कृषि क्षेत्र सुधार के आधार पर नीति आयोग द्वारा जारी की जाने वाली राज्यों की रैंकिंग से बिहार को बाहर रखा जा सकता है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का प्रदर्शन भी अच्छा नहीं माना जा रहा है।
रैंकिंग के लिए केंद्रीय मॉडल कानून राज्य में लागू करना और किसानों को सुविधाएं मुहैया कराना कसौटी माना गया है और इस आधार पर आयोग की नजर में तीनों राज्य खरे नहीं उतरते।
आर्थिक मदद का आधार होगी रैंकिंग
आयोग के सूत्रों के मुताबिक रैंकिंग में कृषि उत्पादन विपणन समिति कानून (एपीएमसी)-2003 समेत कृषि संबंधी अन्य केंद्रीय दिशा-निर्देश लागू करने वाले राज्य शामिल किए गए हैं। यही वजह है कि बिहार इस रैकिंग से बाहर है, क्योंकि उसने एपीएमपी को 2006 में निरस्त कर दिया था। जबकि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में इसे समुचित ढंग से लागू नहीं किया गया है। इसके अलावा रैंकिंग के लिए अनाज भंडारण सीमा, बीज के दाम पर अंकुश और मृदा परीक्षण समेत कई अन्य पैमाने रखे गए हैं।
आयोग का मानना है कि राज्यों में इस रैंकिंग से प्रतिस्पर्धा भी आएगी, क्योंकि इसके आधार पर राज्यों को कृषि क्षेत्र के कल्याण के लिए आर्थिक मदद मुहैया कराने की सिफारिश की जाएगी। याद रहे कि नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद्र यह रैंकिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर तैयार कर रहे हैं।
राज्यों के दावे पर टली रैंकिंग
आयोग के सूत्रों की माने तो यह रैंकिंग सूची तैयार हो चुकी थी और उसे आयोग द्वारा जारी किया जाने वाला था। लेकिन बीते सप्ताह राज्य के शीर्ष अधिकारियों के साथ हुई बैठक के बाद उसे अगले माह तक के लिए टाल दिया गया।
दरअसल आयोग ने राज्यों की रैंकिंग कृषि मंत्रालय द्वारा दिए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार की थी। आयोग की बैठक में शामिल हुए राज्य के अधिकारियों ने दावा किया कि मंत्रालय ने उसे ताजा आंकड़े नहीं मुहैया कराए हैं। कई राज्यों द्वारा उठाए गए सुधारात्मक कदम आयोग को पता ही नहीं हैं।
सूत्रों की माने तो बैठक में कई राज्यों ने अपनी रैंक पर असंतोष जताया और प्रमाण समेत अपनी उपलब्धियां गिनायी जिसके बाद इस सूची में संशोधन किया जा रहा है।