प्रदूषण की चपेट में समुद्री जीवन– अरविन्द कुमार सिंह

हाल ही में ‘नेचर जियोसाइंस’ पत्रिका का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि वायु प्रदूषण की वजह से समुद्री जीवन विषैला बन रहा है। यह खुलासा स्पेन के वैज्ञानिकों ने किया है। उनके शोध के मुताबिक जीवाश्म र्इंधन का उपयोग, औद्योगिक कार्बन उत्सर्जन और जंगल की आग समुद्री जीवन को जहरीला बना रहे हैं। इन वैज्ञानिकों का दावा है कि इनसे उत्सर्जित पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन्स (पीएएचएस) नामक घातक रसायन की मात्रा समुद्र में लगातार बढ़ रही है और समुद्री जीवों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है।


उल्लेखनीय है कि पीएएचएस सौ से अधिक घातक रसायनों का समूह होता है, जो कि जीवाश्म र्इंधन और लकड़ी के जलने से वातावरण में उत्सर्जित होता है। इन्हें जानलेवा प्रदूषक तत्त्वों की श्रेणी में रखा गया है। स्पेन के वैज्ञानिकों ने बायो हेस्पिराइट्स नामक समुद्री शोध-जहाज से ब्राजील, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और हवाई द्वीप समेत कई देशों की समुद्री यात्रा कर अपने शोध को आंकड़ों में सहेजा है। जांच में टीम को 64 पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन्स मिले हैं जो अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागर में पाए गए। इनमें से कुछ अत्यंत विषैले हैं जो समुद्र को जहरीला बनाने का काम कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पीएएचएस की प्रति महीने उत्सर्जन की मात्रा इतिहास के सबसे बड़े तेल रिसाव की घटना से चार गुना अधिक खतरनाक है।

 

गौरतलब है कि 2010 में मैक्सिको की खाड़ी में एक लाख वर्ग किलोमीटर से भी बड़े समुद्री क्षेत्र में तेल के कुएं से रिसाव हुआ। उसमें करीब पचास लाख बैरल तेल समुद्र में बह गया। 1967 में टॉरी कैन्यन नाम के आॅयल टैंकर के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने और 1967 में ही कैलिफोर्निया के तटीय इलाके में सैंटा बारबरा के तेल रिसाव की घटना भी दुनिया का ध्यान आकर्षित कर चुकी है। तेल रिसाव के परिणाम समुद्री जीवों के लिए खतरनाक हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो कच्चे तेल में मौजूद पॉलीसाइक्लिक एरौमैटिक हाइड्रोकार्बन्स को साफ करना एक कठिन कार्य होता है। अगर यह साफ नहीं हुआ तो कई वर्षों तक तलछट और समुद्री वातावरण को जहरीला बनाए रखता है। यह तथ्य भी सामने आ रहा है कि मालवाहक जहाजों द्वारा जान-बूझ कर कूड़ा-कबाड़ समुद्र में छोड़ा जा रहा है। जबकि अंतरराष्ट्रीय और घरेलू नियमों के तहत ऐसे कार्य प्रतिबंधित हैं। एक अनुमान के मुताबिक कंटेनर ढोने वाल मालवाहक जहाज तूफानों के दौरान हर वर्ष समुद्र में दस हजार ज्यादा कंटेनर खो देते हैं और उनमें लदा तेल समुद्री जीवों के जीवन पर भारी पड़ता है। तेल रिसाव के अलावा जहाज ध्वनि-प्रदूषण भी फैलाते हैं जिससे जीव-जंतु परेशान होते हैं।

 

इसके अलावा स्थिरक टैंकों से निकलने वाला पानी भी हानिकारक शैवाल व अन्य तेजी से पनपने वाली आक्रामक प्रजातियों को फैलाने में मददगार साबित होता है। मीठे पानी में पाए जाने वाले आक्रामक जेबरा शंबुक जो मूल रूप से ब्लैक, कैस्पियन और एजोव सागरों में पाए जाते हैं, अमेरिका और कनाडा के बीच पाई जाने वाली पांच बड़ी झीलों तक पहुंच चुके हंै। प्रमुख समुद्री वैज्ञानिक मीनिस्ज के मुताबिक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाने वाली अकेली आक्रामक प्रजाति की ही बात करें तो एक सबसे खतरनाक नीमियोप्सिसलीडयी कॉम्ब जैलीफिश की प्रजाति है जो इस कदर फैली है कि कई खाड़ियों तक पहुंच चुकी है। मौजूदा समय में यह प्रजाति स्थानीय मत्स्य उद्योग के लिए सिरदर्द बन गई है। उदाहरण के लिए 1984 में एंकवी मछली की पकड़ 2 लाख 4 हजार टन थी जबकि 1993 में यह घट कर दो सौ टन रह गई। इसी तरह स्प्रैट 1984 में 24 हजार 6 सौ टन पकड़ी गई, वह घट कर 1993 में बारह हजार टन और हॉर्स मैकेरल जो 1984 में चार हजार टन पकड़ी गई थी वह 1993 में एक भी नहीं पकड़ी गई।

 

समुद्र वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दिनों में आक्रामक प्रजातियां पहले से ज्यादा क्षेत्रों में अपना विस्तार और नई बीमारियां फैलाने के साथ नए आनुवंशिक पदार्थों की शुरुआत कर सकती हैं। यानी वे समुद्री दृश्यों को बदल सकती हैं। ये आक्रामक प्रजातियां अकेले अमेरिका में ही सालाना 138 अरब डॉलर के राजस्व और प्रबंधन घाटे की वजह हैं। एक अन्य शोध में यह भी दावा किया गया है कि प्रशांत महासागर के एक बड़े क्षेत्र के समुद्री जल में आॅक्सीजन की मात्रा लगातार घट रही है। गहरे समुद्र में यह संकट अधिक तेजी से बढ़ रहा है जिससे समुद्री जीवन के लिए खतरा उत्पन हो गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्री प्रदूषण तब होता है जब रसायन, कण, औद्योगिक, कृषि व रिहायशी कचरा या आक्रामक जीव समुद्र में प्रवेश करते हैं और हानिकारक प्रभाव उत्पन करते हैं। समुद्री प्रदूषण के अधिकांश स्रोत थल आधारित होते हैं। जब कीटनाशक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में शामिल होते हैं तो वो समुद्री फूड वेब में बहुत जल्दी सोख लिये जाते हैं। एक बार फूड वेब में शामिल होने पर ये कीटनाशक उत्परिवर्तन और बीमारियों को अंजाम दे सकते है जो इंसानों के लिए भी हानिकारक हो सकता है। आमतौर पर समुद्र में प्रदूषण के तीन रास्ते हैं। एक, महासागरों में कचरे का सीधा छोड़ा जाना। दूसरा, वर्षा के कारण नदी-नालों में अपवाह से, और तीसरा, वातावरण में छोड़े गए प्रदूषकों से। समुद्र में प्रदूषण के लिए सबसे आम रास्ता नदियां हैं। समुद्र में पानी का वाष्पीकरण सर्वाधिक होता है। संतुलन की बहाली महाद्वीपों पर बारिश के नदियों में प्रवेश और फिर समुद्र में वापस मिलने से होती है।

 

अमूमन तय प्वाइंट प्रदूषण तब होता है जब प्रदूषण का इकलौता, स्पष्ट और स्थानीय स्रोत मौजूद हो। इसका उदाहरण समुद्रों में औद्योगिक कचरे और गंदगी का सीधे तौर पर छोड़ा जाना है। गौर करें तो इस तरह का प्रदूषण विकासशील देशों में ज्यादा देखने को मिलता है। प्रदूषक नदियों और सागरों में शहरी नालों और औद्योगिक कचरों के निस्सरण से सीधे प्रवेश करते हैं और कभी-कभी तो हानिकारक और जहरीले कचरे के रूप में भी। अंदरूनी भागों में तांबे, सोने आदि का खनन भी समुद्री प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत है। वातावरण में छोड़े गए प्रदूषकों से भी समुद्र प्रदूषित हो रहा है। मसलन कृषि से सतह का अपवाह, साथ-साथ शहरी अपवाह और सड़कों, इमारतों, बंदरगाहों और खाड़ियों के निर्माण से हुआ अपवाह कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस और खनिजोंसेलदे कणों और मिट्टी को अपने साथ ले जाता है।

 

सड़कों और राजमार्गों से दूषित अपवाह तटीय इलाकों में जल प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है। इसमें प्रवेश करने वाले पचहत्तर फीसद जहरीले रसायन सड़कों, छतों, खेतों और अन्य विकसित भूमि से तूफानों के दौरान पहुंचते हैं। उचित होगा कि समुद्री प्रदूषण से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर कानून बने और उस पर ईमानदारी से अमल हो। 1950 के दशक के शुरू में समुद्र के कानून को लेकर हुए संयुक्त राष्ट्र के कई सम्मेलनों में समुद्री प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की गई। 1972 के स्टॉकहोम में पर्यावरण पर हुए संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में भी समुद्री प्रदूषण पर चर्चा हुई। इसी वर्ष समुद्री प्रदूषण रोकने के लिए कचरे व अन्य पदार्थों के समुद्र में फेंके जाने को लेकर एक संधिपत्र पर हस्ताक्षर हुए, जिसे लंदन समझौता भी कहा जाता है। लेकिन समुद्री प्रदूषण रोकने के सिलसिले में बने सभी पुराने कानून अब नाकाफी साबित हो रहे हैं। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि नए समुद्री कानून बनाए जाएं ताकि समुद्री जीवन सुरक्षित रह सके।

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