शराब मौलिक अधिकार है या नहीं, यह रहा जवाब

कोच्चि। पिछली सरकार द्वारा अपनाई गई शराब नीति को बरकरार रखते हुए केरल उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि शराब की खपत मौलिक अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने हाल ही में एक रिट याचिका पर यह फैसला दिया है।

 

अनूप एमएस ने शराब की नीति को चुनौती देते हुए इस याचिका को दायर किया था। इसके लिए उन्होंने आधार दिया था कि आबकारी अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत सरकार को यह शक्ति मिलती हो कि वह शराब को निषेध कर सके, यहां तक कि चरणबद्ध तरीके से भी।

 

पीना चाहिए या नहीं पीना चाहिए इसे लेकर अनूप दुविधा में हैं। उन्होंने कहा कि मादक पेय पर रोक लगाने का कानून एक नागरिक को मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। अदालत ने 12 जनवरी को दिए अपने आदेश में कहा कि हमारा जवाब है कि वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।

 

अनूप, रबर के पेड़ों से लेटेक्स निकालता है। उसने तर्क दिया था कि शराब उसकी रोजमर्रा के खानपान का हिस्सा है। यह उसे तरोताजा, आराम, और शारीरिक रूप से फिट रखता है। अनूप ने कहा कि ऐसा लगता है कि यह उसकी जिंदगी में एक अमृत की तरह है।

 

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