‘हिन्दू धर्म में विवाह पवित्र संस्कार है, कोई करार नहीं। इसे किसी अनुबंध से बांधा नहीं जा सकता है।’ दिल्ली हाईकोर्ट ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने रीति-रिवाज के बगैर अनुबंध के जरिए शादी करने वाली एक महिला को मृतक की पत्नी स्वीकार करने से इनकार करते हुए यह बात कही।
अनुकंपा के आधार पर नौकरी मांगी थी: महिला ने दिल्ली सरकार के अस्पताल में काम करने वाले व्यक्ति की पत्नी होने का दावा करते हुए अनुकंपा के आधार पर नौकरी की मांग की थी। जस्टिस प्रतिभा रानी ने अपने फैसले में कहा कि ‘हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत रीति-रिवाज, संस्कार को अपनाए बगैर महज दस्तावेजों पर किए गए अनुबंध को विवाह नहीं माना जा सकता है।’
निचली अदालत के फैसले को सही बताया: जस्टिस प्रतिभा रानी ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए महिला की याचिका खारिज कर दी। निचली अदालत ने भी महिला की मांग को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने अपने आदेश में सही कहा है कि महिला कथित शादी के आधार पर व्यक्ति की वैध विवाहित पत्नी की हैसियत का दावा नहीं कर सकती है और उसके आदेश को अवैध नहीं ठहराया जा सकता है।
शपथपत्र के जरिए हुई शादी को नहीं माना गया
एक महिला ने हाईकोर्ट में दिल्ली सरकार के अस्पताल के कर्मचारी रामफल (बदला नाम) की विधवा होने का दावा किया। उसने बताया कि रामफल से 2 जून 1990 में विवाह संबंधी दस्तावेज (अनुबंध) व शपथपत्र के जरिए विवाह किया था। हालांकि, जिस वक्त महिला ने रामफल से शादी करने का दावा किया, उस समय वह पहले से ही शादीशुदा थे। पहली पत्नी उसके साथ में रहती थी, जिसकी मौत 11 मई 1994 में हो गई। महिला ने हाईकोर्ट को बताया कि उसके पति की मौत वर्ष 1997 में हो गई। इसके बाद महिला ने अस्पताल से पति के बदले नौकरी देने की मांग की।