नोटबंदी के एक महीने का सच– कन्हैया सिंह

आठ नवंबर को शुरू हुए 500 व 1000 रुपये के नोटों के डीमॉनेटाइजेशन (जिसे आम भाषा में नोटबंदी कहा जा रहा है) के बाद से देश में जो हो रहा है, उसका विश्लेषण काफी कठिन है। यही वजह है कि हर अर्थशास्त्री इसे अलग ढंग से देख रहा है। इसके नतीजों का आकलन अलग ढंग से कर रहा है। ऐसे मौकों पर हर अर्थशास्त्री अपने ‘परसेप्शन’ और ‘स्पैक्यूलेशन’ यानी अपनी धारणा व अनुमान से किसी नतीजे पर पहुंचता है। यह अलग-अलग हो सकता है।

राजनीतिक ध्रुवीकरण भी एक कारण होता है, जिसके चलते कई अर्थशास्त्री अलग-अलग नतीजों पर पहुंचते हैं। यही वजह है कि हमें पिछले एक महीने में दोनों ही तरह के अर्थशास्त्रियों की आवाजें सुनाई दे रही हैं। उनकी भी, जो नोटबंदी को पूरी तरह से कामयाब मान रहे हैं और उनकी भी, जो इसे पूरी तरह नाकाम मान रहे हैं। यहां पर यह जरूर सोचा जा सकता है कि कुछ लोग इसका तटस्थ विश्ेलषण करेंगे ही। लेकिन दिक्कत यह है कि इसके तटस्थ आंकडे़ किसी को उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए उन्हें भी अपनी धारणा और अनुमान का तरीका अपनाना पड़ेगा, वस्तुनिष्ठ विश्लेषण तो वे भी नहीं कर सकते। और जो आंकड़े उपलब्ध हैं, वे भी कई तरह के भ्रम पैदा करते हैं। देश में कितना काला धन है, इसे लेकर तरह-तरह की बातें कही जाती हैं। धन संपदा को हम दो हिस्सों में बांटते हैं- स्टॉक और फ्लो। साधारण भाषा में कहें, तो अचल संपत्ति और चल संपत्ति। हमें पता नहीं है कि कितना काला धन स्टॉक में है और कितना फ्लो में है? इसलिए हम पूरी तरह नहीं जानते कि इस नोटबंदी से हम कितने काले धन को पकड़ने जा रहे हैं। हमें इतना भर पता था कि देश में 14 लाख करोड़ रुपये की कुल मुद्रा प्रचलन में है।

शुरू में पता लगा कि सिर्फ चार लाख करोड़ रुपये ही बैंकों में पहुंचे हैं, फिर पता चला कि आठ लाख करोड़ रुपये पहुंच गए, अब यह कहा जा रहा है कि 11 लाख करोड़ रुपये वापस बैंकों में पहुंच चुके हैं। अभी और कितना पहुंचेगा, यह कोई नहीं जानता। इसी के साथ लोगों का नजरिया भी बदल रहा है। यह भी माना जाता है कि रुपये को स्टॉक के रूप में ज्यादा रखा भी नहीं जाता, क्योंकि इसका मूल्य स्थिर नहीं है। इसकी कीमत लगतार और अक्सर तेजी से गिरती रहती है। इसके विपरीत डॉलर को संपत्ति के रूप में रखना कहीं ज्यादा बेहतर होता है।

बैंकों में वापस आ रहे इन पुराने बड़े नोटों से कई तरह की संभावनाएं बनती हैं। एक संभावना यह है कि जितना भी पैसा बड़े नोटों के रूप में प्रवाह में है, वह सब का सब बैंकों में वापस आ जाए। दूसरी संभावना यह है कि वह पूरा न आए, उसका कुछ हिस्सा बाहर ही रह जाए। दोनों ही स्थितियों में कुछ भी अपने आप स्पष्ट नहीं होगा। जमा होने वाले धन में या न जमा होने वाले धन में कितना काला है, इसकी पड़ताल करनी पड़ेगी। पता लगाना पड़ेगा कि कौन सा खाता बेनामी है और कौन सा नहीं है। जोबेनामी नहीं है, उसके धारक से पूछना पड़ेगा कि उसके पास यह धन आया कहां से? वैसे आठ नवंबर को प्रधानमंत्री का जो भाषण था, उसमें यही कहा गया था कि आपके पास जो धन है, उसे बैंकों में जमा करवाएं।

इसमें यह नहीं कहा गया था कि किस तरह का जमा करवाएं और किस तरह का नहीं। जाहिर है कि इसका मकसद था कि यह सब बाद में तय किया जाएगा कि इसमें कितना काला धन है, और कितना सफेद। यहां तक कि यह भी कह दिया गया था कि अगर आप ढाई लाख रुपये तक अपने खाते में जमा करते हैं, तो आपसे यह भी नहीं पूछा जाएगा कि ये रुपये आपके पास आए कहां से? पिछले दिनों मुरादाबाद की रैली में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अब सब कुछ डिब्बे में बंद हो गया है। नोटबंदी की पूरी कवायद का सबसे बड़ा फायदा यही हुआ है कि अब सभी रुपयों का हिसाब-किताब रिकॉर्ड में आ गया है। अब हम मोटे तौर पर हर रुपये के बारे में जानते हैं कि उसका मालिक कौन है, वह रुपया चाहे जैसा भी हो। अब यह खाता धारक की जिम्मेदारी है कि वह साबित करे कि उसके खाते में जो है, वह वाजिब है, अन्यथा कानून अपना काम करेगा।

बैंकों में जो पैसा जा रहा है, वह सक्रिय पैसा है, अर्थव्यवस्था को चलाने वाला पैसा है। यह पैसा अर्थव्यवस्था से वापस जा रहा है, इसलिए आर्थिक गतिविधियों में कमी आई है। जाहिर है, आर्थिक विकास भी कम हुआ है। यह उस समय शुरू हुआ है, जब वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही चल रही थी। यह भी माना जा रहा है कि इसका अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही तक असर दिख सकता है। जाहिर है कि इसका इस बार की जीडीपी पर थोड़ा असर दिखेगा, लेकिन बाद में वह कम हो जाएगा। यह मानने का कोई कारण नहीं दिख रहा कि लोग उत्पादन कम कर देंगे। मान लीजिए कि फसल की बुआई पर इसका असर होता है, तब भी यह असर छह महीने से आगे नहीं जाएगा और फिर सब कुछ सामान्य होने लगेगा।

एक उम्मीद यह भी बांधी जा सकती है कि काला धन कम होने से अगर राजस्व बढ़ता है, तो विकास कार्यों पर सरकार ज्यादा खर्च करने की स्थिति में होगी। यह जरूर कहा जा रहा है कि इसका बड़ा असर विनिर्माण क्षेत्र पर दिखाई देगा। लेकिन यह असर कितना होगा, इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। काले धन के इस क्षेत्र से बाहर जाने का एक असर यह हो सकता है कि इस बाजार में तेजी का जो बुलबुला बना है, वह फूट जाए। हो सकता है कि इसके बाद वे लोग बाजार में आएं, जो अपने रहने के लिए घर खरीदना चाहते हैं और अभी तक तेजी की वजह से इस बाजार से दूर हैं। यह जरूर है कि नोटबंदी से लोगों को तरह-तरह की परेशानियां हो रही हैं। लेकिन ये परेशानियां तो होनी ही थीं, इनसे बचना संभव नहीं था। लेकिन जल्द ही सब कुछ सामान्य हो जाएगा।
(ये लेखक केअपनेविचार हैं)

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