डॉ. जयंतीलाल भंडारी। हाल ही में नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) के नेशनल एचीवमेंट सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि मध्यप्रदेश के स्कूलों में विद्यार्थी हर विषय की पढ़ाई में राष्ट्रीय औसत से भी कमजोर हैं। सर्वे में यह भी कहा गया है कि प्रदेश में प्रायवेट स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूलों के बच्चे और अधिक कमजोर हैं। प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में कमी संबंधी इस नवीनतम सर्वे के पहले भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई रिपोर्ट्स में मप्र में शिक्षा के स्तर पर चिंताएं प्रस्तुत हुई हैं। इन पर इसलिए ध्यान देना जरूरी है क्योंकि शिक्षा की गुणवत्ता से विद्यार्थियों के रोजगार और करियर का सीधा संबंध है। गौरतलब है कि राजस्थान सहित कुछ अन्य राज्य शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाकर रोजगार व प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलत्ाा के मद्देनजर बहुत आगे बढ़ चुके हैं।
यद्यपि मप्र देश में क्षेत्रफल की दृष्टि से दूसरे और जनसंख्या की दृष्टि से छठे क्रम पर है, लेकिन शैक्षणिक गुणवत्ता की कमी के कारण हमारे विद्यार्थी देश की प्रशासनिक व प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलत्ाा की दृष्टि से बहुत पीछे हैं। देश की सर्वप्रमुख सिविल सेवा परीक्षा में मप्र से कम ही उच्च प्रशासनिक अधिकारी निकलते हैं। आईएएस देने में मप्र दसवें क्रम पर है, वहीं पड़ोसी राजस्थान के युवाओं ने वर्ष 2015 के सिविल सेवा रिजल्ट में पिछले कई वर्षों से आगे चल रहे प्रदेशों को पीछे कर पहला क्रम हासिल कर लिया है। राजस्थान से 28 आईएएस चयनित हुए हैं। इधर, मप्र ने पिछले पांच वर्षों में मात्र 27 आईएएस ही दिए हैं।
मप्र से अधिक संख्या में युवा विभिन्न् प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो सकें, तेजी से बढ़ते निजी क्षेत्र में बेहतर नौकरियां पा सकें या खुद के आइडिया को बेहतर बिजनस में बदलकर सफल आंत्रप्रेन्योर बन सकें, इसके लिए प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना पहली शर्त है। जिस तरह राजस्थान में स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक शिक्षा की गुणवत्ता के ठोस प्रयास हुए, वैसे ही प्रयास मप्र को भी करने होंगे। मप्र शासन और प्रशासन को इसके लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। इसके लिए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में विशेष अभियान चलाए जाने चाहिए।
बीते एक दशक से राष्ट्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं में हिंदी माध्यम के छात्र भी बड़ी संख्या में सफल हो रहे हैं। ऐसे में भाषा का सवाल अब उतना बड़ा नहीं लगता। हालांकि इसका मतलब ये नहीं कि विद्यार्थी या सरकार भाषा को लेकर शिथिल हो जाएं। प्रदेश के विद्यार्थियों को हिंदी के साथ अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में भी अपना स्तर ऊंचा उठाना होगा। जब वे लक्ष्य केंद्रित होकर अध्ययन में निरंतरता लाकर कठोर परिश्रम करेंगे तो निश्चित रूप से सफलत्ाा उनकी मुट्ठी में होगी।
(लेखक करियर एक्सपर्ट हैं।)