मुस्लिम पर्सनल लॉ और पॉस्को कानून में हैं मतभेदः दिल्ली कोर्ट

नई दिल्ली। अगर एक मुस्लिम युवक किसी नाबालिग लड़की को लेकर भाग जाता है और उससे मुस्लिम लॉ के अनुसार शादी कर लेता है, तो क्या उसे पॉस्को के तहत अपराधी माना जा सकता है। इस सवाल का हवाला देते हुए दिल्ली में एक विशेष अदालत ने पिछले हफ्ते पाया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ और पॉस्को (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट) के प्रावधानों के बीच ‘स्पष्ट मतभेद’ हैं।


अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने 18 वर्षीय एक युवक को बरी कर दिया। उसने 15 वर्षीय नाबालिग मुस्लिम लड़की से शादी की थी। युवक पर अपहरण, रेप और पॉस्को एक्ट की धाराओं के तहत आरोप लगाया गया था। न्यायाधीश ने कहा कि पॉस्को एक्ट के तहत नाबालिग लड़की इतनी सक्षम नहीं थी कि वह शादी के लिए सहमति दे, लेकिन पर्सनल लॉ उसे उस उम्र में शादी करने के लिए अधिकृत करता है।


इसलिए, मुस्लिम पर्सनल लॉ और पॉस्को कानून के प्रावधानों के बीच स्पष्ट मतभेद है। यह अधिनियम उसे एक बच्ची के रूप में मानता है, जो अपनी शादी के लिए सहमति देने में सक्षम नहीं है। जबकि पर्सनल लॉ स्पष्ट रूप से उसे उस उम्र में शादी करने के लिए अधिकृत करता है। न्यायाधीश ने कहा कि संसद को शायद पूर्वोक्त मुद्दे की उम्मीद नहीं थी।


इस मामले में युवक के खिलाफ बच्ची की मां ने पॉस्को की धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी। उसके पुलिस में शिकायद दर्ज कराते हुए कहा था कि लड़का उसकी बेटी को बहलाकर भगा ले गया था। इसके बाद में पुलिस ने इस मामले में पॉस्को अधिनियम के तहत बलात्कार, अपहरण और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। मजिस्ट्रेट के समक्ष अपना बयान दर्ज करने के बाद पीड़ित अपने माता-पिता के साथ नहीं गई और उसे दिल्ली में एक बच्चों के घर ‘निर्मल छाया’ में भेजा गया।

– See more at: http://naidunia.jagran.com/delhi-ncr-muslim-personal-law-conflicts-with-pocso-says-delhi-court-1058801#sthash.7HaGHjgQ.dpuf

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *