मोनिका शर्मा

साल-दर-साल बढ़ती तपिश चिंता का विषय बन रही है। इस साल मार्च के महीने में ही गुजरात और महराष्ट्र में अलर्ट जारी करना पड़ा है। एक ओर जहां गुजरात के अहमदाबाद में भीषण गर्मी के कारण ‘येलो अलर्ट’ जारी किया गया है वहीं दूसरी ओर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भी पारा रेकॉर्ड तोड़ रहा है। मौसम विज्ञानी चढ़ते पारे को बड़ी चिंता का विषय मान रहे हैं।


मौसम की भविष्यवाणी के अनुसार आने वाले सप्ताह में भारत के लगभग अधिकांश क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस या अधिक तापमान रहेगा। अहमदाबाद शहर का अधिकतम तापमान 42.8 डिग्री दर्ज किया गया तो नगर निगम ने ‘येलो अलर्ट’ की घोषणा कर हीट एक्शन प्लान पर काम भी शुरू कर दिया है ताकि लू और गर्मी से होने वाली मौतों के मामले कम किए जा सकें। देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई में भी गर्मी की तपिश और लू की जलन महसूस की जा रही है, जो कई तरह के खतरों की ओर इशारा कर रही है।


वास्तव में अब ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज जैसे शब्द केवल किताबों का हिस्सा नहीं रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में पिछले 15 वर्षों के दौरान औसत तापमान हर साल बढ़ता ही जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर पिघल रहे हैं और रेगिस्तान पसरते जा रहे हैं। दुनिया भर में मौसम का बदलता मिजाज़ साफ़-साफ़ बताता है कि पर्यावरण का संतुलन किस हद तक बिगड़ गया है। इस पर्यावरणीय बदलाव का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में केवल बीते दस दिनों में ही तापमान में बड़ा उछाल आया है।


ऐसा मार्च के महीने में हुआ है, जिस समय गर्मी की शुरुआत भर होती है। मौसम विभाग ने कुछ दिन पहले जारी अपने अनुमान में कहा था कि साल 2017 में देश के उत्तर-पश्चिम इलाके में गर्मी का असर सबसे ज्यादा रहने का अनुमान है। गौरतलब है कि हमारे यहां जिन क्षेत्रों में सामान्य से अधिक तापमान रहता है, वे ‘कोर हीटवेव जोन’ में आते हैं। इन क्षेत्रों में प्रचंड लू चलती है और तापमान काफी अधिक रहता है। ‘कोर हीटवेव जोन’ में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना आते हैं। साथ ही इसमें महाराष्ट्र का मराठवाड़ा, सेंट्रल महाराष्ट्र और विदर्भ और आंध्र का तटीय क्षेत्र भी शामिल है।
इस बार देखने में आ रहा है कि तपिश का आंकड़ा उन क्षेत्रों में भी बढ़ रहा है जहां गर्मी इतनी तेज़ नहीं हुआ करती थी। ऐसे में प्रतिकूल मौसम के चलते कई बीमारियां दस्तक दे रही हैं। इतना ही नहीं, मौसम की यह तपिश पशुधन, खेती-किसानी और पेयजल संकट के लिए भी चिंता का विषय का है। बढ़ती गर्मी के कारण कई जीव-जंतु और वनस्पतियां विलुप्त हो रही हैं।


राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक 2015 में गर्मी के कारण 2,422 मौतें दर्ज की गई थीं और इन मौतों का कारण हीट वेव ही था। पिछले साल भी 1600 लोगों की गर्मी केकारण मौत हुई थी। इनमें से 700 मौतें लू के कारण हुई थीं। इसीलिए इस वर्ष गर्मी की यह आहट वाकई चिंतनीय है। समय रहते लगातार बढ़ रहे तापमान को रोकने की दिशा में प्रभावी ढंग से काम नहीं किया तो यह स्थिति भयावह हो सकती है।


मौसम विभाग के अनुसार 1901 के बाद 2016 सबसे ज्यादा गर्म साल रहा है। बीते कुछ बरसों में बहुत कुछ ऐसा हुआ है जो मौसम के बिगड़े मिजाज़ के लिए जिम्मेदार है। माना जा रहा है मौसम में तबदीली की मुख्य वजह शहरीकरण है। शहर, जो कंक्रीट के जंगल भर हैं। जिन्हें बनाने के लिए हज़ारों पेड़ों को हर साल काटा जा रहा है। नये पौधे या तो लगाए ही नहीं जाते और लगाये जाते हैं तो उनकी देखभाल ना के बराबर होती है। शहरों और ग्रामीण क्षेत्र में विकास के नाम पर कल-कारखानों और वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जिसके चलते वायु प्रदूषण भी तापमान में इज़ाफा कर रहा है। कई साल पुराने वाहन सड़कों पर बेरोकटोक दौड़ रहे हैं। नासा के अर्थ आब्जर्वेटरी के अनुसार पिछले 50 सालों के अंतराल में वैश्विक तापमान में औसतन 0.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
पर्यावरणविद लम्बे समय से चेता रहे हैं कि प्रकृति से छेड़छाड़ बंद की जाए पर देखने में आ रहा है कि सरकार ही नहीं, आमजन भी इसे गंभीरता से नहीं लेना चाहते। हमें यह समझना होगा कि यह प्राकृतिक आपदा प्रकृति के संरक्षण से ही रोकी जा सकती है।

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