सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कम वेतन पर समान काम करना बंधुआ मजदूरी जैसा

सुप्रीम कोर्ट ने देश के लाखों अस्थायी कर्मचारियों को राहत देते हुए बुधवार (26 अक्टूबर) को फैसला दिया है कि सभी अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों के बराबर वेतन मिलना चाहिए। देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि "समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांत" पर जरूर अमल होना चाहिए। अदालत के इस फैसले से अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) पर काम कर रहे लाखों कर्मचारी लाभान्वित होंगे। जस्टिस जेेएस केहर और जस्टिस एसए बोबड़े की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि "समान काम के लिए समान वेतन" के तहत हर कर्मचारी को ये अधिकार है कि वो नियमित कर्मचारी के बराबर वेतन पाए। पीठ ने अपने फैसले में कहा, "हमारी सुविचारित राय में कृत्रिम प्रतिमानों के आधार पर किसी की मेहनत का फल न देना गलत है। समान काम करने वाले कर्मचारी को कम वेतन नहीं दिया जा सकता। ऐसी हरकत न केवल अपमानजनक है बल्कि मानवीय गरिमा की बुनियाद पर कुठाराघात है।"

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि सर्वोच्च अदालत अपने कई फैसलों में इस सिद्धांत का हवाला दे चुकी है और सुप्रीम कोर्ट का फैसला कानून होता है। पीठ ने अपने फैसले में कहा, "कोई भी अपनी मर्जी से कम वेतन पर काम नहीं करता। वो अपने सम्मान और गरिमा की कीमत पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए इसे स्वीकार करता है। वो अपनी और अपनी प्रतिष्ठा की कीमत पर ऐसा करता है क्योंकि उसे पता होता है कि अगर वो कम वेतन पर काम नहीं करेगा तो उस पर आश्रित इससे बहुत पीड़ित होंगे।"

जस्टिस केहर द्वारा लिखित फैसले में कहा गया है, "कम वेतन देने या ऐसी कोई और स्थिति बंधुआ मजदूरी के समान है। इसका उपयोग अपनी प्रभावशाली स्थिति का फायदा उठाते हुए किया जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि ये कृत्य शोषणकारी, दमनकारी और परपीड़क है और इससे अस्वैच्छिक दासता थोपी जाती है।" अदालत ने अपने फैसले में साफ कह कि समान काम के लिए समान वेतन का फैसला सभी तरह के अस्थायी कर्मचारियों पर लागू होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *