वित्त मंत्री का बजट भाषण जिन दस बड़े विषयों के इर्द-गिर्द पेश हुआ उसमें सबसे ऊपर ‘किसान’ को रखा गया है. भाषण के सबसे आखिर के वाक्य से तुरंत पहले की पंक्ति है, ‘अब हमारा जोर किसानों, गरीब और समाज के अभावग्रस्त वर्गों के लाभ के लिए इन सभी प्रस्तावों पर अमल का रहेगा’.
भाषण किसान के नाम से शुरू हुआ, किसान के नाम से खत्म और जहां खत्म हुआ वहां किसानों के लिए दर्दमंदी का इजहार था. भाषण के आखिर के वाक्य में वित्त मंत्री ने किसान को ‘गरीब’ और ‘अभावग्रस्त’ वर्गों के साथ रखा तो माना यही जायेगा कि सरकार किसानों के दर्द से अनजान नहीं है. दर्द चूंकि दवा की मांग करता है तो ख्याल आएगा कि शायद किसानों का ड्रीम-बजट पेश हुआ है!
लेकिन सपने और सच्चाई में बड़ा फासला होता है. अंग्रेजी की एक मशहूर कविता में आता है- ‘बिट्वीन द आयडिया एंड द रियल्टी… फाल्स द शैडो.’
सरकार के सोचे और किसान की सच्चाई के बीच भी एक धुंध है. हमारे लोकतंत्र में सरकार और किसान जब भी एक-दूसरे को देखना चाहते हैं, यह धुंध बीच में आ जाती है. सरकार को किसान का चेहरा ठीक से नहीं दिखता और किसान को सरकार की नीयत का पता नहीं चलता.
इस बार भी यही हुआ, पिछली बार भी ऐसा ही हुआ था. बीते कई सालों से ढर्रा एक सा रहा है- सरकार अपनी तरफ से किसानों का ड्रीम बजट पेश करती है, लेकिन उस बजट में किसानों के दुख की दवा नहीं होती.
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