नोटबंदी से नायाब तरीके से निपट रहा है ये गांव

भारत में नोटबंदी के बाद से आम लोगों को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

ऐसे में पश्चिम बंगाल के बृंदाबनपुर गांव के लोगों ने मुश्किलों से निपटने का आसान और बेहद पुराना तरीका निकाला है.

भारत की अर्थव्यवस्था में 500 और 1000 रुपए के नोट का इस्तेमाल बंद होने से पहले, ये बाज़ार में कुल मुद्रा का 86 फ़ीसदी थे. इनके बाज़ार से बाहर होने के बाद रिज़र्व बैंक ने 2000 और 500 रुपए के नए नोट जारी किए हैं.

लेकिन बाज़ार में फ़िलहाल आए नए नोटों की संख्या कम है और आम लोगों के सामने नकदी का संकट बना हुआ है.

ग्रामीण क्षेत्र में एटीएम की संख्या और बैंकों की शाखाएं कम हैं और इसीलिए वहां दिक्कतें कुछ ज़्यादा हैं.

लेकिन पश्चिम बंगाल के कम से कम एक गांव में लोगों ने इन परेशानियों का हल ख़ुद ही खोज लिया है.

वो सामान की अदला बदली करके अपनी जरूरतें पूरी कर रहे हैं.

बृंदाबनपुर की एक मज़दूर महिला बताती हैं, "एक किलोग्राम चावल के बदले मुझे आलू, चीनी और नमक मिल गया."

जबकि एक दूसरी महिला ने बताया, "एक किलोग्राम चावल के बदले मुझे आलू और सरसों तेल मिल गया. बच्चे के लिए बिस्कुट चाहती थी, वो नहीं मिला."

नोटबंदी का असर

अलग अलग घर परिवार की ज़रूरतें अलग अलग होती हैं. लेकिन सबका काम चल रहा है.

मज़दूरी करने वाली एक अन्य महिला बताती हैं, "एक किलोग्राम चावल के बदले मुझे माचिस, टूथपेस्ट, चीनी और चायपत्ती मिल गई."

बिपक तारिणी बागदी बताती हैं, "जीवन में नोटों का ऐसा संकट पहले कभी नहीं देखा. पैसे के बदले किसान हमें दो किलोग्राम चावल देते हैं. एक किलोग्राम घर के लिए रख लेते हैं जबकि एक किलोग्राम से दुकान से सामान बदल लेते हैं."

गांव खेतों में काम करने वाले मज़दूरों को पैसा नहीं मिल पा रहा है, ऐसे में किसान मज़दूरों को काम के बदले अनाज दे रहे हैं.

पश्चिम बंगाल की मज़दूर महिलाएं

गांव के किसान संदीप बनर्जी बताते हैं, "मैंने मज़दूरों को अनाज लेने के लिए मनाया है. मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था, बैंकों के पास पैसा नहीं है."

हालांकि गांव वाले इससे पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं. महिला मज़दूर छवि बागदी ने कहा, "पहले हमें काम के बदले हर दिन पैसा मिल जाता था, उससे मांस और मछली ख़रीद सकते थे. अब आलू और चावल से काम चलाना पड़ता है."

सामान की अदला बदली से गांव वालों को थोड़ी राहत है, लेकिन इन लोगों को चिंता है कि यदि गांव में जल्दी नकदी नहीं पहुंचा तो मुश्किलें बढ़ जाएंगी.

 

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