बजट को पहले पेश करने और रेल बजट को उसका हिस्सा बनाने की पहल शासन की रीति-नीति में बुनियादी बदलाव लाने के मोदी सरकार के प्रयासों की एक और कड़ी है। इसके पहले केंद्र सरकार योजना आयोग को समाप्त कर उसके स्थान पर नीति आयोग का गठन कर चुकी है। पिछले साल आठ नवंबर को पांच सौ और एक हजार रुपए के नोटों का चलन बंद करने का निर्णय लेकर प्रधानमंत्री ने यह साबित किया कि वह अर्थव्यवस्था को नया स्वरूप देने के लिए जोखिम भरे फैसलों से भी पीछे नहीं हटने वाले। अब आम बजट के रूप में मोदी सरकार के पास आर्थिक सुधारों के सिलसिले को और तेज करने का अवसर है। उम्मीद है कि वित्त मंत्री की ओर से बजट में कुछ ऐसे नए सुधार घोषित किए जाएंगे जिनसे अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। नोटबंदी के ऐतिहासिक फैसले के बाद आम और खास लोग आम बजट का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। सभी की दिलचस्पी यह जानने में है कि देश की अर्थव्यवस्था की भावी राह क्या होगी? उद्योगपति वित्त मंत्री के इस आश्वासन के कारण बजट से विशेष उम्मीद कर रहे हैं कि कॉर्पोरेट टैक्स की दरें कम की जाएंगी। दूसरी ओर पिछले लगभग तीन माह से नकदी के संकट से जूझने वाली जनता, विशेषकर नौकरीपेशा वर्ग आयकर में छूट मिलने की उम्मीद कर रहा है। इस सबके बीच इस तथ्य की अनदेखी नहीं कीजा सकती कि देश के विकास के लिए जितने धन की आवश्यकता है, उसे केवल योजनागत व्यय के सहारे पूरा नहीं किया जा सकता। यह महत्वपूर्ण है कि सरकार ने नियोजित और अनियोजित व्यय के अंतर को समाप्त करने का फैसला किया है। यह एक बड़ा बुनियादी बदलाव है। इसके सकारात्मक प्रभाव दिखने चाहिए।
मौजूदा समय में भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी चुनौती रोजगारों के सृजन और कृषि अर्थव्यवस्था के कायाकल्प की है। उम्मीद की जा रही है कि वित्त मंत्री इन दोनों चुनौतियों को अपनी शीर्ष प्राथमिकताओं में रखेंगे। रोजगार के सृजन में सर्विस सेक्टर की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह क्षेत्र लगातार विकास कर रहा है इसलिए सरकार के स्तर पर यह आवश्यक है कि डिजिटल सेवाओं पर आधारित सर्विस सेक्टर को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष प्रयास किए जाएं। फिलहाल रोजगार के जो अवसर उपलब्ध हो रहे हैं, उनमें एक बड़ी संख्या श्रमिकों के स्तर वाली नौकरियों की है। भारतीय उद्योग जो उत्पादन कर रहे हैं, उनमें से अधिकांश के पेटेंट अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के पास हैं। इसका मतलब है कि इन उद्योगों से जो भी कमाई होती है, वह पेटेंट के कारण अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को चली जाती है। स्पष्ट है कि देश में शोध को बढ़ावा देने की आवश्कता है। सरकार को इसके लिए उद्योग जगत को प्रोत्साहित करना होगा। उद्योगों को भी सरकार की मदद से घरेलू अनुसंधान के जरिए तैयार उत्पादों के पेटेंट के लिए पहल करनी होगी।
काले धन पर कारगर तरीके से अंकुश लगाने के लिए पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट बंद करने के साथ ही सरकार डिजिटल पेमेंट को लगातार बढ़ावा दे रही है। सरकार की सोच यह है कि ज्यादा से ज्यादा नकदविहीन लेन-देन होने से दो नंबर की अर्थव्यवस्था समाप्त हो जाएगी और पूरा लेन-देन एक नंबर में होने से जो अतिरिक्त टैक्स की प्राप्ति होगी, उसे देश के विकास में लगाया जा सकेगा। नोटबंदी का फैसला इसी विचार के तहत लिया गया था, लेकिन जिस तरह पांच सौ और एक हजार रुपए वाली लगभग पूरी मुद्रा बैंकों में जमा हो गई, उससे कुछ लोगों ने यह निष्कर्ष निकाल लिया कि सरकार का नोटबंदी का फैसला नाकाम हो गया। यह सच नहीं, क्योंकि कोई भी रकम सिर्फ बैंक में जमा हो जाने भर से नंबर एक नहीं हो जाती। नोटबंदी के बाद जो भी धनराशि बैंकों में जमा हुई है, वह एक तरह से सरकार के हिसाब में आ गई है। अब बजट में वित्त मंत्री यह बता सकते हैं कि वह इस रकम का किस तरह उपयोग करने जा रहे हैं। देखना यह भी है कि इस रकम का इस्तेमाल देश की आर्थिक स्थिति सुधारने के साथ ही बैंकों की हालत सुधारने में कैसे किया जाता है?
मोदी सरकार की कोशिश है कि आर्थिक विकास दर दो अंकों में पहुंचे। तमाम घरेलू-बाहरी चुनौतियों के बावजूद यह संभव है, लेकिन इसके लिए बड़े राज्यों और खासकर उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत विकास की दौड़ में पीछे दिख रहे अन्य राज्यों को आर्थिक तौर पर सबल होना होगा। भाजपा शासितराज्यों– मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात के साथ कुछ छोटे राज्यों ने हाल के वर्षों में तीव्र आर्थिक प्रगति की है। इसका लाभ इन राज्यों के नागरिकों को भी मिला है, लेकिन उत्तर प्रदेश और बंगाल जैसे राज्यों में कृषि विकास दर अन्य प्रदेशों से काफी पीछे है। यह तब है जब नीति आयोग के गठन के साथ केंद्र ने राज्यों को और ज्यादा पैसा देना आरंभ किया है। माना जा रहा है कि जीएसटी लागू होने से राज्यों की आमदनी और अधिक बढ़ेगी, लेकिन वे आर्थिक रूप से तब मजबूत बनेंगे, जब विकास के मामले में संकीर्ण राजनीति से बचे रहेंगे। इस राजनीति का ही यह नतीजा है कि कई राज्य केंद्रीय सहायता का सदुपयोग नहीं कर पा रहे हैं। स्पष्ट है कि बजट के जरिए विकास को गति देने की केंद्र सरकार की कोशिश में राज्यों के भी सक्रिय योगदान से बात बनेगी।
(लेखक दैनिक जागरण समूह के सीईओ व प्रधान संपादक हैं)
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