महाराष्ट्र के वाशिम जिले में साईखेड़ा गांव की रहने वाली संगीता अहवाले ने अपने घर में शौचालय बनवाने के लिए अपना मंगलसूत्र तक बेच दिया। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित कोटाभारी गांव की 104 वर्षीय वृद्ध कुंवर बाई ने घर में शौचालय के निर्माण के लिए अपनी बकरियां बेच दीं। कोलारस ब्लॉक के गोपालपुरा गांव की आदिवासी दुल्हन प्रियंका अपनी ससुराल में शौचालय नहीं होने के चलते मायके लौट आई। आंध्र प्रदेश के गुंटुर जिले की एक मुस्लिम महिला ने अपनी नई बहू को उपहार में एक शौचालय दिया। इसके अलावा देश में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं जहां लड़कियों ने उन घरों में शादी करने से इनकार कर दिया जहां शौचालय नहीं थे। इन सभी मामलों में एक बात समान है वह यह कि महिलाएं ही आत्मसम्मान को बरकरार रखने के लिए नई भावना को जागृत कर रही हैं। स्कूल की एक छात्रा लावण्या तब तक भूख हड़ताल पर बैठी रही जब तक कर्नाटक स्थित उसके गांव हालनहल्ली के सभी 80 परिवारों में शौचालयों का निर्माण नहीं हो गया। स्वच्छ भारत की दिशा में आए भारी बदलाव की ये कुछ झलकियां ही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दो अक्टूबर, 2014 को शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान बीते दो सालों के दौरान शुरू किए गए महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में से एक है। इसमें दोराय नहीं कि देश को साफ-सुथरा बनाने का यह विचार एकदम नया नहीं है। इसके लिए पहले भी संपूर्ण स्वच्छता मिशन और निर्मल भारत अभियान जैसे प्रयास किए गए हैं, लेकिन इस बार इसमें मजबूत इरादा और क्रियान्वयन की शक्ति भी है। इस बार स्वच्छता अभियान में देशवासियों के व्यवहार परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो कि शौचालयों के उपयोग के लिए नितांत आवश्यक है। शौचालय बना लेना तो बहुत ही आसान है, लेकिन लोगों को उन्हें उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना सबसे बड़ी चुनौती है।
यह कमाल की बात है कि आज से सौ वर्ष पूर्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अपने एक संबोधन में देश में सफाई की खराब स्थिति के बारे में अपनी आवाज उठाई थी। काशी विश्वनाथ मंदिर को जाने वाली सभी सड़कों को देखकर वे स्तब्ध रह गए थे। गांधीजी ने कहा था कि स्वच्छता भी राजनीतिक आजादी जितनी ही महत्वपूर्ण है। भारत को अंग्रेजी दासता से मुक्त हुए सत्तर साल हो चुके हैं, लेकिन कितने दुख की बात है कि हमारा देश अभी तक खुले में शौच और चारों तरफ फैली गंदगी के अभिशाप से आजाद नहीं हुआ है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2019 तक देश को इस गंदगी से मुक्ति दिलाने के लिए इस अभियान की शुरुआत की। भारतीय संस्कृति और लोकाचार में युगों-युगों से आत्मा की पवित्रता पर काफी जोर दिया गया है। व्यक्तिगत मुक्ति के एक साधन के रूप में आत्मा की पवित्रता की यह अवधारणा वास्तव में प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने के साथ-साथ वैचारिक प्रक्रियाओं और कार्योंमें सभी पहलुओं से जुड़ी है। चारों और फैले कचरे के ढेर, खुले में कूड़ा फेंकने, नहरों व नदियों को प्रदूषित करने, अवरुद्ध सीवर और नाले, बढ़ता जल और वायुप्रदूषण, पेड़ों और वनों की कटाई आत्मा की पवित्रता से प्रेरित जीवन की पवित्रता के अनुरूप नहीं हैं। दरअसल स्वच्छ भारत मिशन का उद्देश्य लोगों के सोचने की प्रक्रियाओं व कार्यों के रुख और विश्वास में बदलाव लाकर आत्मा और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करना है।
खुले में शौच से पूर्ण मुक्ति, ठोस और तरल कचरा प्रबंधन स्वच्छ भारत के लक्ष्य को साकार करने के लिए दो महत्वपूर्ण घटक हैं। खुले में शौच ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आम चिंता का विषय है, जबकि कचरा प्रबंधन शहरी क्षेत्रों की प्रमुख चिंता है। साफ-सफाई की खराब स्थिति के चलते होने वाली बीमारियों के कारण गरीबों के ऊपर विशेष रूप से आर्थिक बोझ पड़ता है।
व्यावहारिक परिवर्तनों में शौचालय के उपयोग की आदत को बढ़ावा देना, खुले में गंदगी न फैलाना, ठोस कचरे को अलग-अलग करना, खाने से पहले हाथ धोने जैसे व्यवहारों को दैनिक आदत में शामिल करना, रिहायशी और कार्यस्थल तथा सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ बनाए रखना, लोक स्वच्छता प्रबंधन में जनभागीदारी तथा पार्कों के रखरखाव को शामिल किया जाएगा। वास्तव में रिहायशी और सार्वजनिक स्थलों की स्वच्छता को सभी नागरिकों के लिए चिंता का विषय बनाना होगा। स्वच्छ भारत मिशन की दिशा में जारी प्रयासों की सफलता के केंद्र में लोगों को साफ-सफाई के प्रति संवेदनशील बनाना भी है।
खुले में शौच अपने सम्मान को नकारना है। बाध्यता के कारण यह लोगों की आदत बन गई है। शौचालय बनाने का अवसर मिलने पर कोई भी खुले में शौच करना नहीं चाहेगा। शहरी क्षेत्रों में तो यह और अपमानजनक है। खुशी की बात है कि पिछले दो वर्षों में लगभग 85,000 गांव और 141 शहर खुले में शौच से मुक्त हुए हैं। स्वच्छ भारत अभियान शुरू किए जाने के बाद से ग्रामीण क्षेत्रों में दो करोड़ से अधिक और शहरी क्षेत्रों में 25 लाख से अधिक शौचालय बनाए गए हैं।
हालांकि धीमी शुरुआत के बाद स्वच्छ भारत मिशन ने गति पकड़ी है और अगले तीन वर्षों में इसकी यह तेजी बनाए रखी जाएगी ताकि देश गंदगी की पीड़ा से मुक्त हो सके। हम गर्व के साथ विश्व को 2019 तक स्वच्छ भारत दिखा सकते हैं।
स्वच्छ भारत मिशन की दूसरी वर्षगांठ के मौके पर स्वच्छता की अलख जगाने और स्वच्छ भारत का संकल्प लेने के लिए देश के विभिन्न् भागों में अभियान और गतिविधियां चलाई जा रही हैं। प्रधानमंत्री ने पहले ही दिन मुझसे कहा कि स्वच्छ भारत मिशन को सिर्फ सरकारी कार्यक्रम ही नहीं, बल्कि एक जन-आंदोलन बनाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। हमने इस दिशा में ठोस प्रयास किए हैं। हम इस जन-अभियान में लोगों की भागीदारी, सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आमजन तक पहुंचे हैं। स्वच्छ भारत कार्यक्रम में अब राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विभिन स्तरों पर निर्वाचित जनप्रतिनिधि, उद्योग संस्थान, विभिन्न् क्षेत्रों की ख्यात हस्तियां भी शामिल हो गई हैं। आत्मा की शुद्धता के भारतीय मूल्य को साकार करने के लिए लोग शौचालय बनवा रहे हैं और इसके लिए कई लोग अपनी संपत्ति तक बेच रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि अब इस अभियान ने जनांदोलन का रूप ले लिया है।
(लेखक केंद्रीय शहरी विकास, आवास तथा सूचना एवंप्रसारणमंत्री हैं)