पिछले वर्ष मैं पूर्वी यूरोप के क्रोएशिया और स्लोवानिया में दो सप्ताह की यात्रा पर गया था। वहां जहां-जहां यानी जिन शहरों में गया, सड़कों पर सफाई देखकर दंग रह गया। इसके मुकाबले यहां ब्रिटेन में गंदगी की समस्या बहुत गंभीर और अनियंत्रित है। इससे अक्सर लगता है कि लंदन शायद अब दुनिया भर में न सही, मगर यूरोप में सबसे अधिक गंदा शहर है। पिछले काफी समय से यहां गंदगी कम होने की बजाय बढ़ती ही दिखाई दे रही है। कारण वही है, जो दुनिया भर में गंदी जगहों का होता है। जब आप जगह-जगह कूड़ा देखते हैं, तो कोई कारण नहीं कि आप भी वहां कूड़ा न डालें। जगह-जगह कूड़ेदान रखे हुए हैं, पर सोच यह रहती है कि जब अन्य लोग उनका उपयोग नहीं करते, तो मैं क्यों करूं? जब इतना कूड़ा है, तो चिप्स या चॉकलेट का एक रैपर या कोक का टिन और डाल देने से क्या फर्क पड़ता है?
साप्ताहिक पत्रिका स्पेक्टेटर के अनुसार, इंग्लैंड की सड़कों से तीन करोड़ टन कूड़ा प्रतिवर्ष उठाया जाता है, और सरकार द्वारा चलाए जाने वाले सफाई अभियानों के बावजूद यह बढ़ता जा रहा है। अप्रैल में महारानी एलिजाबेथ की 90 वर्षगांठ के अवसर पर पूरे देश में सफाई अभियान चलाया गया था, पर इससे भी कोई बहुत ज्यादा सफाई नहीं हो सकी।
लोगों द्वारा फैलाए जा रहे कूड़े को कैसे रोका जाए, यह समूची दुनिया की समस्या है। इसका एक तरीका सिंगापुर में निकाला गया है। वहां कूड़ा फैलाने वालों के लिए भारी जुर्माने व जेल का प्रावधान है। च्युंगम जैसी कूड़े का कारण बनने वाली चीजें तो वहां पूरी तरह प्रतिबंधित हैं। वहां पहली बार सड़क पर सिगरेट के टुकड़े, चिप्स के पैकेट, रैपर आदि छोटी-मोटी चीजें फेंकने पर 300 डॉलर का जुर्माना लगता है, जो बाद में और भी बढ़ जाता है। सड़क साफ करने वाले की कमीज पर साफ शब्दों में लिखा रहता है ‘कूड़ा फेंकने की सजा’। यहां भी यदि ऐसा कुछ किया जा सके, तो शायद धीरे-धीरे लोगों में कूड़ा डालने की आदत छूटेगी, जैसी कि कार चलाते समय सीट बेल्ट बांधने की आदत सुधरी है। लेकिन हर जगह ऐसी सख्ती सफल होगी, इसमें शक जरूर है।
कूड़े को लेकर हर देश की समस्या अलग है। कई जगहों पर घर के बाहर कूड़ेदान रखना ही समस्या का कारण बन जाता है। कबाड़ी और स्मैक की लत वाले लोग कूड़ेदान उठाकर ले जाते हैं और औने-पौने दाम पर बेच देते हैं। कुछ जगहों पर अन्य उपाय अपनाए गए हैं। मसलन, लोग अपना कूड़ा घरों में ही रखते हैं और स्थानीय निकाय की गाड़ी उनसे कूड़ा ले जाती है। इस सेवा के लिए स्थानीय निकाय को उन्हें बाकायदा भुगतान करना होता है। कुछ जगह यह सेवा निजी क्षेत्र या एनजीओ वगैरह को भी सौंप दी गई है। स्थानीय स्तर पर ऐसे कई समाधान सोचे और निकाले जा रहे हैं। लेकिन फिर भी हमारे शहरों-कस्बों वगैरह को कूड़े से मुक्ति नहीं मिल रही।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)