नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन आॅफ इंडिया (एनपीसीआइ), जो भारत में सभी तरह की खुदरा भुगतान प्रणालियों का शीर्ष संगठन है, के अनुसार चोरी किए गए एटीएम-डेबिट कार्ड के डेटा की मदद से 19 बैकों के 641 ग्राहकों को साइबर अपराधियों ने 1.3 करोड़ रुपए का चूना लगाया। हालांकि, वीजा और मास्टरकार्ड के अनुसार उनके नेटवर्क के साथ सेंधमारी नहीं की गई है। मामला एटीएम नेटवर्क प्रोसेसिंग का प्रबंधन करने वाली हिताची की अनुषंगी हिताची पेमेंट सर्विसेज से जुड़ा हुआ है। फिलवक्त, मालवेयर नामक वायरस को सेंधमारी का कारण माना जा रहा है। आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव शक्तिकांत दास के अनुसार, रिजर्व बैंक और प्रभावित बैंकों की रिपोर्ट आने के बाद ही मामले में किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। दास के मुताबिक ग्राहकों को घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारतीय बैंकों की सूचना व प्रौद्योगिकी प्रणाली पुख्ता है। सरकार के नुमाइंदे के बयान के बाद भी मीडिया द्वारा कहा जा रहा है कि डेबिट कार्ड से जुड़े दूसरे खातों के हैक होने का खतरा अब भी बरकरार है, जबकि सरकार इससे इनकार कर रही है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए मीडिया को ऐसे दुष्प्रचार से परहेज करना चाहिए। इधर, वित्तमंत्री अरुण जेटली ने ग्राहकों को उनके पैसे वापिस लौटाने का भरोसा दिलाया है। रिजर्व बैंक द्वारा भी ऐसे मामलों में पीड़ित ग्राहकों को हर्जाना देने का प्रावधान किया गया है।
आमतौर पर विश्व के अधिकतर वित्तीय संस्थानों की प्लास्टिक मनी से जुड़ी शर्तों में धोखाधड़ी का शिकार होने पर मुआवजा देने की व्यवस्था नहीं होती है। ऐसी सुविधा लेने के समय कोई भी ग्राहक बैंक द्वारा प्रभारित शर्तों को ठीक से पढ़ता तक नहीं है। आमतौर पर शर्तें ऐसी होती हैं, जिनका अनुपालन ग्राहक नहीं कर पाते हैं। हालांकि भारत में स्थिति इतनी बुरी नहीं है। यहां के केंद्रीय बैंक ने 11 अगस्त 2016 को जारी अपने एक सर्कुलर में साफ तौर पर कहा है कि यदि किसी बैंक की सूचना एवं प्रौद्योगिकी की कमजोर सुरक्षा प्रणाली कीवजह से कोई आॅनलाइन धोखाधड़ी होती है तो उसकी जवाबदेही ग्राहक की न होकर संबंधित बैंक की होगी और धोखाधड़ी भेंट चढ़ी राशि का हर्जाना बैंक को पीड़ित ग्राहक को देना होगा। हां, इस तरह की आॅनलाइन धोखाधड़ी की सूचना ग्राहक को तीन दिनों के अंदर बैंक को देनी होगी।
उल्लेखनीय है कि लोगों के खाते से बिना उनकी जानकारी के पैसे निकल गए और पीड़ित ग्राहकों को इसकी भनक तक नहीं लगी, जो ग्राहक की वित्तीय साक्षरता के स्तर को दर्शाता है। रांची में रहने वाले एक जागरूक ग्राहक की शिकायत के बाद इस घपले का खुलासा हुआ। आज भी अधिकतर ग्राहक अपने खातों की विवरणी नियमित रूप से नहीं देखते हैं, जबकि लगभग सभी बैंकों ने अनेक तरह के एप्स ग्राहकों को मुहैया करा रखे हैं। गौरतलब है कि बैंकिंग एप्स की मदद से खातों से जुड़ी अनेक तरह की सूचनाएं हासिल की जा सकती हैं। भारतीय स्टेट बैंक ने हाल ही में ‘एसबीआइ क्विक’ के नाम से एक ऐसा एप विकसित किया है, जिसकी मदद से एटीएम कार्ड को बिजली के स्वीच की तरह आॅन व आॅफ किया जा सकता है, अर्थात एटीएम से पैसे निकालने के समय आप एटीएम कार्ड का स्वीच आॅन कर पैसे निकाल सकते हैं और उसके तुरंत बाद उसके स्वीच को आॅफ भी कर सकते हैं, जिससे फ्रॉड से आसानी से बचा जा सकता है।
आज वैश्विक स्तर पर बैंकिंग प्रणाली आॅनलाइन हो चुकी है और ग्राहकों से जुड़ी तमाम वित्तीय जानकरियां सर्वर में मौजूद हैं, जिसके हैक होने की आशंका हमेशा बनी रहती है, लेकिन आवश्यक सावधानी बरत कर इस तरह की धोखाधड़ी से बचा जा सकता है। देखा जाए तो दिनचर्या के सारे काम करने में हम सावधानी बरतते हैं। खाना बनाने से लेकर सड़क पार करने तक में सावधानी बरतने की जरूरत होती है, लेकिन वित्तीय मामलों में आज भी अधिकतर भारतीय निरक्षर हैं। बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल करने वाले लोग भी एटीएम का इस्तेमाल करना नहीं जानते हैं, जबकि एटीएम का कैसे इस्तेमाल करें, क्या-क्या सावधानियां बरतें, तमाम जानकरियां एटीएम कार्ड के साथ संलग्न विवरण पुस्तिका में दी हुई रहती हैं, लेकिन कोई भी इसे पढ़ने की जहमत नहीं उठाता। इतना ही नहीं, एटीएम मशीनकेकेबिन की दीवारों में भी तमाम जानकरियां व एहतियात बरतने के नुस्खे पोस्टरों में लिखे रहते हैं। वर्तमान में भी लोग अपने एटीएम कार्ड को दोस्त, रिश्तेदार आदि को देने से नहीं हिचकते हैं। पॉइंट आॅफ सेल में भी इसका बेहिचक इस्तेमाल करते हैं। ई-कॉमर्स में इजाफा होने के बाद से ग्राहक मोबाइल से इंटरनेट के जरिये आॅनलाइन खरीददारी कर रहे हैं, लेकिन इस क्रम में किस तरह की सावधानियां उन्हें बरतनी चाहिए इससे वे अनजान हैं।
लोग अपना मोबाइल भी दूसरों के साथ साझा करते हैं, जबकि मोबाइल नंबर बैंक में निबंधित होता है और उसके जरिये फ्रॉड को अंजाम दिया जा सकता है। आज भारत के बाजार में चीन के मोबाइलों का कब्जा है, जिनकी सुरक्षा प्रणाली कमजोर होती है। ऐसे मोबाइलों से डेटा चुराना आसान होता है।
अगर ग्राहक सचेत रहें और अपने को बैंकिंग तकनीक में रोज आ रहे बदलावों से अद्यतन रखें तो आसानी से आॅनलाइन ठगी से बचा जा सकता है। मामले में यदि ग्राहक मैगनेटिक स्ट्रिप वाले एटीएम-डेबिट कार्ड की जगह ईवीएम चिप वाले कार्ड का इस्तेमाल करें, क्योंकि इसमें खाते की सूचनाएं कोडिंग में दर्ज होती हैं, जिन्हें डिकोड नहीं किया जा सकता है, निश्चित अंतराल पर अपने एटीएम कार्ड का पासवर्ड बदलते रहें, अपने बैंक की एटीएम मशीन का ही इस्तेमाल पैसों की निकासी या दूसरे वित्तीय कार्यों के लिए करें, धोखाधड़ी का पता चलते ही तुरंत अपने एटीएम कार्ड को टोल फ्री नंबर (जो एटीएम कार्ड के पिछले हिस्से में दर्ज होता है) पर फोन करके ब्लॉक कराएं, धोखाधड़ी की सूचना तुरंत बैंक को दें तथा शिकायत बैंकिंग लोकपाल व पुलिस से भी करें, एक दिनी कार्यक्रम जैसे आइपीएल मैच, क्रिकेट मैच, त्योहार, सेमिनार, कार्यशाला, मेला, प्रदर्शनी आदि में मुहैया कराई गई अस्थायी वित्तीय सुविधाओं के उपयोग से बचें, सार्वजनिक वाइ-फाइ का उपयोग न करें, होटल, रेस्तरां, पेट्रोल पंप आदि स्थानों में एटीएम कार्ड का इस्तेमाल करते समय किसी दूसरे से पासवर्ड साझा न करें, आॅनलाइन खरीदारी करने या भुगतान करने के लिए साइबर कैफे का उपयोग न करें, हर बार वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) की मदद से ही ट्रांजेक्शन करें, आदि उपायों के जरिये आॅनलाइन ठगी से बचा जा सकता है।
एटीएम-डेबिट कार्ड की डेटा चोरी बैंकों की तकनीकी सुरक्षा प्रणाली में कमी को जरूर दर्शाती है, लेकिन इससे ग्राहकों को घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारतीय बैंकों की सूचना व प्रौद्योगिकी प्रणाली मजबूत है। साथ ही, हमारे देश के केंद्रीय बैंक ने बैंक की सूचना व प्रौद्योगिकी प्रणाली की कमजोरी की वजह से हुए आॅनलाइन ठगी के मामलों में मुआवजे का प्रावधान किया है। इस संबंध में इसी साल अगस्त महीने में सर्कुलर भी जारी किया गया है। ग्राहकों का भी दायित्व है कि वे बैंकिंग क्षेत्र में आए दिन आ रहे तकनीकी बदलावों से अपने को अद्यतन रखें तथा बैंक द्वारा बताई जा रही सावधानियों का भी अनुपालन करें।