यूनिकॉर्न के साथ मुश्किल यह है कि उनका कोई अस्तित्व नहीं होता। इनकी बस कल्पना की जा सकती है। अगर आप भी घोड़े की शक्ल और दोनों कानों के बीच माथे पर सींग निकले इस काल्पनिक जानवर को लेकर बुनी गई बेहतरीन कहानी पढ़ना चाहते हैं, तो मैं पीटर बीगल का उपन्यास द लास्ट यूनिकॉर्न पढ़ने की सलाह दूंगा। यह उन परेशानियों पर तत्काल रोशनी डालता है, जिनसे असली यूनिकॉर्न का वास्ता पड़ता है। चौंकिए मत! दरअसल, एक अरब डॉलर से अधिक मूल्य की स्टार्ट-अप कंपनी को भी यूनिकॉर्न कहा जाता है। ये असली कंपनियां होती हैं। हालांकि इनका वैल्यूएशन यानी मूल्यांकन कभी-कभी काल्पनिक हो सकता है।
यह मूल्यांकन हकीकत से कितना दूर होता है, हम भारतीयों ने इसे पिछले हफ्ते जाना, जब मिंट ने स्नैपडील के ‘डाउन-राउंड’ का खुलासा किया। ‘डाउन-राउंड’ पूंजी जुटाने की वह कवायद है, जिसमें स्टार्ट-अप कंपनी अपना मूल्यांकन पिछली बार पूंजी जुटाने के समय किए गए मूल्यांकन से कम आंकती है। बेबाक विश्लेषकों की नजर में यह ‘अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने’ जैसा है। हालांकि मैं इसे फिर से प्रभावशाली बनने की कवायद के रूप में देखता हूं।
स्नैपडील की शुरुआत रोहित बंसल और कुणाल बहल ने की थी। सच कहूं, तो भारत में स्टार्ट-अप का पोस्टर-ब्यॉय इन्हीं दोनों को कहा जाना चाहिए। एक कूपन वेबसाइट के रूप शुरू हुई स्नैपडील ने बाजार में जल्द ही खुद को बदल लिया। एक समय तो इसे फ्लिपकार्ट की तरह देखा जाने लगा था। मगर अमेजन डॉट कॉम के भारतीय बाजार में उतरने के बाद स्नैपडील पहले तो शीर्ष की ओर बढ़ी, लेकिन फिर खिसककर नंबर तीन पर आ गई। इसकी गवाही मौजूदा वित्तीय वर्ष (2016-17) के आंकड़े दे रहे हैं। बीते 18 जनवरी को मिंट ने जो खबर प्रकाशित की थी, उसके मुताबिक, स्नैपडील का घाटा 2014-15 के 1,328 करोड़ के मुकाबले 2015-16 में बढ़कर 3,316 करोड़ रुपये हो गया। इस दौरान इसका राजस्व महज 56 फीसदी बढ़ा, जो 2014-15 में 933 करोड़ था और 2015-16 में बढ़कर 1,457 करोड़ हो गया है। हालांकि दिलचस्प यह है कि कंपनी का राजस्व 2014-15 में 2013-14 के मुकाबले 450 फीसदी बढ़ा था।
इन आंकड़ों के बहाने स्नैपडील की रणनीति काफी कुछ बदल सकती है। साल 2016 में कंपनी ने फैसला लिया था कि वह ग्रॉस मर्चेन्डाइज वैल्यू यानी सकल उत्पाद मूल्य (किसी ऑनलाइन मंच से बेची जाने वाली वस्तुओं का सकल मूल्य) के गुणा-भाग में उलझने की बजाय शुद्ध राजस्व कमाने पर जोर देगी। सीईओ कुणाल बहल ने मिंट को दिए एक इंटरव्यू में खुद इसका खुलासा किया था। इसीलिए 2016 की शुरुआत से स्नैपडील ने न सिर्फ दी जाने वाली छूट में कमी की, बल्कि विज्ञापनों पर खर्च भी कम किया। कंपनी ने अपनी संचालन क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान दिया और घाटा पाटने की कोशिश की। कुछ प्रयासों के अच्छे नतीजे कंपनी के 2015-16 के आकंड़ों में दिखते भी हैं। हालांकि असली तस्वीर तो 2016-17 के आंकड़ों से ही बनेगी, जिसे दिसंबर के आसपास सार्वजनिक किए जाने की उम्मीद है। मगर इस बीच अपने निवेशक सॉफ्टबैंक ग्रुप कॉरपोरेशनसे तीन से चार अरब डॉलर के वैल्यूएशन पर पूंजी जुटाने को कहना यही बता रहा है कि स्नैपडील में सब कुछ योजना के मुताबिक नहीं हो सका है। पिछली बार कंपनी ने अपनी कीमत 6.5 अरब डॉलर लगाई थी और इसी पर निवेश जुटाए थे।
मिंट में स्नैपडील को लेकर छपी खबर के बाद, या कहूं, तो अगले ही दिन इस भारतीय यूनिकॉर्न द्वारा ‘डाउन-राउंड’ की आशंका सच के करीब लगने लगी।
वैसे, बीते 25 जनवरी को मिंट ने यह खबर भी दी कि नवंबर में फिडेलिटी इन्वेस्टमेंट ने फ्लिपकार्ट में अपने निवेश का मूल्य एक तिहाई घटा दिया है। उसने फ्लिपकार्ट की कीमत 5.58 अरब डॉलर बताई, जबकि पिछली बार निवेश जुटाने के समय यह 15 अरब डॉलर की कंपनी थी। हालांकि फ्लिपकार्ट के साथ यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। फ्लिपकार्ट के संस्थापक सचिन बंसल का कहना है कि यह सब विशुद्ध रूप से ‘सैद्धांतिक’ कवायद होती है, जिनका वास्तविकता से कोई वास्ता नहीं होता। असल वैल्यूएशन तो तब सामने आएगा, जब लेन-देन कागजों पर साकार होगा। हालांकि सच्चाई यह भी है कि ऐसी कवायद भले ही पूरी तरह वास्तविक आंकड़ों पर न हों, लेकिन निवेशक की धारणा को तो प्रभावित करती ही हैं। जैसे कि फिडेलिटी इन्वेस्टमेंट ने फ्लिपकार्ट का जो मूल्यांकन किया, वह मॉर्गन स्टेनली के लगभग बराबर ही है। मॉर्गन ने भी नवंबर में फ्लिपकार्ट में अपने शेयरों के मूल्य 38 फीसदी घटा दिए थे, जिससे कंपनी का मूल्यांकन घटकर 5.54 अरब डॉलर रह गया था।
मगर मेरा मानना है कि दोनों आंकड़े सही नहीं हैं। फ्लिपकार्ट के प्रदर्शन से जुड़े नए आकंड़ों को देखें, तो 2015-16 में इस कंपनी ने भारतीय बाजार में न सिर्फ अपना राजस्व बढ़ाया है, बल्कि घाटा भी कम किया है। इसीलिए 15 अरब डॉलर का मूल्यांकन जहां कुछ ज्यादा लगता है, वहीं 5.5 अरब डॉलर का मूल्यांकन भी सच के करीब नहीं दिखता। यह शायद इससे समझ में आ सकता है कि फ्लिपकार्ट में हिस्सेदारी रखने वाली छह कंपनियों ने इसका मूल्यांकन 5.54 अरब डॉलर से लेकर 10 अरब डॉलर के बीच किया है। वैसे, अगर हमें फ्लिपकार्ट की असल कीमत जाननी हो, तो पिछले साल के अंत में मिंट की ही एक खबर पर गौर करें, जिनमें कहा गया था कि यह कंपनी 2017 की शुरुआत से पहले अपने मौजूदा और नए निवेशकों से एक अरब डॉलर निवेश पाने की जद्दोजहद में है।
लिहाजा डाउन-राउंड बेशक मौजूदा निवेशकों और संस्थापकों के लिए दर्द भरा फैसला हो, खासतौर पर भारत जैसे देश में, जहां इसे विफलता के तौर पर देखा जा सकता है, मगर लंबी दौड़ के लिए यह टिकाऊ और फायदे का कदम साबित हो सकता है। भारत में किसी यूनिकॉर्न का डाउन-राउंड के लिए तैयार होना एक मिसाल जैसा होगा। तब वैसी स्टार्ट-अप भी अपने अति-महत्वाकांक्षी निवेशकों से वैल्यूशन को लेकर सवाल-जवाब कर सकेंगी, जो फिलहाल अच्छा कर रही हैं। भारत में स्टार्ट-अप का माहौल जरूरत से अधिक गरम हो चुका है। इसे दुरुस्त करने के लिए यह सही वक्त है।