स्थानीय निकायों में व्याप्त भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता की बीमारी ने ऐसी स्थितियां उत्पन्न् कर दी हैं कि हमारे ज्यादातर शहर गंदगी के ठिकानों में तब्दील होकर रह गए हैं। देश में साफ-सफाई की लचर स्थिति तब और अधिक हैरान करने वाली है जब स्वच्छता उपकर के नाम पर नागरिकों से अलग से टैक्स भी वसूला जा रहा है। भारत को स्वच्छ व स्वस्थ बनाने के लिए सरकारों को इस ओर ध्यान देना ही होगा।
इस वर्ष अच्छे मानसून ने कृषि और किसानों को तो राहत पहुंचाई, लेकिन देश के एक बड़े हिस्से में बाढ़ के हालात भी पैदा कर दिए। ग्रामीण इलाकों में बाढ़ और शहरी इलाकों में जल भराव के कारण कई बीमारियों का प्रकोप बढ़ा है। देश के विभिन्न् हिस्सों के साथ राजधानी दिल्ली में डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया सरीखी बीमारियों ने पैर भी पसार लिए हैं। अस्पतालों में इन बीमारियों के शिकार लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है। इसी के साथ सरकारी स्वास्थ्य ढांचे की बदहाली के नए-नए नमूने भी सामने आ रहे हैं।
हालांकि राज्यों के स्वास्थ्य विभाग इससे अच्छी तरह परिचित हैं कि हर साल बारिश अपने साथ तमाम बीमारियां भी लेकर आती हैं, फिर भी समय रहते उपयुक्त उपाय नहीं किए गए। अपने देश में प्राय: सभी सरकारी विभाग आसन्न् समस्याओं का पहले से आकलन करने में निष्क्रिय हैं। इसी कारण केंद्र और राज्य सरकार की नाक के नीचे यानी दिल्ली में भी अव्यवस्थाओं का बोलबाला दिख रहा है। जगह-जगह जलभराव और गंदगी ने मच्छरों को पनपने का मौका दिया और उसके चलते डेंगू और चिकनगुनिया के मरीज बढ़ते जा रहे हैं।
इन बीमारियों का प्रकोप अनधिकृत कॉलोनियों में ज्यादा दिख रहा है तो इसी कारण कि वहां गंदगी का साम्राज्य है। साफ-सफाई के मामले में दिल्ली जैसा हाल देश के बाकी नगरों में है और वह भी तब जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी स्वच्छता अभियान को शुरू हुए दो साल होने वाले हैं। विडंबना यह है कि केंद्र सरकार की प्राथमिकता वाले इस अभियान के प्रति खुद केंद्रीय शासन के कई विभाग सजग-सतर्क नहीं।
यह बिल्कुल भी ठीक नहीं, क्योंकि पिछले दिनों ही यह खबर आई है कि ब्राजील को त्रस्त करने वाली जीका बीमारी की चपेट में भारत भी आ सकता है। इस आशंका का कारण यह है कि जीका मच्छर जनित संक्रमण से फैलती है।
स्वास्थ्य समवर्ती सूची का विषय है यानी केंद्र और राज्यों की साझी जिम्मेदारी वाला क्षेत्र है। इस सबके बावजूद यह राज्य सरकारों की बुनियादी जिम्मेदारी है कि वे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य के ढांचे को मजबूत करें।
केंद्र सरकार इन कार्यों के लिए धन उपलब्ध करा सकती है, लेकिन जमीनी स्तर पर योजनाओं के सही क्रियान्वयन की जिम्मेदारी तो राज्यों के प्रशासनिक तंत्र और स्थानीय निकायों की है। साफ-सफाई के मामले में तो पूरी जिम्मेदारी स्थानीय निकायों की ही है। समस्या यह है कि न तो नगर निकाय साफ-सफाई के मामले में अपने दायित्वों के निर्वहन के प्रति सजग-सचेत हैं और न ही राज्य सरकारें।
नगर निकायों की पहली जिम्मेदारी ही शहरों को साफ-सुथरा रखना और बुनियादी सुविधाओं को दुरुस्त रखना है, लेकिन वे यह काम भी सही तरहनहीं कर पा रहे हैं। इन निकायों में व्याप्त भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता की बीमारी ने ऐसी स्थितियां उत्पन्न् कर दी हैं कि हमारे शहर समस्याओं के ठिकानों में तब्दील होकर रह गए हैं। गंदगी, जलभराव, अतिक्रमण, टूटी-फूटी सड़कें और बेतरतीब यातायात आज शहरों की निशानी हैं। सभी इससे परिचित हैं कि डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां क्यों पनपती हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि उनकी पहले से रोकथाम के कोई उपाय नहीं किए जाते।
यह समझ से परे है कि शहरों में स्थानीय निकाय अब तक कूढ़े के निस्तारण व साफ-सफाई की कोई ठोस व्यवस्था क्यों नहीं कर सके हैं? यदि स्थानीय निकायों के कर्मचारी और अधिकारी अपना काम सही तरह नहीं कर रहे हैं तो इसका एक बड़ा कारण यह है कि उन्हें दंडित होने का भय नहीं। अधिक से अधिक उन पर न्यायपालिका का दबाव होता है। सरकारों के स्तर पर उन पर कोई दबाव नहीं बन पाता।
जब किसी शहर में बुनियादी सुविधाओं के अभाव की कोई गंभीर समस्या उत्पन्न् होती है तो ऊपर के एक-दो अधिकारियों के स्थानांतरण को कड़ी कार्रवाई का नाम देकर समस्या पर पर्दा डाल दिया जाता है और कई बार तो तब, जब कोई अदालत कड़ी टिप्पणी करती है। क्या यह उचित है कि देश के नागरिक साफ-सफाई के लिए भी अदालतों का रुख करें या उसके किसी निर्देश की प्रतीक्षा करें?
साफ-सफाई के मामले में स्थानीय निकायों की निष्क्रियता का कारण धन का अभाव नहीं है। कई मामलों में वे राजनीतिक कारणों से अपना काम सही तरह नहीं करते। जब किसी स्थानीय निकाय का नियंत्रण संबंधित राज्य में सत्तारूढ़ दल के किसी विरोधी दल के हाथों में होता है तो उस शहर में साफ-सफाई जैसे कार्यों में भी राजनीतिक खींचतान होती है।
दिल्ली इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां तीनों नगर निगम भाजपा के पास हैं, लेकिन राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार है। इसके चलते साफ-सफाई पर दोनों दल एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर कर्तव्य की इतिश्री करते रहते हैं। यही स्थिति कई अन्य राज्यों के तमाम नगर निकायों में भी देखी जा सकती है। जहां ऐसा नहीं है वहां भी कोई बुनियादी फर्क नहीं दिखता। कोई भी देश यकायक बड़ी संख्या में अपने नागरिकों के लिए अस्पतालों में उपचार के इंतजाम नहीं कर सकता। बड़े से बड़े अस्पताल में सीमित मात्रा में ही संसाधन होते हैं। यह आवश्यक है कि सरकारी तंत्र बीमारियों को पैर पसारने से पहले ही रोके। यदि रोगों के पनपने और उन्हें फैलने से रोकने के उपाय कर लिए जाएं तो अस्पतालों में बीमार लोगों की भीड़ इकट्ठा होने का सवाल ही नहीं उठेगा।
गंदगी से पटे देश के लिए जितने जिम्मेदार स्थानीय निकाय हैं, उतने ही नागरिक भी। एक औसत भारतीय नागरिक घर के बाहर साफ-सफाई के प्रति पर्याप्त जागरूकता नहीं दिखाता। आम जनता को भी अपने आसपास साफ-सफाई के लिए उतना ही सतर्क रहना होगा, जितना वह घर में रहता है। हम अपने आसपास की गंदगी की ओर से यह सोचकर आंख नहीं फेर सकते कि उसे साफ करने का काम सरकार का है। यदि आम जनता अपने क्षेत्र को साफ रखने की ठान ले तो गंदगी कीसमस्यासे एक हद तक छुटकारा मिल सकता है।
जनता के स्तर पर कम से कम यह पहल तो हो ही सकती है कि कूड़ा यहां-वहां न डालें। हमें नगर नियोजन पर भी गंभीरता से ध्यान देना होगा। शहरी क्षेत्रों में जलभराव की समस्या त्रुटिपूर्ण योजनाओं और खराब ड्रेनेज की देन है। यह आश्चर्यजनक है कि शहरों के जो इलाके पचास-साठ साल पहले बनाए गए थे उनकी तुलना में नए बने क्षेत्रों में जलभराव, गंदगी की समस्या अधिक है। स्पष्ट है कि नए इलाकों के निर्माण में जो इंजीनियरिंग दक्षता दिखाई जानी चाहिए उसका अभाव है। यह अभाव लापरवाही और भ्रष्टाचार के कारण है।
देश में साफ-सफाई की लचर स्थिति तब और अधिक हैरान करने वाली है जब स्वच्छता उपकर के नाम पर नागरिकों से अलग से टैक्स भी वसूला जा रहा है। इस टैक्स से अच्छा-खासा धन अर्जित हो रहा है, लेकिन उसके सही तरह से उपयोग की कोई व्यवस्था नहीं बन सकी है। बेहतर हो कि राज्य सरकारें केंद्र सरकार के साथ मिलकर ऐसा माहौल बनाएं जिससे साफ-सफाई का काम वास्तव में एक अभियान का रूप ले।
(लेखक दैनिक जागरण समूह के सीईओ व प्रधान संपादक हैं)