आरक्षण में दिव्यांगता का एक ही पैमाना गलत : हाई कोर्ट

नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर सभी तरह की दिव्यांगता को नापने का एक ही पैमाना गलत है।

न्यायमूर्ति एस. रविंदर भट और दीपा शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि देश में 26 लाख से ज्यादा लोग विभिन्न प्रकार की दिव्यांगता का शिकार हैं। हर दिव्यांगता का अलग इलाज है। ऐसे में भारतीय दिव्यांगता मूल्यांकन आकलन के पैमाने पर 40 प्रतिशत दिव्यांगता को आदर्श नहीं माना जा सकता है। खंडपीठ ने कहा कि नौकरी में प्राथमिकता के लिए लागू पर्सन विद डिसेबिलिटी एक्ट में कई खामियां हैं।

खंडपीठ ने कहा कि हर दिव्यांगता के लिए विशेष इलाज किया जाता है और इसकी विशेष प्रकार की सीमाएं भी होती हैं। ऐसे में एक ही पैमाने पर सभी प्रकार की दिव्यांगता को मापना अव्यावहारिक है। अदालत के समक्ष यह याचिका सिविल सर्विस की पढ़ाई करने वाले एक छात्र ने लगाई थी।

उसका कहना था कि वह मानसिक रूप से बीमार है। उसकी बीमारी को एक्ट से बाहर रखा गया है। खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया मुद्दा कुछ हद तक तर्कसंगत है। इसका इलाज कानून में संशोधन करके हो सकता है। इससे पहले एकल जज की पीठ ने भी याचिका को खारिज कर दिया था।

 

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