साइबर खतरे की सबसे बड़ी दस्तक– हरजिंदर

विजय माल्या से लेकर राहुल गांधी, बरखा दत्त और रवीश कुमार के ट्विटर व अन्य खातों का हैक हो जाना फिलहाल भले ही चर्चा में हो, लेकिन यह एक ऐसा मसला है, जिसे जल्द ही हम भुला देंगे। हालांकि इस मामले में भी बहुत कुछ है, जो समझ में आने वाला नहीं है। यह सवाल तो खैर अपनी जगह है ही कि एक खास राजनीतिक रुझान के लोगों को लीजियान नाम के हैकर समूह ने निशाना क्यों बनाया? लीजियान नाम अमेरिका के कुख्यात ‘लीजियान ऑफ डूम’ हैकर समूह की याद दिलाता है, जो कभी दुनिया की मशहूर शख्सियतों के अकाउंट हैक करके चर्चा में आया था। लेकिन जो लीजियान हमारे सामने है, उसका कोई पुराना रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। वैसे हैकिंग की दुनिया में यह महत्वपूर्ण भी नहीं होता, क्योंकि आमतौर पर यह ऐसा काम है, जिसे दुनिया भर में नौजवान ही अंजाम देते हैं। हालांकि यह बात उन ताकतों के बारे में नहीं कही जा सकती, जो कभी-कभार इनके पीछे सक्रिय होती हैं। हम इतना भर जानते हैं कि इस संगठन का निशाना भारत विशेष है। दुनिया भर में यह माना जाता है कि ऐसे संगठनों के दावे चाहे जितने भी हवाई क्यों न दिखें, उन्हें कभी हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
 

वैसे लीजियान हैकर समूह से जुड़ी कुछ पहेलियां और भी हैं, जो समझ में नहीं आती हैं। पहली तो यही कि इस समूह का नाम लीजियान क्यों रखा गया? यह बाइबिल की परंपरा से निकला शब्द है, जिसका अर्थ होता है, रोमन सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी। पिछले दो-तीन दिनों में इस समूह के कुछ ‘सदस्यों’ के इंटरव्यू कई जगह प्रकाशित हुए हैं। ऐसे ही एक इंटरव्यू में जब यह पूछा गया कि समूह का नाम लीजियान क्यों रखा गया, तो उसका कोई ठीक जवाब नहीं मिला। कुछ समय पहले तक पूरी दुनिया के कंप्यूटर जगत पर ‘लीजियान ऑफ डूम’ का खौफ हुआ करता था। संभव है कि इसी खौफ का कुछ एहसास देने के लिए इस संगठन का नाम लीजियान रखा गया हो। वैसे माना जाता है कि ‘लीजियान ऑफ डूम’ का नाम 70 के दशक के एक कार्टून सीरियल से लिया गया था। अपने इंटरव्यू में समूह के इन ‘सदस्यों’ ने जो बातें कही हैं, वे बताती हैं कि इन नौजवानों ने नाम ही नहीं, कई और चीजें भी पश्चिम के हैकर संगठनों से उधार ली हैं। जैसे वे अपने बारे में बताते हैं कि वे ड्रग एडिक्ट और अपराधी हैं। दुनिया भर के हैकरों को हमेशा इसी तरह चित्रित किया जाता रहा है, जो शायद कुछ हद तक सच भी है। ऐसा सोचने का एक कारण यह भी है कि तमाम हैकर और नशीली चीजों का इस्तेमाल करने वाले उसी अंधेरे तहखाने में सक्रिय रहते हैं, जिसे ‘डॉर्कनेट’ कहा जाता है। ऐसा ही एक और जवाब चौंकाता है। पूछा गया कि आपकी विचारधारा क्या है, तो जवाब मिला कि हम अराजकतावादी (एनार्किस्ट) हैं। इस जवाब पर हैरत इसलिए होती है कि किसी अराजकतावादी का पहला निशाना रवीश कुमार या बरखा दत्त तो नहीं ही हो सकते।

 

 

style="text-align: justify;">पूरे मामले को यदि इन लोगों और उनके जवाबों से अलग करके देखें, तो खतरा सामने खड़ा है और वह अभी तक जो हुआ, उससे कहीं ज्यादा बड़ा है। पहली बार प्रोफेशनल हैकिंग ने भारत में दस्तक दी है। छिटपुट घटनाओं और पाकिस्तानी हैकरों की छोटी-मोटी व बचकानी हरकतों को छोड़ दें, तो देश के नेटवर्क काफी हद तक इससे बचे रहे हैं। कुछ समय पहले कुछ बैंकों के डाटाबेस का चोरी हो जाना शायद इस तरह की सबसे बड़ी घटना माना जा सकता है, जिससे पार पाने के लिए कई भारतीय बैंक हाल-फिलहाल तक जूझते दिखाई दिए थे। पहली बार हमारा सामना एक ऐसे हैकर समूह से हो रहा है, जो न सिर्फ पश्चिम के शातिर हैकर संगठनों से प्रेरणा ले रहा है, बल्कि उनके नक्शे कदम पर चलता हुआ दिखाई दे रहा है। सबसे बड़ी बात है कि यह सब उस समय हो रहा है, जब हम कैशलेस होने की तरफ बढ़ रहे हैं। कुछ मजबूरी में, कुछ सरकार के आग्रह पर और कुछ पूरी दुनिया के साथ कदम मिलाने की कोशिश में। इन दिनों ऐसे कार-व्यापार के आग्रह बहुत बढ़ गए हैं, जिसमें नकदी का लेन-देन कम हो और कंप्यूटर नेटवर्क के जरिये सारा पैसा एक खाते से दूसरे में चला जाए। ऐसे मौके पर लीजियान हमें बता रहा है कि उसके लोग देश के सभी बैंकों के सर्वर में सेंध लगा चुके हैं। इस दावे में कितनी सच्चाई है यह हम नहीं जानते, लेकिन हमारे उन सभी खातों पर खतरा तो मंडरा ही रहा है, जिन्हें हम अपनी जेब का बटुआ बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
 
वैसे यह हमारा ही नहीं, पूरी दुनिया का खतरा है। दुनिया भर की सरकारें और बैंक अपने-अपने तरीके से इससे जूझ भी रहे हैं। बैंक और वित्तीय संस्थान इससे बचने के लिए साइबर सुरक्षा में भारी निवेश भी कर रहे हैं, हालांकि भारतीय बैंक और वित्तीय संस्थान इस मामले में काफी पीछे हैं। लीजियान की दस्तक बताती है कि कैशलेस होने से कहीं बड़ी प्राथमिकता इस समय लोगों की जमापूंजी को साइबर खतरों से बचाने की है।
 

 

दुनिया भर में यह भी माना जाता है कि लोगों के धन को हमेशा के लिए पूरी तरह सुरक्षित करना संभव नहीं है। किसी भी तरह की सुरक्षा दीवार में हैकर सेंध लगा ही लेते हैं। ऐसी सेंध की स्थिति में क्या होगा, इसके स्पष्ट नियम बनाने की जरूरत है। ज्यादातर विकसित देशों में प्रोटोकॉल यह है कि अगर बैंक के सर्वर में सेंध लगती है और किसी के खाते से धन निकल जाता है, तो नुकसान की भरपायी बैंक को करनी होगी, क्योंकि इसमें खातेदार की कोई गलती नहीं है। हमारे यहां ये नियम बहुत साफ नहीं हैं, इसलिए ऐसे मौकों पर बैंक सारी जिम्मेदारी खातेदार पर ही डाल देते हैं। कैशलेस होने के साथ ही हमें अब ऐसे बहुत सारे नियम-कायदे बनाने और स्पष्ट करने होंगे।

 

जहां तक लीजियान का मामला है, ऐसे संगठनों को दुनिया भर में कंप्यूटर क्रांति का सह-उत्पाद माना जाता है, जो अंत में सभी कोसुरक्षाके प्रति गंभीर होने की मजबूरी देता है। यह ठीक है कि लीजियान ने जो किया, उसमें एक राजनीतिक रुझान देखा जा सकता है, पर पूरा मामला यही बताता है कि अब कोई निरापद नहीं है, भले ही उसका रुझान कुछ भी हो या उसके खाते में कितना भी धन हो।

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