बीते साल 16 हजार करोड़ की बिक्री पर देश की इ-रिटेल कंपनियों ने 8 हजार करोड़ का घाटा खाया. 100 रुपये का माल बेचा, तो 50 रुपये का घाटा खाया. इस घाटे का एक कारण था कि स्नैपडील, फ्लिपकार्ट तथा अमेजन जैसी कंपनियों द्वारा भारी डिस्काउंट दिये जा रहे थे.
इनकी रणनीति थी कि डिस्काउंट देकर एक बार खरीदार बना लेंगे, तो वह बार-बार उन्हीं से माल खरीदेगा. डिस्काउंट का प्रभाव किराना दुकानों पर पड़ा. अधिकाधिक संख्या में खरीदार आॅनलाइन खरीद करने लगे. किराना दुकानों को इस दबाव से मुक्त करने के लिए सरकार ने ई-रिटेल कंपनियों द्वारा डिस्काउंट देने पर प्रतिबंध लगा दिया. सोच थी कि प्रतिबंध से किराना दुकानों पर मंडरा रहा खतरा टल जायेगा.
आशा थी कि डिस्काउंट पर प्रतिबंध लगाने से इ-रिटेलर्स को होनेवाले घाटे पर भी ब्रेक लग जायेगा. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. हाल में आस्क मी नाम की ई-रिटेलिंग कंपनी को अपना धंधा बंद करना पड़ा, चूंकि घाटे बढ़ रहे थे. वास्तव में ई-रिटेलर्स को जो घाटा लग रहा है, उसमें डिस्काउंट एक छोटा कारण है.
उनके द्वारा विज्ञापन, ग्राहक के डाटा की गणित, साॅफ्टवेयर तथा अन्य मदों पर भारी खर्च किये जा रहे हैं. छात्र का मन पढ़ाई में न लगता हो, तो टीवी देखने पर प्रतिबंध लगाने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. इसी प्रकार किराना दुकानों की तकनीक पिछड़ गयी हो, तो ई-रिटेल के डिस्काउंट पर प्रतिबंध लगाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है. ई-रिटेल के कई लाभ हैं- घर बैठे माल की डिलिवरी, माल का पूरा विवरण, माल की च्वाॅयस इत्यादि. मुझे मोबाइल फोन खरीदना था. दुकानों पर गया, तो वे यह भी नहीं बता सके कि फोन में टार्च है या नहीं. अंततः मैंने स्मार्टप्रिक्स साइट पर कुछ मोबाइल फोन की तुलना की और एक इ-रिटेल कंपनी से खरीद लिया. ऐसी सुविधा किराना दुकान उपलब्ध नहीं करा पाती हैं.
डिस्काउंट पर प्रतिबंध से किराना दुकानों को कुछ राहत मिली भी है. लेकिन, इस घमासान को बीच में रोक देने से सुधार के कुछ रास्ते बंद हो रहे हैं. जैसे चीन की ई-रिटेल कंपनी अलीबाबा द्वारा किराना दुकानों के माध्यम से बिक्री की जाती है. किराना दुकानों द्वारा आवश्यक माल के आॅर्डर अलीबाबा को दिये जाते हैं. अलीबाबा द्वारा माल उन तक पहुंचाया जाता है. ई-रिटेल तथा किराना दुकान एक-दूसरे के पूरक हो जाते हैं. इ-रिटेल कंपनियां भी दुकान के महत्व को समझ रही हैं. अमेरिकी ई-रिटेल कंपनी अमेजन द्वारा किताबों की दुकान खोली गयी है. ई-रिटेल तथा किराना के बीच चल रहा युद्ध अभी निर्णायक नतीजे पर नहीं पहुंचा है. इस स्थिति में ई-रिटेल द्वारा डिस्काउंट देने पर प्रतिबंध लगाने का अर्थ है कि इस प्रयोग को बीच में ही रोक दिया जाये.
ई-रिटेलर्स द्वारा डिस्काउंट पर प्रतिबंध लगाने के पीछे सरकार की दूसरी मंशा रोजगार की रक्षा है.
इसका स्वागत है, परंतु रोजगार की रक्षा के दूसरे विकल्प भी हैं. देखना चाहिए कि डिस्काउंट पर प्रतिबंध लगाना ही रोजगार की रक्षा का श्रेष्ठ उपाय है या नहीं. मान लीजिए ई-रिटेल डिस्काउंट पर प्रतिबंध से देश के हर परिवार पर 100 रुपये का बोझ पड़ेगा. जैसे उपभोक्ता को किराना दुकान से300 रुपये में रिफाइंड आॅयल खरीदना पड़ेगा, जिसे ई-रिटेल कंपनी 200 रुपये में देती थी. साथ-साथ किराना दुकानों में कार्यरत देश के एक करोड़ लोगों के रोजगार की रक्षा होगी. इसी तरह यदि पावरलूम पर प्रतिबंध लगे, तो देश के हर परिवार पर 50 रुपये प्रतिवर्ष का बोझ पड़ता है. उन्हें हैंडलूम का महंगा कपड़ा खरीदना होगा.
मान लीजिये पावरलूम पर प्रतिबंध से भी एक करोड़ जुलाहों के रोजगार की रक्षा होती है. यानी एक करोड़ रोजगार की रक्षा करने को ई-रिटेल पर प्रतिबंध का बोझ 100 रुपये तथा पावरलूम पर प्रतिबंध लगाने का बोझ 50 रुपये प्रति परिवार पड़ेगा. ऐसे में उचित होगा कि सरकार किराना दुकानों को स्वाहा होने दे और जुलाहों की रक्षा करे, चूंकि उपभोक्ता पर भार कम पड़ेगा. लेकिन यदि पावरलूम पर प्रतिबंध लगाने का भार 200 रुपये प्रति परिवार पड़े, तो उचित है कि किराना दुकान की रक्षा की जाये और जुलाहों को स्वाहा होने दिया जाये. अतः देखना चाहिए कि उपभोक्ता पर न्यूनतम भार डाल कर अधिकतम रोजगार की रक्षा किन क्षेत्रों में हो सकती है.
अंतिम आकलन. ई-रिटेल कंपनियों द्वारा डिस्काउंट देने पर प्रतिबंध लगाने के पीछे सरकार की मंशा सही दिशा में है, पर यह कदम तीन कारणों से उचित नहीं है. पहला, किराना दुकानों की रक्षा करना पर्याप्त नहीं होगा.
बाकी क्षेत्रों में आधुनिक तकनीकों द्वारा रोजगार का भक्षण जारी रहेगा. यह कदम अकुशल भी हो सकता है. संभव है कि ई-रिटेल पर प्रतिबंध लगाने से उपभोक्ता पर भार ज्यादा पड़े, जबकि रोजगार की रक्षा कम हो. दूसरा, ई-रिटेल तथा किराना के बीच समन्वय एवं साझा व्यापार के कई माॅडल पर वैश्विक स्तर पर प्रयोग चल रहा है. इस प्रयोग को भारत में शुरू में ही बंद नहीं करना चाहिए. तीसरा एवं महत्वपूर्ण कारण यह है कि ई-रिटेलरों द्वारा डिस्काउंट पर प्रतिबंध लगाने से उपभोक्ता को हानि होगी.