नई दिल्ली। सरकार की एक समिति ने जेनेटिकली मॉडिफाइड यानी जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती को हरी झंडी दे दी है। लेकिन अभी इसका रास्ता साफ नहीं हुआ है। समाचार एजेंसी पीटीआइ के अनुसार, केंद्र सरकार की ओर से इसे अब तक मंजूरी नहीं दी गई है।
वह ऐसी फसल के जैव सुरक्षा पहलुओं पर समिति की ओर से की गई सिफारिशों को लेकर जनता की राय लेगी। इसके बाद यह मामला सरकार की ओर से अंतिम निर्णय के लिए पर्यावरण मंत्रालय के अधीन बायोटेक्नोलॉजी रेगुलेटर जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जीईएसी) के पास भेजा जाएगा। अगर सभी रास्ते साफ कर लिए तो सरसों भारत की पहली जीएम खाद्य फसल होगी।
जनता के व्यापक विरोध के चलते विपक्ष इस मामले को तूल दे सकता है। लिहाजा सरकार को उसे भी साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। मामले से जुड़े सूत्रों की मानें तो देश में विकसित जीएम सरसों को सरकारी समिति और स्वतंत्र विशेषज्ञों ने 11 अगस्त को तकनीकी मंजूरी दी थी। फसल के परीक्षण पर करीब एक दशक के डाटा की कई बार समीक्षा के बाद ऐसा किया गया।
जीईएसी की ओर से इस पर आगे बढ़ने की दिशा में जल्द एलान हो सकता है। पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे के जरिये अंत में इस मामले के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास पहुंचने के आसार हैं।
मंजूरी की खबर ऐसे समय में आई है जब अमेरिकी बीज कंपनी मोन्सैंटो भारत में अपना कारोबार समेटने की तैयारी कर रही है। कंपनी ने कहा है कि उसने अगली पीढ़ी के जीएम कॉटन बीजों की मंजूरी के लिए आवेदन को वापस ले लिया है। इसकी वजह नियमन संबंधी अनिश्चतताएं हैं।
जीएम कॉटन बाजार में इस कंपनी का दबदबा रहा है। मोन्सैंटो, बेयर बायोसाइंसेज, डाउ एग्रोसाइंसेज, डुपोंट पायनियर और सिनजेंटा जैसी बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों ने शुक्रवार को संयुक्त सवांददाता सम्मेलन बुलाया है। वे कह चुकी हैं कि उनके लिए यह मुश्किल समय है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत हर साल खाद्य तेलों और अन्य खाद्य वस्तुओं के आयात में अरबों डॉलर खर्च करता है। किसान आज तक सालों पुरानी तकनीकी के सहारे हैं। कृषि योग्य भूमि घट रही है। मौसम की अनिश्चितता कायम है। लेकिन जीएम फसलों को लेकर राजनीतिक और जनता का तीखा विरोध रहा है।
ऐसी आशंका जताई जाती रही है कि जीएम फसलें खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता को खतरे में डाल सकती हैं। जीएम सरसों को दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है। इसमें तीन जींस का इस्तेमाल किया गया है। इन्हें पहले ही कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में रेपसीड हाइब्रिड में शामिल किया जा चुका है।