नई दिल्ली। "हम यह भूल गए हैं कि अगर हम अपने माता-पिता की बुढ़ापे में सेवा नहीं करेंगे तो हमारे बच्चे भी हमारे बुढ़ापे में हमारा साथ छोड़ देंगे।"यह टिप्पणी करते हुए दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने 74 वर्षीय बुजुर्ग महिला को राहत प्रदान की है। अतिरिक्त जिला जज कामिनी लॉ ने महिला के बेटे व बहू को उसके घर से बाहर निकलने का आदेश दिया है।
अदालत ने दंपती को महिला को मुकदमा दायर करने (अक्टूबर 2015) से अब जब तक वह मकान खाली नहीं करते 5 हजार रुपए प्रतिमाह मुआवजा राशि के रूप में देने का निर्देश दिया है।
हेराफेरी कर दस्तावेज अपने नाम कराए
दरअसल, याचिकाकर्ता शांति देवी मध्य दिल्ली में रहती हैं। उनके बेटे-बहू ने हेराफेरी कर उनसे मकान के दस्तावेज अपने नाम करा लिए। जब महिला को इसका अहसास हुआ तो उसने बेटे को जायदाद से बेदखल कर दिया और बेटे-बहू को अपने घर से बाहर निकालने की गुहार लगाई थी।
बुजुर्गों को दबाने के लिए कानून का दुरुपयोग
अदालत ने कहा कि बुजुर्गों को दबाने के लिए ऐसे समय घरेलू हिंसा व दहेज प्रताड़ना के कानूनों का धड़ल्ले से दुरुपयोग हो रहा है, जब उन्हें सबसे अधिक देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे समय में कोई उन्हें आर्थिक व भावनात्मक ठेस पहुंचाए अदालत ऐसा होने नहीं देगी। अदालत ने कहा कि न्यायपालिका को बच्चों द्वारा अपने माता-पिता के साथ असंगत व गैरकानूनी बर्ताव के खिलाफ काम करना चाहिए।
इस उम्र में मुकदमा दायर करना पड़ा
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता साधारण महिला है जिसे बेटे-बहू की प्रताड़ना के चलते जीवन के इस पड़ाव में मुकदमा दायर करना पड़ा है। बेटे-बहू ने उसके साथ केवल प्रॉपर्टी के लिए यह सब किया। याची को मानसिक वेदना से गुजरना पड़ा। उसे पुलिस व कोर्ट की ठोकरें खानी पड़ीं। अदालत ने कहा कि यह केवल एक महिला की कहानी नहीं। यह उन हजारों बुजुर्गों की परेशानी है जिन्हें उनके बच्चे तंग करते हैं।
अदालत ने कहा कि अपने माता-पिता की देखरेख, सम्मान करना हमारी भारतीय सभ्यता व संस्कृति का हिस्सा है। अदालत ने मकान के उन दस्तावेजों को भी रद्द कर दिया जो याची के बेटे ने अदालत में पेश कर मकान पर अपना हक जमाया था। अदालत ने बेटे पर मकान को आगे किसी को बेचने पर भी रोक लगा दी है। अदालत ने यह माना कि बेटे ने हेराफेरी से मां के हस्ताक्षर लेकर यह दस्तावेज बनाए थे।