भोपाल। कुपोषण से हुई बच्चों की मौत से बैकफुट पर आई सरकार अब इस समस्या से लड़ने के लिए महिलाओं पर फोकस करेगी। इसके लिए गर्भवती और बच्चों को दूध पिलाने वाली धात्री माताओं को एक टाइम का भोजन मुहैया कराया जाएगा। पहले इसे सिर्फ 89 आदिवासी बहुल विकासखंडों में लागू करने की तैयारी थी लेकिन इसे अब प्रदेशभर में लागू किया जाएगा। महिला एवं बाल विकास विभाग योजना के मसौदे को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। इसे जल्द ही कैबिनेट के सामने रखा जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक प्रदेश में शून्य से पांच वर्ष के करीब सवा 13 लाख बच्चे कुपोषण से प्रभावित हैं। आदिवासी बहुत जिलों में स्थिति ज्यादा खराब है। महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कुपोषण की मुख्य वजह महिलाओं में पोषक तत्व की कमी है। गर्भवती महिलाओं को जब संपूर्ण पोषण आहार नहीं मिलता है तो इसका असर गर्भ में पलने वाले बच्चे पर पड़ता है। वो जन्म से ही कमजोर होता है।
कुपोषण की इस मुख्य वजह पर फोकस करते हुए महिलाओं के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की योजना बनाई गई है। इसके तहत उन्हें एक समय का भोजन सरकार मुहैया कराएगी। ये सांझा चूल्हा के माध्यम से गांव में ही स्व-सहायता समूह से बनवाकर बंटवाया जा सकता है। इसके लिए राशन आदि की व्यवस्था सरकार करेगी।
वैसे भी तीन से छह वर्ष के बच्चों को आंगनवाड़ी में सांझा चूल्हा के माध्यम से गर्म भोजन कराया जाता है। इसमें महिलाओं का भोजन भी शामिल किया जा सकता है। इसमें सरकार पर व्यवस्थाएं जुटाने के लिए अतिरिक्त वित्तीय भार नहीं आएगा। विभाग के प्रमुख सचिव जेएन कंसोटिया ने बताया कि विभाग योजना को लागू करने पर विचार कर रहा है। अंतिम निर्णय सरकार के स्तर पर होगा।
डेढ़ से दो सौ करोड़ रुपए आ सकता है खर्च
सूत्रों का कहना है कि करीब डेढ़-दो साल पहले भी इस योजना को लागू करने की तैयारी हुई थी पर किन्हीं कारणों से इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था। विभाग ने पांच जिलों में योजना को पायलट प्रोजेक्ट पर चलाया और सकारात्मक नतीजे आने पर इसे लागू करने की सिफारिश सरकार से की थी। बताया जा रहा है कि योजना पर डेढ़ से दो सौ करोड़ रुपए का खर्च आ सकता है। इसकी पूर्ति महिला एवं बाल विकास विभाग केंद्र सरकार से अनुदान प्राप्त कर और अपने बजट से करेगा।