नई दिल्ली के एम्स के न्यूरो सर्जरी वार्ड-3 के 19 नंबर बेड पर रोहित को पिछले एक साल से रखा गया है। हालांकि उसे एक स्पाइन सर्जरी के बाद एक जनवरी 2016 के बाद कभी भी डिसचार्ज किया जा सकता था। दो साल पहले एक हादसे में रोहित में स्पाइनल कोर्ड की हड्डी टूट गई थी। डाक्टरों ने सर्जरी के बाद उसकी जिंदगी तो बचा ली। पर इस हादसे में रोहित के कमर के नीचे का हिस्सा लकवे का शिकार हो गया। कई बार उसे सांस लेने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है, खास तौर पर उस समय जब वह सो रहा होता है।
रोहित का दिमाग अच्छी तरह काम कर रहा है इसलिए वह बहुत साफ बातें करता है। पर अब वह एम्स में सक्रिय चिकित्सा में नहीं है। पर वह अपनी बाहों और पांव को आसानी से घूमाफिरा सकने में सक्षम नहीं है। उसे हमेशा एक देखभाल करने वाला व्यक्ति चाहिए साथ ही उसे एक पोर्टबेल वेंटिलेटर की जरूरत है।
रोहित को एक पोर्टेबल वेंटिलेटर की जरूरत है, उसके बाद ही उसे अस्पताल से डिस्चार्ज किया जा सकता है। हमारे पास ऐसे तीन और मरीज हैं जो घर पर अपनी देखभाल कर पाने में सक्षम नहीं हैं।
अगर एम्स में होने वाले खर्च की बात की जाए तो रोहित पर सरकार का हर रोज छह हजार रुपये खर्च हो रहा है। अगर उसे पोर्टेबल वेंटिलेटर मिल जाए तो इसमें खर्च 100 रुपये प्रतिदिन का खर्च आएगा। साथ ही रोहित जैसे मरीजों के कारण एम्स में नए मरीजों को जो उपचार के लिए इंतजार कर रहे हैं जगह नहीं मिल पा रही है।
एम्स चूंकि एक रेफरल अस्पताल है इसलिए यहां बड़ी संख्या में देश भर से मरीज उपचार के लिए प्रतीक्षारत होते हैं। एम्स से न्यूरो सर्जरी विभाग में नए मरीजों का नंबर तीन माह से तीन साल में आ पाता है। रोहित जैसे मामलों में डॉक्टर अमूमन मरीज को छह महीने तक अस्पताल में रखते हैं जिसमें उनके लकवा के ठीक होने की संभावना रहती है।