मिट्टी से जुड़ी बहुत ही कहावतें हैं। इनमें एक है मिट्टी के मोल बिक जाने का मुहावरा, जो अब गलत साबित हो रहा है। अब जब मिट्टी तेजी से गायब हो रही है, तो हमें इसकी कीमत भी समझ में आ रही है। मिट्टी के खोने का सबसे बड़ा प्रमाण मानसून में मिलता है। वर्षा जल के पड़ते ही नदी, नाले, गाढ़-गदेरे जो अपना रंग बदल देते हैं, और हम कीमती मिट्टी को बहते हुए देखते हैं। खेतों और जंगलों की यह मिट्टी भी अब बहुत बड़े संकट में आ चुकी है।
मिट्टी की पहली पहचान खेती और जंगल की हरियाली में रही है। घर-मकान के बनाने का काम मिट्टी से बनना बहुत बाद में हुआ हो, मगर खेती मिट्टी पर ही निर्भर रही है। लेकिन खेती की यह जमीन लगातार कम हो रही है। दुनिया की 13़5 अरब हेक्टेयर खेती लायक जमीन में से दो हेक्टेयर नदारद हो रही है।
उन जगहों पर स्थिति और खराब है, जो पहले ही भुखमरी से जूझ रहे हैं। इन्ही जगहों में जनसंख्या दबाव, पानी की अस्थिरता, भू क्षरण व वन रहित क्षेत्र ज्यादा हैं। अकेले भारत में करीब 1953 से लगभग 20 करोड़ हेक्टेयर भूमि मिट्टी के संकट से गुजर रही है। मिट्टी के बह जाने के साथ ही दूसरी समस्या रसायनों की वजह से इसके खराब होने की भी है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका कीटनाशकों और उर्वरकों के ज्यादा इस्तेमाल की है। औद्योगिक प्रदूषण भी कुछ क्षेत्रों में इसमें अपनी भूमिका अदा करता है। इन सभी कारणों से प्रति व्यक्ति कृषि क्षेत्र पूरी दुनिया में घट रहा है, भारत में तो यह कुछ ज्यादा ही तेजी से कम होता जा रहा है। दूसरी तरफ, भारत में कृषि उत्पादन लगभग स्थिर है। विश्व भुखमरी इंडेक्स में भारत का स्थान 66 है, जो बताता है कि हमें सबका पेट भरने के लिए लगातार अपने कृषि उत्पादन को बढ़ाना होगा।
दिक्कत यह है कि इन हालात के बावजूद हम मिट्टी के प्रबंधन की जरूरत को समझ नहीं रहे। अकेले भारत में 5,334 मीट्रिक टन मिट्टी हर वर्ष खत्म होती जा रही है। इसका यह भी मतलब है कि हर साल मिट्टी की एक सेंटीमीटर सतह खत्म हो रही है, जिसको बनने में हजारों वर्ष लगते हैं। इसमें से लगभग 30 प्रतिशत तो सीधा समुद्र में चला जाता है और 61 प्रतिशत इधर-उधर स्थानांतरित हो जाता है। जैसे गरमी के दिनों में मिट्टी का एक बड़ा भाग गर्द के रूप में हवा के साथ भी बह जाता है। सबसे ज्यादा संवेदनशील काली मिट्टी का इलाका है और इसके बाद हिमालय के शिवालिक का है।
मिट्टी का दूसरा बड़ा और सीधा उपयोग ईंटों के घर बनाने में है। जब से मिट्टी से ईंट बनाने का आविष्कार हुआ, मिट्टी का एक बड़ा हिस्सा इसकी भेंट चढ़ गया। यह सिलसिला खत्म होने वाला नहीं है, क्योंकि हमारा संकल्प हर किसी को मकान देने का है। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि न तो हम मिट्टी के खो जाने को गंभीरता से ले रहे हैं, और न ही इसके संरक्षण की जरूरत को।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)