ऐतिहासिक शहर तावडू को मोरों के शहर के नाम से जाना जाता है और आपात काल के दौरान 19 माह सिंचाई विभाग के विश्रामगृह में नजर बंद रहे पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय मोरारजी देसाई द्वारा केन्द्र की सत्ता संभालने के बाद सिंचाई विभाग के विश्रामगृह को मोर पंख पर्यटन स्थल के नाम से परिवर्तित कर वर्ष 1978 में उसका उद्घाटन किया था। लेकिन मोर की यह प्रजाति सम्पूर्ण क्षेत्र से गायब सी होती जा रही है।
सिंचाई विभाग के विश्रामगृह के अलावा अरावली में भी यह अधिक संख्या में पाये जाते थे, लेकिन लोगों को अब इसकी आवाज सुनाई नहीं देती है। बरसात के दिनों में पहले मोरों को पंख फैलाकर नाचते देखा जाता था तथा पूरा क्षेत्र मोरों की आवाज से गुंजायमान रहता था। दिन के समय ही नहीं, दिन छिपने के बाद भी इस राष्ट्रीय पक्षी की आवाज सुनाई देती थी। स्थानीय निवासी सतपाल, रविन्द्र,राजेन्द्र कुमार, राधे श्याम माथुर, नयनसुख, राकेश शर्मा, धर्मकिशोर आदि ने बताया कि तावडू क्षेत्र मोरों के नाम से प्रसिद्ध रहा है। यह मरुस्थल तक लेकर गहरे जंगलों के अलावा खुले जंगलों, पार्कों स्थित पेड़ों नदियों व रिहायशी क्षेत्रों में रहते हैं। लेकिन धीरे-धीरे यह प्रजाति विलुप्त होती जा रही है।
कीटनाशकों की भेंट चढ़ रही प्रजाति
राज्य वन्य प्राणी परमार्श बोर्ड के गैर सरकारी सदस्य एस कुमार ने माना कि जंगलों के कटान व फसलों, सब्जियों पर अधिक कीट नाशक के इस्तेमाल से यह प्रजाति इसकी भेंट चढ़ गयी है। उपायुक्त मनीराम शर्मा ने कहा कि इस बारे में वन्य प्राणी विभाग ही बेहतर जानकारी मुहैया करा सकता है।