छत्तीसगढ़ में हो सकेगी मखाने की खेती, ले पाएंगे दो फसल

रायपुर, संदीप तिवारी। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने पहली बार धमतरी के कृषि विज्ञान केन्द्र बोड़रा संबलपुर में मखाने (काला हीरा) की खेती का सफल परीक्षण किया है। इसी के साथ छत्तीसगढ़ मखाने की खेती करने वाला देश का सातवां राज्य बन गया है।

 

यहां के कृषि वैज्ञानिक मखाने की स्वर्ण वैदेही किस्म दरभंगा से लेकर आए थे। खेती के लिए जलवायु अनुकूल होने से रबी और खरीफ दोनों सीजन में फसल ली जा सकेगी जबकि इसकी खेती के लिए मशहूर बिहार में यह सिर्फ एक बार उगता है।

 

घरेलू से लेकर औद्योगिक फायदे : मखाने की खेती अगर रफ्तार पकड़ती है तो इसका व्यावसायिक उत्पादन हो सकेगा। औषधीय उपयोग के अलावा धार्मिक आयोजन में इसका प्रयोग होता है। पकवानों में भी इसे मिलाया जाता है। साथ ही सूती परिधान में इस्तेमाल किया जाता है।

 

दूसरे राज्यों में सिर्फ एक बार फसल : दरभंगा बिहार के मखाना अनुसंधान केंद्र में मखाने के लिए नर्सरी दिसम्बर में तैयार होती है, रोपाई फरवरी में करते हैं। दिसम्बर में कटाई होती है। अनुसंधान केंद्र के प्रमुख डॉ. एसएस चंद्रवंशी, रिसर्च स्कॉलर राजेश्वरी साहू की देखरेख में छत्तीसगढ़ में यह प्रक्रिया जून तक ही पूरी हो गई। देश में बंगाल, बिहार, असम, त्रिपुरा, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश तो विदेशों में आस्ट्रेलिया, नेपाल, जापान, कोरिया, बांग्लादेश और उत्तरी अमेरिका में इसकी खेती होती है। वहीं 88 प्रतिशत व्यावसायिक खेती उत्तरी बिहार के दरभंगा, मधुवनी, किसनगंज, पुनिया, कटिहार जिले में होती है।

 

छत्तीसगढ़ की नम भूमि में मखाने का परीक्षण सफल हुआ। इसकी खेती से छत्तीसगढ़ के किसान समृद्ध होंगे। -डॉ. एसके पाटिल, कुलपति, इंदिरा गांधी कृषि विवि रायपुर

 

हृदयरोगियों के लिए उपयोगी

मेवे में शामिल मखाना में पौष्टिक तत्व अधिक होता है। इसमें 76 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 9.75 प्रतिशत प्रोटीन, खनिज 0.5 प्रतिशत और 0.1 प्रतिशत वसा होता है। हृदयरोगियों के लिए यह उपयोगी होता है। मणिपुर में सूप बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें कैलोरी भी भरपूर है।

 

नमी में होती है खेती : तालाब, गोखुर, झील और कीचड़ वाले स्थान, जहां सालभर पानी रहता है। 20 से 35 डिग्री सेल्सियस अधिकतम तापमान, आर्द्रता 50 से 90 प्रतिशत और वार्षिक वर्षा 100 से 250 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

 

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