पणजी। पिछले दिनों खबर आई थी कि गोवा देश का पहला कैशलेस राज्य बनने की राह पर है। लेकिन इतना बड़ा तमगा लेने की राह पर जा रहे इस राज्य के 16 प्रतिशत घरों में रहने वाले अब भी खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं। आलम यह है कि यहां कई जगहों पर सार्वजनिक शौचालय तक नहीं है।
एक अंग्रेजी अखबार की खबर के अनुसार 1961 में गोवा में केवल 5 सेंसस टाउन थे जो 2001 तक बढ़कर 30 हो गए। लेकिन 2011 तक इनकी संख्या तेजी से बढ़ी और यह 56 तक पहुंच गई है। तेजी से बढ़ रही आबादी और बेतरतीब शहरीकरण के चलते लोगों को महत्वपूर्ण चीजों मसलर शौचलायों से महरूम रहना पड़ रहा है।
अखबार के अनुसार गोवा में 16 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिन्हें खुले में शौच के लिए मजबूर होना पड़ता है। पिछले हफ्ते गोवा के आवासीय परिदृश्य के असेसमेंट में स्टेटिशियन डॉ. गौरव पांडे ने अपने प्रेजेंटेशन में बताया कि राज्य में बड़ी संख्या में लोग जरूरी चीजों की कमी से जूझ रहे हैं।
पांडे ने कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार 62 प्रतिशत जनसंख्या या दो तिहाई हाउजिंग स्ट्रक्चर्स शहरी इलाकों में थे लेकिन गोवा की 19.3 प्रतिशत जनसंख्या कुओं और नहरों जैसे जल स्त्रोतों से प्रदूषित जल पीने को मजबूर हैं जो कि टेप वॉटर के मुकाबले कम शुद्ध होता है।
उन्होंने आगे कहा कि उत्तरी गोवा में 24.4 प्रतिशत घरों में खुला ड्रेनेज सिस्टम है जबकी 35.8 प्रतिशत में तो ड्रेनेज सिस्टम ही नहीं है। दक्षिण गोवा में भी यही आलत है और 26 प्रतिशत घरों में खुले ड्रेनेज के अलावा 25.5 प्रतिशत में ड्रेनेज ही नहीं है।
घरों में ड्रेनेज और बाथरूम नहीं होने का मतलब है कि इन घरों से निकलने वाला पानी आसपास की खुली जगहों में बहकर जाता है जो बीमारियों का कारण हो सकता है। गोवा में 10 प्रतिशत घर ऐसे हैं जहां बाथरूम ही नहीं है और ग्रामीण इलाकों में हालात और भी बदतर हैं।