रायपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। छत्तीसगढ़ समेत देशभर में जहां खेती का रकबा घटने से किसान संकट में हैं, वहीं कृषि वैज्ञानिकों ने अब किसानों के तनाव को खत्म करने का काम शुरू कर दिया है। इंदिरा गांधी कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने चना बोने की एक ऐसी तकनीकी विकसित कर डाली है, जिससे उतनी ही जमीन पर करीब 40 फीसदी अधिक चने का उत्पादन किया जा सकेगा।
साथ ही बीज भी पहले से आधा बोना पड़ेगा। भारत में 1986 से हर साल 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जा रहा है। तब प्रोफेसर एवं वैज्ञानिक डॉ. सीवी रमन ने कोलकाता में उत्कृष्ट खोज की थी। तब से इस दिन यह दिवस मनाते हैं। इंदिरा गांधी कृषि विवि में सस्य विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डॉ. एचएल सोनबोइर और वैज्ञानिक डॉ. विवेक त्रिपाठी ने चना बोने की एक नई तकनीक विकसित की है। इसे साई विधि नाम दिया गया है।
वैज्ञानिकों का दावा है कि रबी मौसम में चने के उपज में 40 प्रतिशत वृद्धि होगी। विवि के अनुसंधान प्रक्षेत्र में इस रबी मौसम में 15 एकड़ में इसका सफल परीक्षा कर लिया गया है। 50 से अधिक वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का अवलोकन किया। वे भी हतप्रभ रह गए हैं।
ये हैं परिणामः किस्मों एवं तकनीकी से कृषि करने पर चना का उत्पादन लगभग 16-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि का आविष्कार 3-4 वर्षों के गहन अध्ययन के बाद किया गया। 40 प्रतिशत बीज की मात्रा कम लगती हैं। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 50-55 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है और उत्पादन में वृद्घि लगभग 40 प्रतिशत होती है।
तकनीकी के सिर्फ पांच चरण
अधिक दूरी पर बोआईः चने की बोआई अधिक दूरी करीब 50 सेंटीमीटर कतार से कतार दूरी एवं 20 सेंटीमीटर पौध से पौध की दूरी पर करनी है। अधिक दूरी पर बोआई करने से पौधो को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिल पाता है एवं शाखाएँ एवं फल्लियाँ ज्यादा आती है।
एक स्थान पर दो बीजों की बोआईः चने की बोआई करते समय एक जगह पर दो बीज डालकर ढंक दें। अनुसंधान परिणाम बताते हैं कि एक स्थान पर चने के दो पौधे होने पर एक पौधे की तुलना में 60 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त हुआ है।
30 दिन बाद खुंटाईः चने की बोआई के लगभग एक महीने बाद प्रत्येक बड़ी शाखाओं को उपरी 3 से4 पत्तियाँ सहित तोड़ देना चाहिए। इससे चने में ऊपरी बढ़वार रुकती है और शाखाओं में वृद्घि होती है।
यांत्रिक खरपतवर नियंत्रण
चने में खरपतवार नियंत्रण हेतु यांत्रिक विधि का उपयोग करना चाहिए। इससे खरपतवार नियंत्रण के साथ साथ मृदा में वायु का संचार होता है जिससे जड़ एवं ग्रथियाँ का विकास अधिक होता है। यांत्रिक नींदा नियंत्रण दो बार करें पहली बोआई के 18-20 दिन बाद एवं दूसरा बोआई के 40-45 दिन बाद। यांत्रिक नींदा नियंत्रण हेतु खुरपी, फावड़ा या कुदाली का उपयोग करें।
सिंचाई प्रबंधन
प्रथम सिंचाई बोआई के तुरंत बाद करना चाहिए जिससे बीजों का उचित अकुंरण हो। दूसरी सिंचाई लगभग बोआई के 35 दिन बाद शाखा अवस्था में तथा तीसरी सिंचाई 55-60 दिन बाद फूल कीप्रारंम्भिक अवस्था में करें।
इसलिए होगा किसानों को फायदा
राज्य में 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। धान खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्रमुख फसल है। चना रबी मौसम में उगाई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसल है। यह भोजन मे प्रोटीन का प्रमुख है। इसमें 20से 22 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। राज्य में चने की खेती 3.5 से 4.0 लाख हेक्टेयर क्षेत्र मे की जाती है। औसत उत्पादकता लगभग 1140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।
रायपुर समेत कई जिलों में उत्पादन
इसकी खेती राज्य में दुर्ग, कबीरधाम, बेमेतरा, राजनांदगांव, रायपुर, बिलासपुर, धमतरी, आदि जिले में की जाती है। इन क्षेत्रो में चने की खेती खरीफ मौसम की धान या सोयाबीन की कटाई के बाद की जाती है।
कम खेत में ज्यादा उत्पादन और उन्नत किस्म व तकनीकी का विकास करके कृषि वैज्ञानिक लगातार किसानों को सौगात दे रहे हैं। उनमें से एक ये फार्मूला भी है जो बेहद प्रशंसनीय है। – डॉ. एसके पाटिल, कुलपति, कृषि विवि