पिछले हफ्ते पूर्व सासंदों की पेंशन की वैधता को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी। सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी सरकार और संसद के दोनों सदनों के सचिवालयों से इस बाबत उनका जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पीआईएल को स्वीकार करने पर संसद के दोनों सदनों में सासंदों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में कहा कि सांसदों की पेंशन के बारे में कोई भी फैसला लेने का हक केवल संसद का है।
कम से कम पांच साल सांसद रह चुके पूर्व सांसदों को पेंशन देने की शुरुआत 1976 में हुई थी। उस समय सांसदों को 300 रुपये प्रति माह पेंशन दिए जाने का प्रावधान था। पांच साल से अधिक समय तक सांसद रहने वालों को हर अतिरिक्त साल के लिए 50 रुपये अतिरिक्त मिलने का प्रावधान था लेकिन अधिकतम पेंशन 500 रुपये तक ही हो सकती थी। तब फैमिली पेंशन की कोई व्यवस्था नहीं थी।
साल 2001 तक पूर्व सांसदों की मासिक पेंशन 3000 रुपये रहो चुकी थी। पांच साल के बाद हर अतिरिक्त साल पर 600 रुपये अतिरिक्त मिलने का प्रावधान किया गया। साल 2004 में न्यूनतम पांच साल सांसद रहने की शर्त खत्म कर दी गयी। अब कोई जितने दिन भी सांसद रहे उसे पेंशन मिलनी तय हो गयी। हालांकि फैमिली पेंशन की ऊपरी सीमा 1500 रुपये नियत की गयी और ये पूर्व सांसद के निधन के पांच साल तक ही मिलती है।