अपने देश में हर साल फ्लू, डेंगू और चिकनगुनिया के आने के साथ पैरासिटामॉल की बिक्री में जबर्दस्त उछाल बदलते मौसम की तरह है। पैरासिटामॉल अकेली ऐसी दवा है, जो आम प्रचलित एस्प्रिन, ब्रूफेन या अन्य दर्द निवारक दवाओं की अपेक्षा कहीं ज्यादा सुरक्षित मानी जाती है। यह कम साइड इफेक्ट वाली तो है ही, डेंगू या अन्य अज्ञात कारणों से होने वाले बुखार में होने वाले रक्तस्राव की आशंका को भी लगभग खारिज करती है। पर ज्यादातर लोग नहीं जानते कि शराब के सेवन के साथ पैरासिटामॉल की मौजूदगी कई बार घातक हो सकती है। कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में कई ऐसे मामले सामने आए, जिसमें पैरासिटामॉल (वहां एसीटामिनोफेन) की अधिकता के साथ शराब की मौजूदगी से लीवर खराब होने की बात पुष्ट हुई। वहां अस्पतालों में भर्ती होने के मामलों में आधे से ज्यादा शराब के साथ पैरासिटामॉल की ओवरडोज के थे, जो कई बार मौत का भी कारण बने।
भारत में जहां इतने प्रचार के बावजूद कम ही लोग हेपेटाइटिस ‘ए’ और ‘बी’ के खतरे और इसका इंजेक्शन लगवाने के प्रति सचेत हैं, वहां शराब के बाद लीवर खराब होने का बड़ा कारक भोजन और पानी के जरिये होने वाला संक्रमण है। इनमें भी ज्यादातर मामलों में केस बिगड़ने के बाद इसकी वजह औषधीय विषाक्तता पाई गई है, जिसके पीछे असल कारण शरीर में पैरासिटामॉल की अधिकता थी। पैरासिटामॉल का इस्तेमाल आमतौर पर सिरदर्द, सामान्य सर्दी-बुखार, वायरल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन, दांत दर्द, मोच और मासिक धर्म के दौरान दर्द में किया जाता है। कफ सिरप और अन्य अनेक दवाओं में भी यह होती है। तमाम मामलों में आप न चाहते हुए भी इसे लेने को बाध्य होते हैं। यह औषधीय विषाक्तता तब ज्यादा होती है, जब दवा लेने के बाद इसके शरीर से निकलने की अवधि की अपेक्षा शरीर में घुल जाने की गति ज्यादा होती है। ज्यादातर मामलों में पैरासिटामॉल का नियंत्रित इस्तेमाल इसलिए खतरनाक नहीं होता, क्योंकि यह तेजी से शरीर में घुलता है और अपना काम करके पेशाब के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है। इसीलिए दवा लेने के दौरान पानी ज्यादा पीने की सलाह दी जाती है।
दवा के अच्छे और बुरे इस्तेमाल के कानून हर देश में हैं, लेकिन हमारे यहां इनके पालन में खासी लापरवाही बरती जाती है। माना यह जाता है कि हमारा चिकित्सा तंत्र ड्रग रिएक्शन के मामलों की रिपोर्ट डायरेक्टर जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज को करेगा, लेकिन ऐसा होता नहीं है। लगभग साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले कनाडा में पैरासिटामॉल की ओरवडोज से बिगड़े मामलों के 4,500 मामले दर्ज हुए, जबकि इसी अवधि में अकेले उत्तर प्रदेश में एक भी ऐसा मामला दर्ज नहीं हुआ। क्या 20 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले इस राज्य में ऐसे मामले नहीं आए होंगे? यह लापरवाही बड़े खतरे को आमंत्रण दे रही है।