चार बार कृषि कर्मण अवॉर्ड जीतने वाले मध्यप्रदेश के किसान को इस साल टमाटर, प्याज और तुअर की भरपूर फसल के बाद भी दाम नहीं मिले, प्याज और टमाटर फेंकने तक की नौबत आ गई ऐसे में मुख्यमंत्री के खेत में ही उन्नात खेती का प्रयोग फेल हो जाना निराशा को और बढ़ाने वाला है। जिन किसानों ने सीएम से प्रेरित होकर अनार की खेती की, उन्हें भी बड़ा घाटा उठाना पड़ा और उन्होंने भी परंपरागत खेती (चना-मटर) की ओर लौटना ही मुनासिब समझा। मुख्यमंत्री अपने गृह जिले विदिशा में बैस और छीरखेड़ा में करीब 100 बीघा में उन्न्त खेती कर रहे हैं।
पड़ोसी किसान को ही प्रेरित नहीं कर पाए सीएम
सीएम के पड़ोसी किसान को भी उनकी आधुनिक खेती पर भरोसा नहीं है। बैस में तीन बीघा में खेती कर रहे सीएम के पड़ोसी किसान नारायणसिंह गुर्जर कहते हैं कि यदि फल-फूल लगा लिए तो खाएंगे क्या। वे कहते हैं कि उन्होंने देखा है इन फसलों में का क्या हश्र हो रहा है।
फायदा तो छोड़िए, इनसे लागत तक नहीं निकल रही। इसी तरह गंजबासौदा तहसील के ग्राम नंदपुरा के किसान नंदकिशोर कुशवाह ने करीब पांच साल पहले 40 बीघा में अनार का बगीचा लगाया था। दो-तीन साल तो अच्छा उत्पादन हुआ लेकिन इसके बाद फल छोटे होने लगे और बीमारियों का प्रकोप बढ़ने लगा।
महंगे कीटनाशक नहीं डाल पाए तो पौधों में फल लगना बंद हो गए,आखिरकार उन्हें बगीचा मिटाना पड़ा। नंदपुरा के किसान खुशाल सिंह कुशवाह बताते हैं- हमारे गांव में एक दर्जन किसान अनार की खेती करने लगे थे। लेकिन लगातार घाटे के कारण सबको इस खेती को छोड़ना पड़ा।
उत्पादन घट गया था
उत्पादन घट गया था, इसलिए एक एकड़ में लगे अनार के पौधों को हटाना पड़ा,अनार के लिए जमीन उपयुक्त नहीं है लेकिन इस जमीन को उपयुक्त बनाने के लिए पुणे और नागपुर के उधानिकी विशेषज्ञ की सेवाएं ली जा रही हैं। राजू लोधी, सीएम के खेत पर देखरेख करने वाले कर्मचारी
अनार के लिए उपयुक्त नहीं जमीन
जिले की कृषि भूमि अनार की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। अनार के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है। जबकि जिले में काली मिट्टी की अधिकता है। इस वजह से जिले में अनार की खेती सफल नहीं हुई। -एसएस तोमर, उपसंचालक उद्यानिकी विदिशा
चार स्तर पर हो इंतजाम
1. समर्थन मूल्य – सरकार फसलों का समर्थन मूल्य तो घोषित करती है लेकिन वह किसान को मिलें,यह सुनिश्चित नहींहो पाता है। इस साल तुअर का समर्थन मूल्य 5050 रुपए घोषित किया गया है लेकिन बाजार में तुअर साढ़े तीन हजार तक में ही खरीदी जा रही है।
2. फूड प्रोसेसिंग प्लांट – टमाटर जैसी फसलों के फेंकने की नौबत आती है तो उसकी एक वजह प्रदेश में फूड प्रोसेसिंग प्लांट की कमी भी है। हालांकि अब सरकार ने इस दिशा में प्रयास शुरू किए हैं, ग्लोबल इन्वेस्टर समिट 2016 में इस तरह के प्लांटों के लिए 82 प्रस्ताव आए थे। जिनमें से 5 प्लांट शुरु हुए हैं अलिराजपुर में 30 करोड़ की लागत से उत्तम फूड प्रोडक्ट, कटनी में 1 करोड़ की लागत से भावेश फूड प्रोडक्ट, इंदौर में 5 करोड़ लागत से विध्नेश पलसेस, शिवपुरी में सदगुरु कृपा फूड और जबलपुर में गोल्डन एग्रीवेंचर प्लांट शुरू हो चुके हैं।
3. स्टोरेज क्षमता – ज्यादा पैदावार की स्थिति में यदि अनाज को स्टोर करने की क्षमता हो तो जमाखोरी से बचा जा सकता है और किसानों को उसकी मेहनत का फल भी मिल पाएगा। वर्तमान में मध्यप्रदेश में 175 लाख मीट्रिक टन अनाज के स्टोरेज की क्षमता है,इसमें से 125 लाख मीट्रिक टन निजी क्षेत्र के स्टोरेज हैं,बाकी एफसीआई,मार्कफेड,केंद्रीय भंडार निगम और विपणन संघ आदि के गोदाम है।
4. निर्यात बढ़ाना होगा – किसान को उसकी फसल के दाम मिल सकें उसके लिए जरूरी है की अनाज की निर्यात किया जाए ताकि मांग बनी रहे,हालांकि इस दिशा में प्रदेश में अभी प्रयासों की कमी है।