झारखंड: रोजगार सृजन के जरिये पलायन रोकना सबसे बड़ी चुनौती

प्रकृति ने झारखंड को भरपूर सौंदर्य और संपत्ति का उपहार दिया है. निवासियों की सांस्कृतिक विविधता इस राज्य को अप्रतिम बनाती है. उर्वर धरती, नदी और वन से मालामाल झारखंड के पास देश की 40 फीसदी खनिज संपदा का स्वामित्व है, पर मूल्य के आधार पर पूरे देश के खनिज उत्पादन का 10 फीसदी ही राज्य के हिस्से में है. धनी राज्य की जनता गरीब है. वर्ष 2000 में बिहार से अलग हुए झारखंड के साथ मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ तथा उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड की स्थापना हुई थी. एक साथ बने इन तीन राज्यों की विकास यात्रा अलग-अलग राहों से आगे बढ़ी है. राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार ने झारखंड की संभावनाओं को कुंद कर दिया था जिसे अब नयी उम्मीद मिलनी शुरू हुई है. राज्य के 16 साल पूरे होने के अवसर पर तीनों राज्यों के तुलनात्मक विश्लेषण के साथ आज की विशेष प्रस्तुति…

सभ्यताओं के उद्भव की कहानी ही विकास की कहानी है. लेखक जारेड डायमंड ने अपनी किताब ‘जर्म्स एंड द गन्स’ में खुलासा किया है कि कृषि कार्य करने से पहले मनुष्य ज्यादा स्वस्थ और खुशहाल था, क्योंकि वह अपने आराम के लिए ज्यादा समय निकाल पाता था. वास्तव में उस जमाने में भोर होते ही लोग फल संग्रहण और शिकार के लिए निकल जाते थे और शाम तक जितनी भी खाद्य सामग्री जमा होती थी, उसे मिल बांट कर खाते थे. संपत्ति का अधिकार सुनिश्चित नहीं था. वक्त ने करवट ली और लोग खेती करने लगे. लोग समूह में ज्यादा रहने लगे और आधुनिक विकास की प्रक्रिया शुरू हुई, जिससे समस्याएं भी पैदा होती गयीं. दरअसल, सभ्यताओं के उद्भव के साथ विकास के मानकों में काफी बदलाव आये हैं, जैसे- कृषि से व्यवसाय की तरफ बढ़ते हुए सकल घरेलू उत्पाद की संकल्पना सामने आयी. फिर प्रति व्यक्ति आय, मानव विकास सूचकांक, तत्पश्चात कई देशों में ‘खुशियों के सूचकांक’ मापने की कोशिश जारी है. इन्हीं तमाम बिंदुओं पर हम तीन राज्यों- झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड- के 16 वर्षों के सफर के संदर्भ में एक तुलनात्मक अध्ययन पेश कर रहे हैं.

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