नोटबंदी के चलते कृषि क्षेत्र पर तगड़ी मार पड़ी है और वह अब तक इससे उबर नहीं पाया है। कृषि संगठनों से जुड़े नेताओं का कहना है कि फल और सब्जी उपजाने वाले किसानों को तगड़ा नुकसान झेलना पड़ा है। मांग की जा रही है कि बजट में किसानों के नुकसान की भरपाई के लिए योजना का ऐलान किया जाए। भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजय वीर जाखड़ ने बताया, "जो किसान फल और सब्जियां बोते हैं उन्हें औसतन 20 से 50 हजार रुपये प्रति एकड़ का नुकसान झेलना पड़ा है। यह नुकसान बहुत ज्यादा है।" गौरतलब है कि कई राज्यों से खबरें आई थीं कि सही भाव ना मिलने पर किसानों ने टमाटर और मटर सहित कई सब्जियों को सड़कों पर डाल दिया तो कई जगहों पर फ्री में बेचा।
किसान जागृति मंच के अध्यक्ष सुधीर पंवार ने बताया कि किसानों की हालत बहुत खराब है। उन्होंने कहा, "जब व्यापारी कहता है कि फसल को खरीदने के लिए पैसा नहीं है तो किसान क्या करेगा? या तो मामूली कीमत पर बेचेगा या फेंकेगा। चैक काम नहीं आ रहे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो नया आर्थिक तंत्र(कैशलेस) का प्रस्ताव रखा है उसे किसान अपना नहीं पा रहे हैं। नतीजा यह है कि कीमतें जमीन पर हैं।" जाखड़ ने आगे बताया कि यदि किसान को बुवाई की लागत के बराबर पैसा नहीं मिलेगा तो वह खेती नहीं करेगा। यदि एक किसान अपनी उपज को बाजार में ले जाता है और वह नहीं बिकती है या कीमत कम है तो वह उसे फेंक सकता है। नोटबंदी ने सहकारी बैंकों पर भी बुरा असर डाला है। किसानों को उम्मीद है कि एक फरवरी को आम बजट में उनके नुकसान की भरपाई के की जाएगी।
गौरतलब है कि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने के फैसले से रबी की फसल बुवाई पर काफी असर पड़ा है। हालांकि सरकार का कहना है कि इस साल रबी की बुवाई बढ़ी है। पंवार ने इस पर कहा कि सरकार पिछले साल से तुलना कर रही है। पिछले साल सूखा पड़ा था इसके चलते बुवाई कम थी। रबी की बुवाई की लागत बढ़ गई है लेकिन गुणवत्ता कम हो गई है। सरकार रबी बुवाई बढ़ने का आंकड़ा बताकर अप्रत्यक्ष रूप से बताना चाहती है कि बुवाई के लिए पैसों की जरुरत नहीं है। उन्होंने भाजपा सांसद और किसान मोर्चा के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह के बयान की याद दिलाते हुए कहा, "नहीं तो एक भाजपा सांसद कैसे कह सकता है कि नोटबंदी से किसानों को बजट सुधारने में मदद मिली है।" गौरतलब है कि वीरेंद्र सिंह ने कहा था कि नोटबंदी के चलते किसानों को फिजूलखर्ची रोकने में मदद मिली है।
पंवार ने कहा कि नोटबंदी से ना केवल खेती बल्कि दूसरे कामों जैसे कारीगर, मकान निर्माण मजूदरी पर भी विपरीत असर पड़ा है। यह जीडीपी का 45 प्रतिशत है और 80 प्रतिशत रोजगार इसी से आता है। यह सही बात है कि इस सेक्टर से टैक्स नहीं जाता लेकिन यहां से रोजगार मिलता है।नोटबंदी के चलते यह लगभग रूक गया है। हालांकि नकदी की स्थिति सुधर रही है लेकिन नौकरियों पर सवाल बरकरार है।