सेंटर ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी (सीएसडीएस) के लिए लोकनीति-सेंटर ने अपने सर्वे में दो दशकों से ज्यादा समय तक मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर नजर बनाए रखी है। 1996 से ही सर्वे में शामिल होने वालों से लगातार पूछा जाता रहा है कि वो गिराई गई मस्जिद के स्थान पर किस चीज का निर्माण चाहते हैं? साल 1996 में सर्वे में शामिल 58 प्रतिशत हिंदुओं ने कहा था कि वो वहां केवल मंदिर का निर्माण चाहते हैं। वहीं सर्वे में शामिल करीब 56 प्रतिशत मुसलमानों ने कहा था कि वो वहां केवल मस्जिद का निर्माण चाहते हैं। साल 2002 के विधान सभा चुनावों के पोस्ट-पोल सर्वे में शामिल हिंदुओं और मुसलमानों में मंदिर-मस्जिद के निर्माण की मांग करने वालों का प्रतिशत इसी के आसपास रहा। साल 2002 में गुजरात में हुए दंगों के चलते मतदाताओं की राय समझी जा सकती है। लेकिन इसके बाद मंदिर-मस्जिद मांग को लेकर यूपी के वोटरों की राय में काफी तब्दीली देखने को मिली।
यूपी के हिंदुओं और मुसलमानों की राय में इस अंतर को कैसे समझा जाए? हमारी राय में पिछले कुछ सालों में हुए यूपी तीखा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ है। यूपी में हुई सामुदायिक हिंसा का विस्तृत अध्ययन करने वाले अप्पू ई सुरेश के अऩुसार जनवरी 2010 से अप्रैल 2016 के बीच राज्य में 12000 से अधिक सांप्रदायिक हिंसा के मामले सामने आए हैं। सुरेश की रिपोर्ट के अनुसार यूपी के सभी जिलों में सांप्रादायिक घटनाओं की संख्या बढ़ी है। रिपोर्ट में किए गए विश्लेषण के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाएं ज्यादा हुई हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद ये इलाका सांप्रादायिक राजनीति का गढ़ बन गया है। इस दंगे के बाद से इलाके के हिंदू संगठनों ने कई बार सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने की कोशिश की। लोक सभा चुनाव के कुछ महीनों बाद ही इन समूहों ने लव जिहाद का मुद्दा उठाया। इसके बाद दादरी का दुखद हादसा हुआ और गोहत्या पर रोक को लेकर अभियान चलाया गया। अभी हाल ही में कैराना से बीजेपी सांसद हुकूम सिंह ने आरोप लगाया कि इलाके के सैकडो़ं हिंदू मुसलमानों के डर से पलायन कर चुके हैं।
ऐसी घटनाओं का मकसद हिंदुओं में सांप्रदायिक डर बढ़ाना होता है। लगता है कि इसी वजह से मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर उनकी राय का ध्रुवीकरण हुआ है। लेकिन यूपी के मुसलमानों में केवल मस्जिद की मांग कम होने की क्या वजह हो सकती है? हमारी राय में मुसलमानों में केवल मस्जिद की मांग में कमी आने का मतलब ये कतई नहीं है कि प्रदेश के मुसलमानों मंदिर-मस्जिद के मुद्दे पर धर्मनिरपेक्ष तरीक से सोचने लगे हैं? हमारे ख्याल से मुसलमानों की राय में आए बदलाव की पीछे किसी और बात के संकेत मिलते हैं जो हमारी देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा है। ऐसा लगता है कि यूपी के मुसलमानों का बड़ा तबका इस बात की उम्मीद छोड़ चुका है कि विवादित स्थल पर कभी मस्जिद बन सकती है। बहुत संभव है कि उन्हें ये लगने लगा हो कि मौजूदा व्यवस्था में उन्हें न्याय नहीं मिल सकता। जुलाई 2016 के सर्वे में कई अन्य सवालों के दिए गए यूपी के मुसलमानों के जवाब से भी ऐसी ही आशंका बलवती होती है।
जुलाई 2016 के सर्वे में शामिल लोगों से पूछा गया कि क्या पिछले कुछ सालों में मुसलमानों के प्रति भेदभाव बढ़ा है। उनसे ये भी पूछा गया कि क्या मुसलमानों युवकों को गलत तरीके से आतंकवाद के मामलों में फंसाया जाता है। मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर उनकी चाहे जो भी राय हो मुस्लिम नौजवानों को गलत तरीके से आतंकवादी से जुड़े मामलों में फंसाए जाने के सवाल पर सर्वे में शामिल मुसलमानों का बहुत बड़े हिस्से ने कहा कि ऐसा होता है। सर्वे में शामिल ज्यादातर मुसलमानों को ये भी लगता था कि पिछले कुछ सालों में मुसलमानों के संग होने वाला भेदभाव बढ़ा है। देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों के बीच ऐसा अलगाव औरदोयमदर्जे का नागिरक होने की भावना अच्छे संकेत नहीं है। इससे न केवल अल्पसंख्यकों को समान दर्जे का नागरिक होने कं संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन होता है बल्कि मजहबी कट्टरपंथी मुस्लिम नौजवानों की ऐसी भावनाओं का दुरुपयोग भी कर सकते हैं।