पूंजी खर्च की कमी से आर्थिक सुस्ती– भरत झुनझुनवाला

एनडीए सरकार को आसीन हुए लगभग तीन वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। विकास दर लगभग 7 प्रतिशत पर शिथिल रही है। आगामी बजट यह तय करेगा कि अगले दो वर्षों में विकास दर इसी प्रकार शिथिल बनी रहेगी अथवा गतिमान हो जायेगी। विकास प्रक्रिया निवेश आधारित होती है। जैसे रिक्शे वाला बचत करके उस रकम का निवेश आटो रिक्शा खरीदने में करे तो उसका आर्थिक विकास होता है। तुलना में यदि उस बचत का उपयोग वह टीवी खरीदने में अथवा सोना खरीदने में करे तो उसकी विकास दर शून्य रहती है। यही फार्मूला देश पर लागू होता है। यदि देश अपनी आय का निवेश करता है तो देश की विकास दर में वृद्धि होती है।

 

बीते समय में केन्द्र सरकार ने सातवें वेतन आयोग तथा वन रैंक, वन पेंशन को लागू किया है। केन्द्र सरकार के कर्मियों की आय बढ़ी है। इस आय का उपयोग कर्मियों द्वारा मुख्यतः तीन तरह से किया गया है। पहला उपयोग सोना खरीदने के लिये किया गया है। बीते समय में भारत में सोने के आयात में वृद्धि हुई है। दुकानदार बताते हैं कि सोने की खरीद मुख्यतः सरकारी कर्मियों द्वारा की जा रही है। यह रकम देश से बाहर जा रही है। इनके द्वारा बढ़े वेतन का दूसरा उपयोग खपत के लिये किया जा रहा है, जैसे नयी कार की खरीद के लिये। इस खर्च का न तो दुष्प्रभाव पड़ता है और न ही सुप्रभाव। इनके द्वारा तीसरा उपयोग शेयर बाजार में निवेश के लिये किया जाता है। इस निवेश का सुप्रभाव पड़ता है। जैसे रिक्शे वाला बचत करके आटो रिक्शा खरीदे। लेकिन इस दिशा में इनके द्वारा कम ही निवेश किया जा रहा है। जैसा कि पिछले तीन वर्षों में शेयर बाजार की शिथिलता से संकेत मिलते हैं। सेंसेक्स 25,000 तथा 29,000 के बीच ही मंडराता रहा है। सातवें वेतन आयोग एवं वन रैंक, वन पेंशन का विकास दर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सोने की खरीद ने नुकसान पहुंचाया है। कार की खरीद का शून्य प्रभाव पड़ा है। विकास दर पर सकारात्मक प्रभाव न्यून रहा है।

 

केन्द्र सरकार द्वारा किये जा रहे अन्य खर्चों को भी इन्हीं कसौटी पर तोलना होगा। केन्द्र सरकार के खर्चों को पूंजी एवं राजस्व श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। पूंजी खर्चों में राफेल फाइटर प्लेन की खरीद, नयी रेलवे लाइनों को बिछाना तथा हाईवे बनाना आदि शामिल हैं। इनका विस्तार कम ही हुआ है। सरकार द्वारा जारी मिडटर्म फाइनेन्शियल स्टेटमेंट के अनुसार वर्ष 2015-2016 में सरकार के कुल खर्च में 13.6 प्रतिशत पूंजी खर्च थे। वर्ष 2016-17 में पूंजी खर्च घटकर 13.3 प्रतिशत रहने की आशा है।

 

स्पष्ट है कि सरकार के पूंजी खर्चों में गिरावट जारी है। वास्तव में सरकारी निवेश में गिरावट इससे बहुत ज्यादा है। राफेल जेट एवं हाईवे पर किये गये पूंजी खर्चों में मौलिक अन्तर होता है, यद्यपि दोनों ही पूंजी खर्चों में ही गिने जाते हैं। राफेल जेट खरीदने से रकम देश से बाहर चली जाती है, जैसे सोने की खरीद से बाहर जाती है। फाइटर प्लेन के आनेसे मनोबल तो बढ़ता है लेकिन भूमिगत अर्थव्यवस्था पर कोई सुप्रभाव नहीं पड़ता है। किसान को अपनी फसल को शहर तक पहुंचाने में राफेल जेट से मदद नहीं मिलती है।

 

बीते समय में एनडीए सरकार द्वारा इसी प्रकार के पूंजी खर्च में वृद्धि अधिक की गयी है। हाईवे आदि में निवेश कम ही किया गया है। इससे विकास दर धीमी पड़ी हुई है। सरकार का प्रयास रहा है कि अपने पूंजी खर्चों में इस कटौती की भरपाई निजी निवेश में वृद्धि से कर ले। जैसे हाईवे का निर्माण पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के अंतर्गत निजी कम्पनी द्वारा किया जाये। इस दिशा में सरकार को सफलता भी मिली है। देश के हर हिस्से में हाईवे का निर्माण युद्धस्तर पर हो रहा है। इस निवेश का निश्चित रूप से सुप्रभाव भी पड़ा है। परन्तु यह रकम निजी निवेश में कटौती करके सरकारी निवेश में स्थानान्तरित की गई है। जैसे कोई उद्यमी सीमेंट का कारखाना लगाने के स्थान पर पीपीपी मोड में हाईवे बनाये तो कुल निवेश नहीं बढ़ता है। अतः अर्थव्यवस्था शिथिल पड़ी हुई है।

 

कुल मिलाकर परिस्थिति इस प्रकार बनती है। सातवें वेतन आयोग एवं वन रैंक, वन पेंशन से देश की रकम बाहर गई है। साथ-साथ सरकारी पूंजी निवेश में कटौती की जा रही है। जो पूंजी खर्च की जा रही है, उसमें से ज्यादा हिस्सा राफेल जेट जैसे रक्षा खर्च का है, जिससे रकम बाहर जा रही है। देश के अन्दर सरकारी पूंजी निवेश में भारी गिरावट आ रही है। इस गिरावट की कुछ भरपाई राफेल जेट की खरीद से हुई मनोबल में वृद्धि तथा पीपीपी मोड में हुए निजी निवेश से हो रही है। परन्तु इसके बावजूद कुल निवेश में गिरावट जारी है। यही कारण है कि हमारी आर्थिक विकास दर शिथिल रही है।

 

इस परिस्थिति में वित्त मंत्री के हाथ बंधे हुए हैं। सातवें वेतन आयोग तथा वन रैंक, वन पेंशन ने देश का खजाना खाली कर दिया है। वित्त मंत्री चाहेंगे तो भी पूंजी खर्च बढ़ाने में असमर्थ हैं। ऐसे में कुछ अन्य तरीके तलाशने होंगे। वित्त मंत्री को चाहिये कि केंद्रीय कर्मियों को दिये जाने वाले डीए को दो वर्षों के लिये फ्रीज कर दें। इससे बजट में राहत मिलेगी। बीते दिनों सरकार ने कुछ आईएएस और आईपीएस अधिकारियों को अकुशलता के कारण बर्खास्त कर दिया था। सरकार को चाहिये कि हर सरकारी विभाग के हर स्तर के कर्मियों का बाहरी मूल्यांकन कराये और अकुशलतम 10 प्रतिशत कर्मियों को बर्खास्त कर दे। इससे सरकारी कर्मियों को दिये जाने वाले वेतन का भार कम होगा और सरकारी कार्य की कुशलता में भी सुधार होगा। इन कदमों से बची रकम से पूंजी निवेश बढ़ाया जा सकता है।

 

दूसरा रास्ता सार्वजनिक इकाइयों के स्ट्रेटेजिक विनिवेश का है। वर्तमान में सरकारी इकाइयों के शेयरों के एक हिस्से का विनिवेश किया जा रहा है। इस विनिवेश से मिली रकम को सरकारी कर्मियों को बढ़े डीए देने में किया जा रहा है। एक हिस्से के विनिवेश के स्थन पर 100 प्रतिशत सरकारी शेयर का विनिवेश किया जा सकता है।मिलीरकम का निवेश हाईवे आदि में किया जा सकता है। इस दिशा में शीघ्र कदम उठाना चाहिये। अन्यथा परिस्थिति बिगड़ती जायेगी।

 

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